हम मुद्दे को यूं ही नहीं छोड़ेंगे: कैदी स्थानांतरण याचिका संबंधी फैसले पर महबूबा मुफ्ती

हम मुद्दे को यूं ही नहीं छोड़ेंगे: कैदी स्थानांतरण याचिका संबंधी फैसले पर महबूबा मुफ्ती

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  • Publish Date - December 26, 2025 / 09:24 PM IST,
    Updated On - December 26, 2025 / 09:24 PM IST

श्रीनगर, 26 दिसंबर (भाषा) पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने शुक्रवार को कहा कि यह ‘‘आश्चर्यजनक’’ है कि जम्मू कश्मीर के कैदियों को अन्य जगहों की जेलों से वापस घर लाने के आग्रह वाली उनकी याचिका को उच्च न्यायालय में खारिज कर दिया गया।

स्थानीय कैदियों के स्थानांतरण का आग्रह करते हुए महबूबा मुफ्ती द्वारा दायर जनहित याचिका को जम्मू कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने इस टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया कि ऐसा प्रतीत होता है कि इसे राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए दायर किया गया है।

महबूबा ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘अदालत का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण और आश्चर्यजनक है।’’

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय का कहना है कि कोई भी ‘‘आम आदमी’’ जनहित याचिका दायर कर सकता है, लेकिन चूंकि वह एक राजनीतिक नेता हैं, इसलिए उनकी जनहित याचिका राजनीतिक कारणों से है।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, “उच्च न्यायालय यह भूल रहा है कि राजनीतिक नेता जमीनी हकीकतों से गहराई से जुड़े रहते हैं, और मैं, एक राजनीतिक नेता होने के नाते, जम्मू-कश्मीर के लोगों की स्थिति से भली-भांति परिचित हूं। गरीब लोग जेल में बंद अपने परिजनों से मिलने नहीं जा सकते। वे अपना मुकदमा कैसे लड़ेंगे!”

पीडीपी प्रमुख ने यह भी सवाल उठाया कि अदालत ने इस मामले का स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लिया।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अदालत को मेरे चरित्र पर लांछन लगाने का अधिकार नहीं है। राजनीतिक नेता के रूप में मुझे कोई भी मुद्दा उठाने का पूरा अधिकार है। अदालत को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए था। उसे सरकार से पूछना चाहिए था कि कितने विचाराधीन कैदी जेलों में हैं और उन्हें किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।’’

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि अदालत में चर्चा उनके पेशे से परे, इस मुद्दे पर होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा, ‘‘अदालत ने मेरा मामला खारिज करने के लिए अजीब तर्क दिए हैं।’’

उन्होंने कहा, “यह फैसला तर्क पर आधारित होना चाहिए था, लेकिन मुझे खेद है कि अदालत ने ऐसा फैसला सुनाते हुए कहा कि मैं राजनीति कर रही हूं। अनुच्छेद 21 के तहत, हमें इन मुद्दों को उठाने और अदालतों में जाने का मौलिक अधिकार है।”

महबूबा ने कहा कि उनकी पार्टी इस मुद्दे को खत्म नहीं होने देगी।

उन्होंने कहा कि उनकी मांग केवल उन कैदियों को स्थानांतरित करने तक सीमित थी, जिन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है, और इस फैसले ने न्यायपालिका में विश्वास को ठेस पहुंचाई है।

बलात्कार के दोषी भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की आजीवन कारावास की सजा निलंबित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर, महबूबा ने आरोप लगाया कि ‘‘न्यायपालिका का राजनीतिकरण कर दिया गया है।’’

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि कुछ न्यायाधीश अब भी सत्ता के सामने खड़े होने को तैयार हैं।

उनका इशारा सूरजपुर जिला न्यायालय द्वारा अखलाक मामले में आरोपियों के खिलाफ आरोप वापस लेने से इनकार किए जाने की ओर था।

उन्होंने कहा कि न्यायाधीश सौरभ द्विवेदी ने सरकार से लड़ाई लड़ी और उनसे कहा कि वे मामला वापस नहीं ले सकते, तथा आदेश दिया कि इसकी सुनवाई प्रतिदिन की जाए।

महबूबा ने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि स्थिति मिली-जुली है। अगर अधिकतर न्यायाधीश राजनीति से प्रभावित हो गए हैं, तो द्विवेदी जैसे न्यायाधीश बहुत कम हैं।’’

उन्होंने मांग की कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के कैदियों की स्थिति जानने के लिए देश भर की जेलों का दौरा करने के वास्ते मंत्रियों और विधायकों की एक टीम का गठन करें।

आरक्षण के युक्तीकरण के मुद्दे पर सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोकसभा सदस्य रुहुल्लाह मेहदी द्वारा विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दिए जाने के बारे में पूछे जाने पर महबूबा ने कहा कि इस पर निर्णय लेना सरकार का काम है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम ‘ओपन मेरिट’ (सामान्य श्रेणी) अभ्यर्थियों के लिए न्याय चाहते हैं। सरकार को इस पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। रुहुल्लाह सरकार का हिस्सा हैं। उन्हें सरकार से इस बारे में बात करनी चाहिए और उसे समझाना चाहिए।’’

भाषा

नेत्रपाल दिलीप

दिलीप