(त्रिदीप लाखड़)
गुवाहाटी, 31 अगस्त (भाषा) असम में उन लोगों में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है जिनके नाम राज्य में तीन साल पहले प्रकाशित हुई विवादास्पद राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) में नहीं थे।
सफीकुल इस्लाम और उनके दो बच्चों के लिए अनिश्चितता की यह स्थिति समाप्त होती नहीं दिख रही है।
राज्य में 31 अगस्त, 2019 को जारी अंतिम एनआरसी में 19,06,657 लोगों के नाम शामिल नहीं थे, जिससे उनकी नागरिकता को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई। कुल 3,30,27,661 आवेदकों में से 3,11,21,004 लोगों के नाम शामिल थे।
ब्रह्मपुत्र के ढालपुर ‘छार’ के निवासी इस्लाम ने दावा किया कि उन्होंने एनआरसी अधिकारियों को अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराए थे, लेकिन उनका नाम अंतिम सूची में शामिल नहीं किया गया।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मेरा जन्म 1970 में बारपेटा जिले के एक गांव में हुआ था। बाद में मेरे पिता ढालपुर चले गए थे। इस क्षेत्र से मेरा पारिवारिक जुड़ाव भी स्थापित हो गया था। फिर भी मेरा, एक बेटे और बेटी का नाम इसमें शामिल नहीं किया गया।’’
एनआरसी की अंतिम सूची में हालांकि उनकी पत्नी नजमा का नाम शामिल किया गया।
इस्लाम ने कहा, ‘‘गांव में हालांकि कोई भी मेरी नागरिकता पर सवाल नहीं उठा रहा है क्योंकि वे मुझे अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन मुझे अन्य जगहों पर असहज परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है।’’
उन्होंने विनती करते हुए कहा, ‘‘हमारा हाल जानकर आप कुछ नहीं कर सकते सर? प्रेस में कई खबरें प्रकाशित हुई हैं और कई गैर सरकारी संगठन हमसे मिलने आए हैं। फिर भी सब कुछ जस का तस रहा। लोग हमसे सिर्फ हमारे रूप-रंग और गांव के बाहर के कपड़ों को लेकर सवाल करते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।’’
कछार जिले की 79 वर्षीय रेहेना खातून के लिए यह प्रतिष्ठा और पहचान की लड़ाई रही है। उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘हमारे पूरे परिवार की नागरिकता को विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) में साबित करते करते मेरे पति दो साल पहले चल बसे। यह मामला अभी तक सुलझा नहीं है। कानूनी मामले के कारण, हमारे नाम एनआरसी में नहीं आए।’’
नागरिकता के मुद्दों से जूझ रहे लोगों के लिए लड़ने वाले एक कार्यकर्ता अशरफुल हुसैन ने कहा कि एनआरसी मामले को हल करने में अत्यधिक देरी से निहित स्वार्थों वाले एक वर्ग को ‘‘समाज को अस्थिर करने’’ और ‘‘अशांति पैदा करने’’ में मदद मिल रही है।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमारे अनुमान के अनुसार, पिछले 15-20 वर्षों में कम से कम 81 लोगों ने अपनी नागरिकता को लेकर जारी अनिश्चितता के कारण आत्महत्या की है। कई लोगों को तकनीकी आधार पर बाहर कर दिया गया था और इसे ठीक करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है।’’
इस मुद्दे पर काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन ‘सोशल जस्टिस फोरम’ (एसजेएफ) ने सरकार से राज्य में शांति के स्थायी माहौल के लिए मामले को सुलझाने की मांग की।
भाषा
देवेंद्र नरेश
नरेश