सिविल जज पद के लिए तेलुगु में प्रवीणता अनिवार्य करने वाले नियम के खिलाफ याचिका खारिज

सिविल जज पद के लिए तेलुगु में प्रवीणता अनिवार्य करने वाले नियम के खिलाफ याचिका खारिज

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  • Publish Date - April 28, 2025 / 06:20 PM IST,
    Updated On - April 28, 2025 / 06:20 PM IST

नयी दिल्ली, 28 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तेलंगाना में सिविल जज के पद के लिए तेलुगु भाषा में दक्षता अनिवार्य करने को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

उच्च न्यायालय ने तेलुगु भाषा संबंधी 2023 के नियम को बरकरार रखने का आदेश दिया था, जिसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, ‘‘यह (नियम) केवल यह कहता है कि आपको तेलुगु जानने की जरूरत है।’’

पेशे से वकील याचिकाकर्ता ने अप्रैल 2024 की अधिसूचना के अनुसार सिविल जज के पद के लिए आवेदन किया था। उच्च न्यायालय के समक्ष, उन्होंने भाषा की आवश्यकता को लेकर तेलंगाना राज्य न्यायिक (सेवा और कैडर) नियम, 2023 के नियम 5.3 और 7 (आई) की संवैधानिकता को चुनौती दी।

याचिकाकर्ता ने 2023 के नियमों के तहत आयोजित लिखित परीक्षा में अंग्रेजी से तेलुगु या उर्दू में और इसके विपरीत अनुवाद करने का विकल्प प्रदान करने के अलावा सिविल जज बनने की योग्यता के रूप में तेलुगु या उर्दू में से किसी एक में प्रवीण होने का विकल्प प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया।

शीर्ष अदालत की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि तेलंगाना में 15 प्रतिशत आबादी उर्दू भाषी है। वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल ने पात्रता परीक्षा पास कर ली है। हालांकि, पीठ ने याचिका पर गौर करने से इनकार कर दिया और इसे खारिज कर दिया।

तेलंगाना उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि चूंकि राज्य में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है, इसलिए यह मनमाना और अन्यायपूर्ण है कि सिविल जज की भर्ती के नियमों में उर्दू या तेलुगु में पारंगत होने का विकल्प नहीं दिया गया।

उच्च न्यायालय ने पिछले साल नवंबर में अपने आदेश में कहा था, ‘‘यह सच है कि सेवा की शर्तों, पात्रता और योग्यता के बारे में निर्णय करना नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में आता है। इन पहलुओं के बारे में निर्णय लेने के लिए नियोक्ता ही सबसे अच्छा न्यायाधीश है। इन पहलुओं पर न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि भर्ती नियमों के जिन प्रावधानों पर सवाल उठाया गया, वे मनमाने, भेदभावपूर्ण या संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाले हैं।

भाषा आशीष दिलीप

दिलीप