MP Politics
MP Politics: भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस खुद को दोबारा खड़ा करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस की रणनीति है कि वो आंदलन के जरिए वोटर्स तक पहुंचेगी। इधर बीजेपी का अगला लक्ष्य ये है कि उसे एमपी के हारे हुए 20 फीसदी बूथ जीतने हैं, तो अब तय है कि कांग्रेस की राह आसान नहीं है। लेकिन, सवाल ये है कि टूट, बिखराव, गुटबाजी से जूझ रही कांग्रेस पार्टी, बीजेपी के सामने अपना बिखरा हुआ काडर फिर से खड़ा कर पाएगी?
लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप के बाद भी बीजेपी चैन से नहीं बैठी है। बीजेपी ने ये तय किया है कि अगले चुनावों तक हर हाल में हारे हुए 20 फीसदी बूथ जीतना है। यानी ये साफ है की बीजेपी एमपी के 100 फीसदी बूथ जीतने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। दरअसल हाल के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 80.56 फीसदी बूथ जीते। बीजेपी का वोट शेयर इस दौरान 59.27 तकरीबन 60 फीसदी रहा, जबकि बीजेपी लोकसभा चुनावों में विंध्य,निमाड़ और महाकौशल की 7 विधानसभा सीटें हार गयी। बुंदेलखंड में तो बीजेपी ने सारी विधानसभा जीतने के साथ 67 फीसदी वोट हासिल कर लिए। लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 1.5 फीसदी आदिवासी वोट और 0.6 फीसदी दलित वोट में इजाफा किया है।
जाहिर है ये आंकड़े बीजेपी की सेहत के लिए ज़रुर फायदेमंद हैं। लेकिन, 100 फीसदी बूथ जीतने का एजेंडा बेहद मुश्किल है। विधानसभा चुनाव में महज 66 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस ने दम तो ये भी भरा था कि लोकसभा चुनाव में कम से कम 12 सीटें जीतेंगे। लेकिन, कांग्रेस का दम नतीजों के दिन ही निकल गया। अब बेदम हो चुकी कांग्रेस फिलहाल वेंटिलेटर पर है और कोशिश कर रही है कि मध्यप्रदेश में फिर से खड़ी हो सके। पार्टी को मजबूत करने के लिए भोपाल में दो दिन महामंथन चला है। दिग्गजों ने सुझाव दिए हैं, समितियां बनाई गयी हैं। दावे किए जा रहे हैं कि जल्द जीतू पटवारी की नई टीम का ऐलान हो जाएगा।
खबर मिली है कि कांग्रेस की नयी टीम पार्टी के संविधान के मुताबिक होगी। यानी पहले जैसी जंबो कार्यकारिणी नहीं होगी। पीसीसी में 50 फीसदी युवाओं को पद मिलेंगे। सीनियर विधायकों को महासिचव बनाने के साथ ही संभागों का प्रभार दिया जाएगा। जिलों में भी कांग्रेस संगठन प्रभारी नियुक्त करेगी। नए सिरे से मडंलम सेक्टर कमेटियां बनेंगी। बूथ पर ऐसे नौजवानों की तैनाती होगी जो ऐन मौके पर बीजेपी की तरफ ना भाग जाएं। ओबीसी कैटेगरी के नेताओं को पीसीसी में 50 फीसदी पद मिलेंगे। एससी एसटी नेताओं को भी पटवारी की टीम में 30 फीसदी से ज्यादा पद मिलेंगे।
ये सब होने के बाद भी बीजेपी से मुकाबला करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि कांग्रेस के पास भरोसेमंद कैडर नहीं है। भितरघातियों से निपटने का दम नहीं है। सीनियर लीडरशिप की गुटबाजी का कोई ईलाज नहीं है। खैर,कांग्रेस फिर भी ये दावे कर रही है कि पार्टी दोबारा खड़ी होगी। हाल के दोनों चुनावों में बीजेपी ने खुद को साबित कर दिया है। अब बारी कांग्रेस की है। कांग्रेस को हवा में किए दावों को छोड़कर अब नए सिरे से जुटना होगा। बीजेपी जैसा गांव गांव में कैडर तैयार करना होगा। आंदोलनों से जन्मी पार्टी को विरोधियों के खिलाफ फिर आंदोलन खड़ा करना होगा। क्योंकि बीजेपी जैसी पार्टी का मुकाबले कमजोर कैडर से हो ही नहीं सकता।