शह मात The Big Debate: सियासी दंगल में ‘नवाब’..गद्दार या खुद्दार..कौन दे जवाब? मध्यप्रदेश में नाम बदलने को लेकर बखेड़ा क्यों? देखिए पूरी रिपोर्ट

MP News: सियासी दंगल में 'नवाब'..गद्दार या खुद्दार..कौन दे जवाब? मध्यप्रदेश में नाम बदलने को लेकर बखेड़ा क्यों? देखिए पूरी रिपोर्ट

शह मात The Big Debate: सियासी दंगल में ‘नवाब’..गद्दार या खुद्दार..कौन दे जवाब? मध्यप्रदेश में नाम बदलने को लेकर बखेड़ा क्यों? देखिए पूरी रिपोर्ट

MP News | Photo Credit: IBC24

Modified Date: July 26, 2025 / 12:18 am IST
Published Date: July 26, 2025 12:18 am IST
HIGHLIGHTS
  • नगर निगम में नाम बदलने का प्रस्ताव
  • गद्दार" नारे और विरोध
  • दान में दी गई जमीन बनाम राजनीतिक एजेंडा

भोपाल: MP News यूँ तो नाम बदलने की सियासत देश में आप लगातार देखते सुनते आ रहे हैं। लेकिन ये एक क़दम आगे जाकर खुद्दारी और ग़द्दारी तक चली गई है। कल भोपाल नगर निगम में एक प्रस्ताव आया कि भोपाल के सबसे पुराने अस्पताल, कॉलेज और स्कूल के नाम से हमीदिया शब्द हटाया जाए। यहाँ तक सामान्य था लेकिन इसके समर्थन में जो नारे लगे। वो ”गद्दार गद्दार” के थे, लिहाज़ा मुस्लिम पार्षदों ने इस पर आपत्ति उठाई। इसमें कोई दो राय नहीं कि नवाब हमीदुल्लाह पाकिस्तान के ज्यादा निकट थे और वे पाकिस्तान में ही भोपाल का विलय चाहते थे। इसी वजह से भोपाल देश की आज़ादी के वक्त आज़ाद होने के बजाय तकरीबन दो साल बाद आज़ाद हुआ। अब इस मसले ने सियासी चश्मा पहन लिया है। समर्थन में पूरी भगवा ब्रिगेड है और विरोध में कुछ मुस्लिम नेता, वहीं इसी मामले की कि नवाब ने कोई आजकल में तो ये ग़द्दारी की नहीं, भाजपा की सरकार भी आजकल में आई नहीं, फिर नवाब की ग़द्दारी अचानक उभरने की वज़ह क्या है? इसकी टाइमिंग क्या है? हमीदिया स्कूल और अस्पताल का नाम बदलने से किसे सियासी फायदा या नुकसान होगा?

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नगर निगम परिषद की बैठक में ये हंगामा हमीदिया अस्पताल,स्कूल, कॉलेज के नाम बदलने के प्रस्ताव पर चल रहा है। आप सुन रहे होंगे भाजपा के पार्षद कह रहे हैं कि नवाब हमीदुल्लाह खान गद्दार थे। उनके नाम क्यों कोई इमारत रहनी चाहिए। दरअसल 20 अप्रैल 1926 – 1 जून 1949 तक भोपाल के अंतिम नवाब का शासन रहा। यही तारीख़ सारे फसाद की जड़ है क्योंकि उन्होंने देश की आज़ादी के बाद भी भोपाल रियासत को आज़ाद नहीं होने दिया। वो जिन्ना के करीबी थे और चाहते थे कि भोपाल पाकिस्तान में मिल जाए लेकिन भौगोलिक बाध्यताओं ने ऐसा होने नहीं दिया। प्रस्ताव नगर निगम में आया लेकिन समर्थन में उसी विभाग के मंत्री जी फ़ौरन खड़े हो गए, जिनके विभाग के अंदर ये हमीदिया अस्पताल आता है।

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अब इसका दूसरा पहलु भी है। जिन ज़मीनों पर ये अस्पताल और स्कूल,कॉलेज बने हैं वो नवाब की ही दान की हुई है। हालाँकि जब भोपाल आज़ाद हुआ था तब एक मर्जर एग्रीमेंट हुआ था। जिसमें नवाब को भोपाल की असीमित ज़मीन मिली। जिसे उनके वारिस आज तक खुर्द-बुर्द कर रहे हैं। बहरहाल, इस प्रस्ताव का विरोध करने वाले नेताओं को तर्क का जो सिरा हाथ लगा है, वो भी इसी पर ज्यादा ज़ोर देता हुआ है कि ज़मीन तो नवाब की ही थी।

 

इससे पहले भी भोपाल में नवाबी दौर के कई नाम बदले गए। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम भी रानी कमलापती के नाम पर किया गया लेकिन इतने मुखर होकर नवाब को गद्दार कहते हुए नहीं बल्कि सामान्य तरीके से तब फरमान नगरनिगम के बजाय सीधे सरकार के स्तर से आया। देश के साथ ग़द्दारी वाले भाव को प्रमुखता से जब मौजूदा दौर में उकेरा जाता है, तो उसके पीछे कारण मौजूदा आक्रोश नहीं बल्कि सियासी ज्यादा होते हैं और ये भी तय है कि इसकी कैफ़ियत देने नवाब तो आने रहे।


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