ग्वालियर: condition of Gwalior innovations मध्य प्रदेश सरकार के ई-गवर्नेंस मॉडल के साथ ही आम जन को बेहतर सुविधाएं देने के लिए शुरू किए गए ग्वालियर जिले के पांच नवाचारों की हालत अब खराब है। जबकि ये नवाचार राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार जीत चुके हैं और इन्हें कुछ राज्यों ने भी लागू किया है। लेकिन ग्वालियर में ही इन नवाचारों को सरकारी उदासीनता और लापरवाही का ही शिकार होना पड़ रहा है।
Poor condition of five innovations ग्वालियर जिले में प्रशासन ने आम लोगों की सहूलियत के लिए कई नवाचार किए थे। इनमें से कई तो पुरस्कृत हुए और दूसरे राज्यों में भी लागू किए गए, लेकिन पिछले कुछ महीनों से कई नवाचार अंतिम सांसें गिन रहे हैं। जिले के लोगों से सीधे संवाद के लिए ग्वालियर कलेक्टर और ग्वालियर एसपी नाम से बने फेसबुक फेज, वॉट्सएप ग्रुप भी महज सरकारी खबरों को शेयर करने का जरिया भर बनकर रह गए हैं। आम लोगों के सवालों और परेशानियों के हल के लिए अफसर कभी जवाब तक नहीं देते, जिस पर अब राजनीति हो रही है।
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ग्वालियर के पांच बड़े नवाचार, जो शुरू तो जोर शोर से हुए थे, लेकिन कुछ ही महीनों में अनदेखी का शिकार हो गए। दिव्यांगों के लिए बाधारहित वातावरण बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुके हैं। कई राज्यों में भी इस कॉन्सेप्ट को लागू किया गया लेकिन ग्वालियर में अब तक दिव्यांगों को बाधारहित वातावरण नहीं मिल सका है।
वहीं, 25 पहाड़ियों को हरा भरा कर राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले जिले में 63 करोड़ के पौधे लगाए जा चुके हैं। लेकिन गर्मी के सीजन में छांव नजर नहीं आती। आम जनता की परेशानियों को स्पॉट पर ही दूर करने के लिए 2009 में शुरू हुआ जनमित्र समाधान केंद्र भी बंद है। अधिकारियों-कर्मचारियों के वक्त पर दफ्तर आने-जाने को लेकर बायोमैट्रिक हाजिरी शुरू हई थी लेकिन कार्यालय अधीक्षकों के साथ मिलकर कर्मचारियों ने इस नवाचार की भी बैंड बजा दी। बीजेपी का कहना है कि कोरोना काल में ऐसे हालात बने, लेकिन अब दोबारा सभी व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया जा रहा है।
ग्वालियर जिला प्रशासन ने नवाचारों की दम पर कई पुरस्कार जीते लेकिन इसके बाद इन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। पिछले दो साल से तो इन नवाचारों की सुध लेने वाला तक कोई नहीं है।
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