Bombay High Court : बॉम्बे हाईकोर्ट ने PFI सदस्यों को जमानत देने से किया इनकार, कहा- ‘भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने की रची थी साजिश’

Bombay High Court refuses to grant bail to PFI members, says 'There was a conspiracy to make India an Islamic nation'

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  • Publish Date - June 13, 2024 / 06:32 PM IST,
    Updated On - June 13, 2024 / 06:32 PM IST

Bombay High Court on Three PFI Members

Bombay High Court on Three PFI Members : मुंबई। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के तीन सदस्यों की जमानत याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला सुनाया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पीएफआई के तीन सदस्यों की जमानत याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने तीनों को यह कहते हुए जमानत देने से इन्कार कर दिया कि उन्होंने 2047 तक भारत को एक इस्लामिक देश में बदलने की साजिश रची थी। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया तीनों के खिलाफ सबूत हैं।

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न्यायमूर्ति अजय गडकरी, न्यायमूर्ति श्याम चांडक की खंडपीठ ने रजी अहमद खान, उनैस उमर खैय्याम पटेल और कय्यूम अब्दुल शेख की जमानत याचिका खारिज की। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी व्यक्तियों ने आपराधिक बल का उपयोग करके सरकार को डराने की साजिश रची। केंद्र ने 2022 में पीएफआई को प्रतिबंधित कर दिया था।

क्या कहा बॉम्बे हाईकोर्ट ने?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जांच के रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि अपीलकर्ताओं ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर आपराधिक बल का उपयोग करके सरकार को डराने की साजिश रची। प्रथम सूचना रिपोर्ट स्वयं-वाक्पटु है। गवाहों के बयानों और आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से जब्त किए गए दस्तावेजों के रूप में रिकॉर्ड पर पर्याप्त से अधिक सामग्री उपलब्ध है, जो यह दर्शाती है कि, उन्होंने आपराधिक बल का उपयोग करके सरकार को डराने के लिए समान विचारधारा वाले लोगों को अपने साथ शामिल करने की गतिविधि में लिप्त थे। उन्होंने 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बनाने की भी साजिश रची। वे न केवल प्रचारक हैं, बल्कि अपने संगठन के विजन-2047 दस्तावेज को सक्रिय रूप से लागू करने का इरादा रखते हैं।”

उन्होंने कथित तौर पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए मुस्लिम समुदाय के भीतर एकता की आवश्यकता पर जोर दिया और उपस्थित लोगों को सरकार विरोधी माहौल बनाने के लिए समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के साथ संवाद करने के लिए प्रोत्साहित किया। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है कि मालेगांव में पीएफआई के कथित प्रमुख ने मुस्लिम धर्म के खिलाफ बोलने वाले किसी भी व्यक्ति की हत्या करने का आह्वान करते हुए ‘फतवा’ जारी किया।

कोर्ट ने आगे कहा कि 20 से अधिक गवाहों के बयान, एसोसिएशन के सदस्यों के बीच कई बातचीत और भारी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य यह प्रदर्शित करते हैं कि अपीलकर्ताओं ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर व्यवस्थित रूप से ऐसी गतिविधियाँ की हैं जो राष्ट्र के हित और अखंडता के लिए हानिकारक हैं…भले ही आज तक कोई प्रत्यक्ष कार्य या उल्लंघन नहीं किया गया हो, रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि आईपीसी की धारा 121 के तहत दंडनीय अपराध/अपराधों को अंजाम देने की साजिश का प्रथम दृष्टया सबूत बनता है”।

अदालत ने पाया कि साक्ष्यों से पता चलता है कि अपीलकर्ताओं ने राज्य के खिलाफ नफरत फैलाने, व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर राष्ट्र विरोधी एजेंडा फैलाने और राष्ट्र के हित के लिए हानिकारक संदेश प्रसारित करने में भाग लिया।

तीनों पर मामला दर्ज

बैठक के बाद महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने संदिग्ध पीएफआई सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश रचने, धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था।

 

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