भोपाल: कांग्रेस हार के सदमें मे है। वो हार जो ऐतिहासिक हो चुकी है। क्योंकि अब तक एमपी में कांग्रेस की इतनी बुरी हार हुई नहीं थी। जाहिर है अब कांग्रेस के भीतर के जयचंदों को चिन्हित कर उन पर एक्शन की तैयारी है, लेकिन सवाल ये है कि कांग्रेस की इस सर्जरी का पैमाना आखिर क्या होगा? क्या पार्टी को कमजोर करने वाले इस बार भी बच जाएंगे या फिर उन्हें सच मे सजा मिलेगी? सवाल ये भी है कि क्या कार्रवाई बड़े नेताओं पर भी होगी या फिर इस बार भी प्यादे ही शहीद हो जाएंगे?
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कांग्रेस हाल के दोनों चुनावों में बुरी तरह हार चुकी है। लोकसभा चुनावों में तो कांग्रेस पूरे प्रदेश से साफ हो गयी है। जाहिर है अब कांग्रेस को बड़ी सर्जरी की ज़रुत महसूस हो रही है और उस सर्जरी के लिए हाईकमांड ने एमपी कांग्रेस प्रभारी जितेंद्र सिंह को फ्री हैंड भी दे दिया है। खबर मिली है कि लोकसभा चुनावों में हार की पूरी रिपोर्ट तैयार हो चुकी है। बस अब कार्रवाई का इंतजार है और उस कार्रवाई के लिए एक बैठक की औपचारिकता भर बची है।
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अंदरखाने की मानें तो कांग्रेस की इंटरनल रिपोर्ट में कई जिलाध्यक्षों की नीयत पर भी सवाल खड़े हुए हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कई पदाधिकारियों ने चुनावों में शिद्दत से काम नहीं किया। लोकसभा चुनावों के प्रभारियों ने भी कामचोरी की। पीसीसी और एआईसीसी को ऑब्जर्वरों ने गलत फीडबैक दिया। कांग्रेस के मंडलम और सेक्टर पर काम करने वाले पदाधिकारियों ने कांग्रेस की गारंटी को वोटर्स तक नहीं पहुंचाया।
ना सिर्फ पीसीसी के पदाधिकारियों की रिपोर्ट जुटायी गयी है। बल्कि बूथ पर काम करने वाले कांग्रेस वर्कर और पोलिंस एजेंट्स के आखिरी मौके पर गच्चा देना भी कांग्रेस की रिपोर्ट में शामिल है। अब हाईकमांड के सामने संकट तो ये है कि कैसे एमपी में कांग्रेस को खड़ा किया जाए। क्योंकि जीतू पटवारी की कप्तानी कांग्रेस के कई क्षत्रपों को हजम नहीं हो रही है। पटवारी पर मनमानी करने के आरोप लग रहे हैं। पटवारी के कार्यकाल में 20 हजार कार्यकर्ताओं के पार्टी छोड़ने की चर्चाएं दिल्ली में हो रही हैं।
ना सिर्फ कार्यकर्ता बल्कि सुरेश पचौरी जैसे खाटी कांग्रेस नेताओं और मौजूदा विधायकों का कांग्रेस छोड़ना भी आलाकमान को बड़ा फैसला लेने पर मजबूर कर रहा है, लेकिन सवाल तो ये कि कांग्रेस की सर्जरी किस हद तक जाएगी। लेकिन बीजेपी कांग्रेस की खींचतान पर चुटकी ज़रुर लेने लगी है।
एमपी में अब जरुरत सिर्फ कांग्रेस की सर्जरी की नहीं बल्कि मध्यप्रदेश को एक मजबूत विपक्ष देने की है। लेकिन दोनों चुनावों में मिली करारी हार, कार्यकर्ताओं के मनोबल कांग्रेस कैसे रिकवर करेगी। ये कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती है।
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