चुनावी चक्रव्यूह…सोशल इंजीनियरिंग…आगे कौन? जिसे मिलेगा इन दो वर्गों का आ​शीर्वाद वही होगा सत्ता में काबिज

जिसे मिलेगा इन दो वर्गों का आ​शीर्वाद वही होगा सत्ता में काबिज! Electoral Chakravyuh...Social Engineering...Who's Next?

चुनावी चक्रव्यूह…सोशल इंजीनियरिंग…आगे कौन? जिसे मिलेगा इन दो वर्गों का आ​शीर्वाद वही होगा सत्ता में काबिज
Modified Date: November 29, 2022 / 08:38 pm IST
Published Date: April 30, 2022 12:01 am IST

सुधीर दंडोतिया, भोपाल: Electoral Chakravyuh Bhopal यही वो गणित है, जो एमपी में सत्ता का समीकरण तय करते हैं। खास तौर पर दलित और आदिवासी वोट बैंक सत्ता की सीढ़ी है, जिसे बीजेपी और कांग्रेस बारी-बारR से इस्तेमाल करती आई है। 2018 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की बड़ी वजह सोशल इंजीनियरिंग ही रही, जिसमें वो बीजेपी पर 20 साबित हुई। पिछली गलतियों से सबक लेते हुए बीजेपी मिशन 2023 की तैयारी में जुटी है। पिछले 6 महीने में बीजेपी सरकार और संगठन इसी रणनीति पर काम कर रही है।

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Electoral Chakravyuh पीएम मोदी का एमपी से जनजातीय गौरव दिवस की शुरुआत। गृहमंत्री अमित शाह का भोपाल में वन समितियों के सम्मेलन में तेंदूपत्ता संग्राहकों को सौगात देना या फिर अंबेडकर जयंती पर सीएम शिवराज का बाबा साहेब की जन्मस्थली महू पहंचना। साफ संदेश है कि बीजेपी सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर काम शुरू कर चुकी है।

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एक ओर बीजेपी आदिवासी और दलितों के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं बना रही हैं तो दूसरी और अल्पसंख्यकों से दूरी बनाती नजर आ रही है। राज्य अल्पसंख्यक आयोग पिछले लगभग दो साल से खाली पड़ा हुआ है। इस दौरान यहां एक भी मामले की सुनवाई नहीं हुई। आयोग दो साल से सिर्फ पोस्ट ऑफिस की तरह इधर की चिट्ठी उधर भेजने का काम कर रहा है, जिसे लेकर कांग्रेस हमलावर है।

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बीजेपी की मोर्चेबंदी करने कांग्रेस भी अपने संगठन और विधायक दल में नई जमावट करने जा रही है। आदिवासी वर्ग को साधने के लिए विक्रांत भूरिया को प्रदेश युवक कांग्रेस की कमान पहले ही सौंपी जा चुकी है। इसके अलावा दलित और आदिवासी वर्ग से आने वाले नेताओं को भी संगठन में प्रमुख पद सौंपने पर विचार चल रहा है।

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आंकड़ों की बात करें तो मध्यप्रदेश में दलित और आदिवासी आबादी सीधे-सीधे सूबे की सियासत को प्रभावित करते हैं। शायद यही वजह है कि दलित और आदिवासी वोटरों को अपने पाले में करने की रणनीति बनने लगी है। जाहिर है आगामी विधानसभा चुनाव में इन दोनों वर्गों का आशीर्वाद जिस दल को मिलेगा, उसके सत्ता में आने की संभावना बढ़ जाएगी।

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