Supreme Court on Wajahat Khan’s petition: ‘सोशल मीडिया पर आत्मसंयम रखें’, सुप्रीम कोर्ट ने शर्मिष्ठा पर केस करने वाले वजाहत खान को दी नसीहत
Supreme Court on Wajahat Khan's petition: दरअसल, सोशल मीडिया पर कथित विभाजनकारी पोस्ट करने के आरोप में अलग अलग राज्यों में वजाहत खान पर कई केस दर्ज हुए हैं। इसके खिलाफ वजाहत खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है
Supreme Court on Wajahat Khan's petition, image source: india today
- कम से कम सोशल मीडिया पर अंकुश लगाया जाना चाहिए : SC
- नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी का मूल्य समझना चाहिए : SC
नईदिल्ली: Supreme Court on Wajahat Khan’s petition, शर्मिष्ठा पनोली जो कि एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं, की शिकायत करने वाले वजाहत खान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने सोशल मीडिया यूजर्स को जरूरी नसीहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी की कीमत समझनी चाहिए और सोशल मीडिया पर आत्मसंयम बरतना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि ”अगर नागरिक अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार का मजा लेना चाहते हैं तो इसे एक सीमित दायरे में रहकर उपयोग करना होगा।
दरअसल, सोशल मीडिया पर कथित विभाजनकारी पोस्ट करने के आरोप में अलग अलग राज्यों में वजाहत खान पर कई केस दर्ज हुए हैं। इसके खिलाफ वजाहत खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणी की है।
जानें क्या है पूरा मामला ?
आपको बता दें कि वजाहत खान कोलकाता के रहने वाले हैं। जिन्होंने शर्मिष्ठा पनोली के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी। इसी के बाद शर्मिष्ठा को हरियाणा से गिरफ्तार किया गया था। बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट से उन्हें जमानत मिल गई। वहीं सोशल मीडिया पर कथित तौर पर विभाजनकारी कंटेट पोस्ट करने के आरोप में वजाहत के खिलाफ असम, महाराष्ट्र, दिल्ली और हरियाणा में FIR दर्ज की गई थी।
पश्चिम बंगाल पुलिस ने वजाहत खान के खिलाफ दो FIR दर्ज की। फिर 10 जून को उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। इसके बाद कोर्ट ने 23 जून को अपने एक आदेश में उनकी गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगा दी। वजाहत खान ने अपनी याचिका में कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज FIR को एक साथ रखने की मांग रखी।
इसके बाद 14 जुलाई को कोर्ट ने वजाहत खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि लोगों को सोशल मीडिया पर पोस्ट करते समय आत्मसंयम बरतने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं करने पर राज्य हस्तक्षेप करेगा। इस दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, ”अगर नागरिक अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का फायदा लेना चाहते हैं तो यह जरूरी प्रतिबंधों के साथ होना चाहिए। इसके अलावा, इस आजादी का आनंद लेने के लिए आत्मसंयम भी होना चाहिए”।
कम से कम सोशल मीडिया पर अंकुश लगाया जाना चाहिए
जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि ”देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना मौलिक कर्तव्यों में से एक है। इसका उल्लंघन हो रहा है। इसे लेकर कम से कम सोशल मीडिया पर अंकुश लगाया जाना चाहिए”
उन्होंने आगे कहा, ”लेकिन राज्य किस हद तक रोक लगा सकता है? इसके बजाय, नागरिक खुद को कंट्रोल क्यों नहीं कर सकते? नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी का मूल्य समझना चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो राज्य हस्तक्षेप करेगा और कोई नहीं चाहता कि राज्य हस्तक्षेप करे”।
उन्होंने कहा, ”यह देश में हो रहा है। इस पर कोई रोक-टोक नहीं है। बोलने की आजादी के दुरुपयोग के मामलों से अदालतों में भीड़ बढ़ रही है। ये न होता तो पुलिस अन्य जरूरी मामलों पर ध्यान देती। इसका समाधान क्या है?”
जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि ”देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना मौलिक कर्तव्यों में से एक है। इसका उल्लंघन हो रहा है। कम से कम सोशल मीडिया पर समाज को बांटने वाली इन सभी चीजों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।” उन्होंने साफ किया, ”हम सेंसरशिप की बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन भाईचारे, धर्मनिरपेक्षता और नागरिकों की गरिमा के हित में हमें इस याचिका से आगे जाकर इस पर विचार करना होगा।”

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