इंदौर, चार दिसंबर (भाषा) मध्यप्रदेश के भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री विजय शाह ने बृहस्पतिवार को कहा कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे की करीब 900 टन वजनी राख से किसी भी व्यक्ति को घबराने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने भरोसा दिलाया कि उच्चतम न्यायालय और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के मुताबिक इस राख का उचित निपटारा किया जाएगा।
भोपाल में दो और तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। इससे कम से कम 5,479 लोग मारे गए थे और हजारों लोग अपंग हो गए थे। इसे दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में गिना जाता है।
भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री शाह ने इंदौर में संवाददाताओं से कहा,‘‘इस त्रासदी को 41 साल हो गए। लोगों में इस बात को लेकर भय व्याप्त था कि यूनियन कार्बाइड कारखाने का कचरा जहरीला है। हमारी सरकार ने लोगों को इस भय से मुक्त करते हुए पूरे कचरे को जला दिया है। अब केवल इसकी राख बची है।’’
इस राख का निपटारा पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में नहीं किए जाने को लेकर स्थानीय लोगों की मांग पर उन्होंने कहा,‘‘हम इस राख का उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के मार्गदर्शन में उचित निपटारा कर देंगे। किसी भी व्यक्ति को (इस राख से) घबराने की जरूरत नहीं है।’’
काबीना मंत्री ने हालांकि स्पष्ट नहीं किया कि इस राख का निपटारा पीथमपुर में किया जाएगा या नहीं।
अधिकारियों के अनुसार फिलहाल यह राख पीथमपुर में एक निजी कंपनी के संचालित अपशिष्ट निपटान संयंत्र के ‘लीक-प्रूफ स्टोरेज शेड’ में सुरक्षित तौर पर रखी गई है।
पीथमपुर के लोग मांग कर रहे हैं कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे की ‘जहरीली राख’ का निपटारा इस संयंत्र में बनाए जा रहे विशेष ‘लैंडफिल सेल’ (कई परतों वाला गड्ढा) के बजाय किसी निर्जन स्थान पर किया जाना चाहिए। उन्हें आशंका है कि किसी दुर्घटना या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में ‘लैंडफिल सेल’ से इस राख के बाहर आने पर मानवीय आबादी और आबो-हवा को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है।
गैस त्रासदी के बाद से भोपाल में बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने के 337 टन विषैले अपशिष्ट, 19 टन संदूषित मिट्टी और 2.2 टन पैकेजिंग सामग्री समेत कुल 358 टन की खेप को सूबे की राजधानी से करीब 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर के संयंत्र में इस साल दो जनवरी को पहुंचाया गया था।
अपशिष्ट की इस खेप को अलग-अलग चरणों में भस्म करने की प्रक्रिया जुलाई की शुरुआत में संपन्न हुई थी। इसे वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत संयंत्र में चूना और अन्य चीजों को मिलाकर भस्म किया गया था जिससे लगभग 900 टन राख उत्पन्न हुई थी।
अधिकारियों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने इस राख को पीथमपुर के संयंत्र में ही निर्माणाधीन ‘लैंडफिल सेल’ में डालकर इसके निपटारे की योजना बनाई थी।
बहरहाल, उच्च न्यायालय की जबलपुर स्थित मुख्य पीठ ने आठ अक्टूबर को इस प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उक्त निपटान स्थल इंसानी आबादी के बेहद नजदीक है।
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश भी दिया था कि वह एक रिपोर्ट दाखिल करे जिसमें इस राख के निपटान के लिए वैकल्पिक स्थलों का उल्लेख हो।
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