स्विस फर्म की प्रदूषण रैंकिंग भ्रामक : सरकार

स्विस फर्म की प्रदूषण रैंकिंग भ्रामक : सरकार

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  • Publish Date - July 24, 2025 / 09:02 PM IST,
    Updated On - July 24, 2025 / 09:02 PM IST

नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) सरकार ने बृहस्पतिवार को उस वैश्विक रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया, जिसमें भारत को दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में शामिल किया गया है।

सरकार ने कहा कि आंकड़ों के स्रोतों और कार्यप्रणाली की सीमाओं के कारण यह रैंकिंग ‘भ्रामक’ हो सकती है।

पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने कांग्रेस सदस्य प्रमोद तिवारी के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि मार्च 2024 में प्रकाशित आईक्यूएयर रिपोर्ट, औसत ‘पीएम2.5’ सांद्रता के आधार पर देशों की रैंकिंग करती है। उन्होंने कहा, ‘‘यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि रिपोर्ट में इस्तेमाल किए गए 38 प्रतिशत आंकड़ों के स्रोत सरकारी एजेंसियां हैं। शेष 62 प्रतिशत आंकड़े अन्य एजेंसियों से हैं जिनमें कम लागत वाले सेंसर से प्राप्त आंकड़े भी शामिल हैं।’’

सिंह ने कहा कि ऐसे सेंसर नियामक उपयोग के लिए स्वीकृत नहीं हैं और उनसे काफी हद तक त्रुटिपूर्ण या अनिश्चितता वाले आंकड़े मिल सकते हैं।

उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में शामिल किए गए आंकड़े शहरों और देशों की रैंकिंग की सही तस्वीर पेश नहीं कर सकते और भ्रामक हो सकते हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या वायु प्रदूषण देश भर में लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है, मंत्री ने कहा कि वायु प्रदूषण और मौतों के बीच सीधा संबंध स्थापित करने के लिए कोई निर्णायक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

सिंह ने कहा, ‘‘वायु प्रदूषण उन कई कारकों में से एक है जो श्वसन संबंधी बीमारियों और संबंधित बीमारियों की गंभीरता बढ़ा सकते हैं… स्वास्थ्य कई कारकों से प्रभावित होता है, जिनमें खान-पान की आदतें, व्यावसायिक आदतें, सामाजिक-आर्थिक स्थितियां, पूर्व की चिकित्सा, आनुवंशिकता और पर्यावरणीय कारक शामिल हैं।’’

उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण निश्चित रूप से चिंता का विषय है, लेकिन इसे मृत्यु का एकमात्र कारण मानना वैज्ञानिक रूप से सटीक नहीं है।

यह पूछे जाने पर कि क्या पर्यावरण संरक्षण शुल्क (ईपीसी) और पर्यावरण क्षतिपूर्ति (ईसी) निधि का एक बड़ा हिस्सा खर्च नहीं अप्रयुक्त रह गया है।

मंत्री ने पुष्टि की कि इन निधियों की एक बड़ी राशि अभी तक खर्च नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि कुछ हद तक, अदालती निर्देशों के कारण इन निधियों की एक बड़ी राशि अभी खर्च की जानी बाकी है।

भाषा अविनाश सुभाष

सुभाष