नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय बृहस्पतिवार को इस बेहद विवादित मुद्दे पर फैसला सुनाने वाला है कि क्या खनिजों पर दी जाने वाली रॉयल्टी खनन एवं खनिज (विकास एवं विनियमन), अधिनियम 1957 के तहत एक तरह का ‘कर’ है और क्या लेवी लगाने की शक्ति केवल केंद्र सरकार के पास है या फिर राज्यों के पास भी अपने क्षेत्र में खनिज वाली भूमि पर लेवी लगाने का अधिकार है।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने विभिन्न राज्य सरकारों, खनन कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की 86 याचिकाओं के समूह पर आठ दिन तक सुनवाई करने के बाद 14 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर जारी नोटिस के अनुसार, पीठ बृहस्पतिवार को पूर्वाह्न 10:30 बजे फैसला सुनाएगी। पीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान के तहत खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति न केवल संसद बल्कि राज्यों के पास भी है। पीठ ने रेखांकित किया था कि इस तरह के अधिकार को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने दलील दी थी कि खानों और खनिजों पर कर लगाने के संबंध में केंद्र के पास अत्यधिक शक्तियां हैं।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम (एमएमडीआरए) में राज्यों की खनिजों पर कर लगाने की विधायी शक्ति की सीमा है, और कानून के तहत, रॉयल्टी तय करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।
याचिकाकर्ताओं में से एक, झारखंड सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा था कि रॉयल्टी कर नहीं है और राज्यों को राज्य सूची की प्रविष्टि 49 और 50 के आधार पर खानों एवं खनिजों पर कर लगाने की शक्ति है।
शीर्ष अदालत की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस जटिल मामले की सुनवाई 27 फरवरी को शुरू की थी।
रॉयल्टी वह भुगतान होता है जो उपयोगकर्ता किसी बौद्धिक संपदा या संपत्ति के मालिक को करता है।
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