Ratlam News: आत्मा लेने के लिए मेडिकल कॉलेज पहुंचे आदिवासी, ढोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते, घंटेभर पूजा की… फिर जो हुआ देखकर दंग रह गए लोग

Ratlam News: आत्मा लेने के लिए मेडिकल कॉलेज पहुंचे आदिवासी, ढोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते, घंटेभर पूजा की... फिर जो हुआ देखकर दंग रह गए लोग

Ratlam News: आत्मा लेने के लिए मेडिकल कॉलेज पहुंचे आदिवासी, ढोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते, घंटेभर पूजा की… फिर जो हुआ देखकर दंग रह गए लोग

Ratlam News/Image Source: IBC24

Modified Date: November 21, 2025 / 05:20 pm IST
Published Date: November 21, 2025 5:19 pm IST
HIGHLIGHTS
  • विज्ञान के युग में पुरानी परंपरा
  • रतलाम मेडिकल कॉलेज में अनोखा मामला
  • कॉलेज में आत्मा लेने पहुँचे आदिवासी परिवार

रतलाम: Ratlam News:  आज के विज्ञान के युग में भी कुछ परंपराएं ऐसी हैं, जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या वाकई आज भी ऐसा हो रहा है। दरअसल ऐसा ही एक वाकया रतलाम मेडिकल कॉलेज में देखने को मिला जहां कुछ लोग ढोल-ढमाके के साथ नाचते-गाते हुए पहुंचे थे। उन्हें देख आसपास के लोगों को लगा कि मामला किसी बालक के जन्म का है या फिर किसी मरीज के ठीक होकर घर जाने की खुशी का है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था।

आत्मा लेने की अजीब परंपरा (Soul taking ritual India)

Ratlam News:  दरअसल ये लोग मेडिकल कॉलेज में आत्मा लेने आए थे। जी हां आत्मा लेने। सुनने में भले ही यह अजीब लगे लेकिन यह आदिवासी समाज की एक परंपरा है। मान्यता है कि आदिवासी परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु जिस स्थान पर होती है, वहां उसकी आत्मा मौजूद रहती है और उस आत्मा को लेने के लिए परिवार के लोग आते हैं। इसके बाद आत्मा को खेत में या गांव के बाहर गातिया (प्रतिमा) लगाकर स्थापित किया जाता है। कुछ दिनों पहले छावनी झोड़ियां गांव के शांतिलाल नामक व्यक्ति की कीटनाशक पीने से इलाज के दौरान मेडिकल कॉलेज में मृत्यु हो गई थी। और उसी की आत्मा लेने के लिए परिवार के लोग ढोल-नगाड़े के साथ नाचते-गाते पहुंचे थे। इसके बाद वे एक सांकेतिक पात्र में मृतक की आत्मा लेकर घर की ओर रवाना हुए।

डिकल कॉलेज में नाचते-गाते पहुंचे लोग (Ratlam medical college news)

Ratlam News:  हालांकि आदिवासी समाज की परंपरा होने के कारण उन्हें किसी ने भी रोका नहीं। इस प्रकार की परंपराएं जिला अस्पताल सहित कई क्षेत्रों में देखी जाती हैं, जहां किसी आदिवासी व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है। हालांकि समय के साथ अब यह मान्यता खत्म होती जा रही है। कुछ परिवारों के अलावा, अब अधिकांश आदिवासी समाज इस परंपरा को छोड़ते जा रहे हैं। पढ़ी-लिखी आदिवासी पीढ़ी अब इस मान्यता को पीछे छोड़ रही है।

 ⁠

यह भी पढ़ें


सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्नः

लेखक के बारे में

टिकेश वर्मा- जमीनी पत्रकारिता का भरोसेमंद चेहरा... टिकेश वर्मा यानी अनुभवी और समर्पित पत्रकार.. जिनके पास मीडिया इंडस्ट्री में 12 वर्षों से अधिक का व्यापक अनुभव हैं। राजनीति, जनसरोकार और आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से सरकार से सवाल पूछता हूं। पेशेवर पत्रकारिता के अलावा फिल्में देखना, क्रिकेट खेलना और किताबें पढ़ना मुझे बेहद पसंद है। सादा जीवन, उच्च विचार के मानकों पर खरा उतरते हुए अब आपकी बात प्राथिकता के साथ रखेंगे.. क्योंकि सवाल आपका है।