भोपाल। Face To Face Madhya Pradesh मप्र का भविष्य ईवीएम में कैद है। अगली सरकार का फैसला 3 दिसंबर को आने वाले नतीज़ों के बाद होगा लेकिन अगली सरकार चाहे जिस भी पार्टी की आए उसे सबसे पहले एक बड़ी चनौती से जूझना होगा और वो चुनौती होगी। कर्ज के तले सरकारी खजाने की ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि मप्र सरकार एक बार फिर दो हज़ार करोड़ का कर्ज लेने जा रही है। पिछले महीने चार हज़ार करोड़ का कर्ज लेने के बाद मप्र के ऊपर अब तक 3 लाख 70हज़ार करोड़ रूपये हो गया है। बढ़ते कर्ज के बीच एमपी में कर्ज की सियासत भीजारी है।
Face To Face Madhya Pradesh 3 लाख 85 हज़ार करोड़ 3 दिंसबर को मध्यप्रदेश में जिसकी भी सरकार बनेगी, उसे कर्ज की ये राशि चुकानी होगी। वहीं प्रदेश का हर नागरिक 50 हज़ार कर्ज से दबा होगा। दरअसल मध्यप्रदेश सरकार ने 8 महीनों में 38500 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है। यानी साल के अंत तक मध्यप्रदेश का कर्ज बजट से 70 हज़ार करोड़ ज्यादा हो जाएगा। कर्ज के मामले में मध्यप्रदेश सरकार अपने सालाना बजट को भी पीछे छोड़ चुकी है और ये बोझ दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है। शिवराज सरकार का 2023-24 का बजट 3 लाख 14 हज़ार 25 करोड़ है 31 मार्च 2022 तक प्रदेश का कुल कर्ज 3 लाख 31 हज़ार 651 करोड़ रुपए था। जो बीते आठ महीनों में बढ़कर 3 लाख 70 हज़ार 151 करोड़ हो गया है। इस साल के अंत तक कर्ज 3 लाख 85 हज़ार करोड़ होगा।
मप्र विधानसभा चुनाव में इस बार खुलकर रेवड़ी बांटी गई है। कांग्रेस ने लोगों को सहूलियतें और रियायतें देने के लिए 11 गारंटी दी हैं महिलाओं को 1500 रुपये महीने 500 रूपये में सिलेंडर 100 यूनिट बिजली मुफ्त किसानों का कर्जा माफ करने का वादा शामिल है तो बीजेपी सरकार भी 23 हज़ार करोड़ की चुनावी योजनाएं लागू कीं इसी कवायद के चलते प्रदेश के खर्च और कर्ज भी लगातारबढता गया। अब दोनों ही दल कर्ज के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
सरकारें चाहे राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस की हों या यूपी और एमपी में बीजेपी की सरकारें चुनाव जीतने के लिए जमकर मुफ्त की रेवड़ियां बांट रही हैं कर्ज लेकर घी पी रही हैं। लेकिन फ्री वीज़ की आलोचना कर चुकी केंद्र सरकार अब चुनावी रण जीतने उन्हीं राज्यों के आगे अपनी विवषता का रोना रो रही है।
सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल चुनाव में जमकर पैसा लुटाती हैं। चाहे वो चुनाव प्रचार हो या फिर वोटर्स को लुभाने रेवड़ी पॉलिटिक्स आखिर पैसा तो देश के 50करोड़ टैक्सपैयर्स की जेब से ही जा रहा है. ऐसे में सवाल है कि कर्ज सहारे सरकार चलाने की परंपरा देश को किस ओर ले जाएगा।