बेंगलुरु, 23 अगस्त (भाषा) वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन ने बृहस्पतिवार को कहा कि चंद्रयान-3 मिशन की सफलता ने भविष्य के ग्रहीय मिशनों के लिए चंद्रमा को आधार बिंदू के तौर पर इस्तेमाल करने की संभावना को बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि इस सफलता ने इस तरह के भविष्य के अन्वेषणों में भाग लेने के लिए भारत की साख को मजबूत किया है।
कस्तूरीरंगन ने कहा कि चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक चंद्रमा पर उतारने, अन्वेषण की क्षमता, पूरी प्रक्रिया की समझ और इससे जुड़ी सभी चीजों ने इसरो को “संपूर्ण क्षमता” प्रदान की है।
उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में भविष्य के ग्रहों के अन्वेषण मानव जाति की गतिविधियों पर हावी होने जा रहे हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष कस्तूरीरंगन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि नवीनतम चंद्र मिशन ‘पिछले 50 वर्षों में इसरो की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है क्योंकि पहली बार आपने पृथ्वी के बाहर किसी वस्तु को सौर मंडल के किसी अन्य पिंड में उतारने की इसरो के अंतरिक्ष कार्यक्रम की क्षमता का व्यापक प्रदर्शन किया है।”
कस्तूरीरंगन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही अनोखी क्षमता है।’
उन्होंने कहा, ‘दक्षिणी ध्रुव की खोज करना इस तथ्य के कारण बहुत महत्वपूर्ण है कि यहां सूरज की रोशनी ज्यादा नहीं आती, और चूंकि चंद्रमा ने दो अरब वर्षों के बाद विकसित होना बंद कर दिया, इसलिए दक्षिणी ध्रुव एक प्राचीन क्षेत्र है।”
उन्होंने कहा, ‘इस बात की काफी संभावना है कि अगर वहां जल बड़ी मात्रा में उपलब्ध है तो चंद्रमा भविष्य के मिशनों में उपयोग के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण मंच बन सकता है।”
उन्होंने कहा कि भारत अब आर्टेमिस समझौते का सदस्य है और हम इस अवसर का उपयोग एक क्लब का सदस्य बनने के लिए करेंगे जो सौर मंडल में अन्य वस्तुओं की खोज के लिए चंद्रमा को आधार बिंदू के रूप में उपयोग करने का प्रयास करेगा।
उन्होंने कहा, ‘लिहाजा, यह भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम उस स्थान पर पहुंचे हैं जहां जलीय व रासायनिक, भौतिक व पर्यावरणीय गुण होने की बहुत अधिक संभावना है। इन गुणों को आज की तुलना में बहुत बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है।”
भाषा जोहेब प्रशांत
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