उत्तर प्रदेश : रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होने से 42 वर्ष पुराने मामले में दोषी व्यक्ति बरी

उत्तर प्रदेश : रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होने से 42 वर्ष पुराने मामले में दोषी व्यक्ति बरी

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  • Publish Date - September 22, 2024 / 05:32 PM IST,
    Updated On - September 22, 2024 / 05:32 PM IST

प्रयागराज, 22 सितंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 42 वर्ष पुराने एक आपराधिक मामले में अधीनस्थ न्यायालय में रिकॉर्ड का महत्वपूर्ण हिस्सा उपलब्ध नहीं होने के कारण तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 201 (साक्ष्य नष्ट करने) के तहत दोषी एक व्यक्ति को बरी कर दिया।

बलिया जिले की एक अदालत ने 1982 में अपीलकर्ता श्रीराम सिंह को चार वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी।

न्यायमूर्ति नलित कुमार श्रीवास्तव ने अपीलकर्ता श्रीराम सिंह की अपील स्वीकार करते हुए कहा, “मौजूदा मामले में अभियोजन पक्ष ने स्वयं स्वीकार किया कि अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय और आदेश के अलावा कोई अन्य रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, इसलिए इसके प्राकृतिक परिणाम स्वरूप इस मामले पर पुनः सुनवाई संभव नहीं है।”

अदालत ने नौ सितंबर, 2024 को दिए अपने आदेश में कहा, “” महत्वपूर्ण मूलभूत रिकॉर्ड अनुपलब्ध होने की वजह से दोषसिद्धि का आदेश बरकरार नहीं रह सकता। इस अदालत के पास इन परिस्थितियों में अपील स्वीकार करने और अपीलकर्ता को बरी करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।

अपीलकर्ता श्रीराम सिंह ने बलिया जिले के गरवार थाने में दर्ज एक मामले में बलिया के सत्र न्यायाधीश द्वारा 30 सितंबर, 1982 को पारित निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की थी।

सत्र न्यायाधीश ने उसे आईपीसी की धारा 201 (साक्ष्य नष्ट करने) के तहत दोषी करार देते हुए चार साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी।

भाषा राजेंद्र जितेंद्र

जितेंद्र