वरकला (केरल), 30 दिसंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन ने मंगलवार को कहा कि आध्यात्मिक जीवन और सामाजिक जीवन को अलग नहीं किया जा सकता और यदि आस्था समाज को बेहतर नहीं बना सके तो वह अधूरी रह जाती है।
उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन ने कहा कि जैसे-जैसे भारत ‘‘विकसित भारत’’ की ओर बढ़ रहा है, राष्ट्र का निर्माण केवल मशीन और राजमार्ग से नहीं होगा, बल्कि मूल्यों, एकता और प्रेम से होगा।
उपराष्ट्रपति ने यह बात तिरुवनंतपुरम के पास वरकला में संत एवं समाज सुधारक श्री नारायण गुरु द्वारा स्थापित शिवगिरि मठ में 93वीं शिवगिरि तीर्थयात्रा की शुरुआत के मौके पर कही।
उन्होंने कहा, “आध्यात्मिक जीवन और सामाजिक जीवन को अलग नहीं किया जा सकता। यदि आस्था समाज को बेहतर नहीं बना सके तो वह अधूरी रह जाती है।।”
देश में विभिन्न आस्थाओं के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भारत की ताकत सभी आस्थाओं के बीच सामंजस्य में है और भारत सरकार इसका सक्रिय रूप से समर्थन करती है।
उन्होंने कहा, ‘‘जब भारतीयों को ईरान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उन्हें सुरक्षित वापस लाया गया। हज यात्रियों के लिए सुविधाओं को अब सुव्यवस्थित किया गया है। बौद्ध स्थलों को सर्किट के रूप में जोड़ा गया है।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश में तीर्थ पर्यटन सिर्फ यात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव के रूप में बढ़ रहा है।
उन्होंने ‘प्रसाद’ (तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्धन अभियान) योजना और वंदे भारत ट्रेनों के विस्तार जैसी सरकारी पहलों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये कदम आधुनिक संपर्क और आध्यात्मिक विरासत के बीच की खाई को पाटने का काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “अयोध्या से रामेश्वरम तक, आध्यात्मिक सर्किट लोगों को जोड़ते हैं। ये प्रयास आजीविका पैदा करते हैं, सामंजस्य को बढ़ावा देते हैं और समाज को सुदृढ़ करते हैं। शिवगिरि तीर्थयात्रा अपने आप में इस समरसता का जीवंत उदाहरण है।”
राधाकृष्णन ने चेतावनी दी कि आज के युग में “सोशल मीडिया मन को भटकाता है। शॉर्टकट युवाओं को आकर्षित करते हैं। ऐसे में नशे की समस्या और झूठी सफलता हमें चिंतित करती है।”
राधाकृष्णन ने श्री नारायण गुरु से प्रेरित संस्थानों से युवाओं को सामंजस्य बनाए रखने, अतिवाद का विरोध करने और राष्ट्र को सशक्त करने की दिशा में मार्गदर्शन देने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि आस्था और तर्क का यह सामंजस्य श्री नारायण गुरु को केवल अतीत का संत नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शक बनाता है।
उन्होंने उल्लेख किया कि शिवगिरि में हजारों श्रद्धालु जाति, समुदाय या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना एकत्र होते हैं और आस्था, सेवा और साझा मूल्यों से एकजुट होते हैं। यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक साधना सामाजिक एकता का निर्माण कर सकती है।
उन्होंने कहा कि आज भी गुरु का प्रभाव शिक्षा, सामाजिक उत्थान और मानव गरिमा को दिशा देता है। उपराष्ट्रपति ने कामना की कि इस तीर्थयात्रा की भावना हमारे सामाजिक दायित्व और नैतिक नागरिकता की भावना को और सशक्त करे।
उन्होंने कहा, “आइए हम सब मिलकर आत्मनिर्भर, विकसित और श्रेष्ठ भारत के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हों।”
शिवगिरि की इस पवित्र पहाड़ी और शिवगिरि मठ से उन्होंने युवाओं और नागरिकों से आह्वान किया कि वे श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं से प्रेरणा लें और समानता, बंधुत्व और न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखें।
उन्होंने शिवगिरि तीर्थयात्रा को मनुष्य के व्यापक उत्थान की यात्रा बताया, जो आध्यात्मिक खोज और सामाजिक-आर्थिक प्रगति का एक आदर्श संगम है।
कार्यक्रम के दौरान श्री नारायण गुरु पर आधारित चार पुस्तकों का विमोचन किया गया। इनमें सांसद शशि थरूर की पुस्तक ‘द सेज हू रीइमेजिंड हिंदूज्म’ भी शामिल थी।
इससे पहले उपराष्ट्रपति ने मठ में श्री नारायण गुरु की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की और प्रार्थना की।
भाषा बाकोलिया अमित नरेश
नरेश