बैठकों का दौर, क्या पक रहा है? मीटिंग…मंत्रणा और मंथन से मध्यप्रदेश की पॉलीटिक्स पर क्या होगा असर?

बैठकों का दौर, क्या पक रहा है? What will be the effect on politics of Madhya Pradesh due to the meeting, read news

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  • Publish Date - November 30, 2021 / 11:20 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:13 PM IST

effect on politics of Madhya Pradesh : भोपालः 15 नबंबर को मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री के दौरे के बाद से भाजपा खेमें एक के बाद एक पदाधिकारियों के प्रवास और ताबड़तोड़ मीटिंग का दौर चर्चा का विषय बना हुआ है। विपक्ष इस पर निशाना तो साध रहा है लेकिन साथ ही इस पूरी कवायद से अलर्ट भी है। भाजपा खेमा इसे बेहद सामान्य और सतत प्रक्रिया बताकर सवालों को शांत करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन फिर भी सबसे अहम सवाल यही है कि आखिर भाजपा आलाकमान की इस कसावट के क्या मायने हैं।

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बीते 8 दिनों में भाजपा संगठन में हुई ताबड़तोड़ बैठकों, मुलाकातों से ये तो साफ है कि मध्यप्रदेश को लेकर आलाकमान बेहद संजीदा हैं। 15 नवंबर को प्रधानमंत्री के दौरे के करीब एक सप्ताह बाद से ये सिलसिला शुरु हुआ है। 24 नवंबर को संभागवार विधायकों से वन-टू-वन मुलाकात शुरू हुई। 25 नवंबर संभागवार विधायकों से मुलाकात का दूसरा दिन, 26 नवंबर बीजेपी कार्यसमिति की बैठक, 27 नवंबर को बीजेपी का प्रशिक्षण वर्ग, 28 नवंबर को बीएल संतोष ने बीजेपी मोर्चा प्रकोष्ठ और निगम मंडल अध्यक्षों से चर्चा, 29 नवंबर को बी एल संतोष ने की मंत्रियों से मुलाकात, 30 नवंबर को बी एल संतोष मंडल स्तरीय बैठक में रहे मौजूद। एक के बाद एक ताबड़तोड़ बैठकों को चल रही चर्चाओँ पर बीजेपी नेताओं का दावा है कि ये तो पार्टी में एक रुटीन प्रक्रिया है।

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दरअसल, आलाकमान की इस वक्त ऐसी कसावट पर सवाल इसीलिए उठे क्योंकि…मौजूदा वक्त में चुनौती…यूपी, पंजाब समेत पांच राज्यों में होने वाले उपचुनाव है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या मध्यप्रदेश संगठन को एक मॉडल के तौर पर खड़ा करने की तैयारी है। क्या बीजेपी संगठन के आदिवासियों में पैठ की रणनीति पर है बड़े नेताओं का फोकस। क्या सिंधिया समर्थकों के साथ और बेहतर समन्वय की है कवायद। वजह चाहे जो भी हो लेकिन बीजेपी की इस सक्रियता ने कांग्रेस का ध्यान जरूर खींचा है।

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वैसे बीते दशकों से बीजेपी के लिए किसी भी फॉर्मूले को अजमाने के लिए मध्यप्रदेश सबसे पसंदीदा जगह रही है। राजमाता सिंधिया, कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खंडेलवाल, कैलाश जोशी, कैलाश सारंग, सुंदरलाल पटवा ऐसे कई नाम है, जिन्होंने सालों की मेहनत के बाद कांग्रेस के खिलाफ पूरे प्रदेश में नेटवर्क खड़ा किया, लेकिन इस बार की जमावट और सत्ता में भागीदार नेताओं की कसावट के क्या मायने हैं। किस चीज की तैयारी है और उसका प्रदेश की पॉलीटिक्स पर क्या असर होगा ये बड़ा सवाल है?