जनादेश के नाम पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाना तानाशाही: आरएसएस नेता

जनादेश के नाम पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाना तानाशाही: आरएसएस नेता

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  • Publish Date - April 25, 2025 / 12:30 AM IST,
    Updated On - April 25, 2025 / 12:30 AM IST

मुंबई, 24 अप्रैल (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ नेता ने बृहस्पतिवार को कहा कि जनादेश के नाम पर अपना एजेंडा आगे बढ़ाना तानाशाही है। उन्होंने कहा कि जो लोग ईमानदार राजनीति करना चाहते हैं, उन्हें लोगों को सच बताना चाहिए और आम सहमति बनानी चाहिए।

यहां एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ के प्रचार प्रभारी सुनील आंबेकर ने विचारशील संवाद और समावेशी सार्वजनिक संवाद की संस्कृति की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘यदि कुछ लोग जनादेश के नाम पर अपना एजेंडा आगे बढ़ाते हैं, तो यह तानाशाही बन जाती है और यह गलत है। सभी को संयम के साथ और राष्ट्रीय हित में अपने विचार व्यक्त करने चाहिए।’’

आंबेकर ने कहा, ‘‘जो लोग ईमानदार राजनीति करना चाहते हैं, उन्हें लोगों को सच बताना चाहिए, उनकी राय को आकार देना चाहिए, उन्हें भविष्य में अच्छे कार्यों के लिए तैयार करना चाहिए तथा आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए।’’

आरएसएस नेता ने सियासी नेताओं के समर्थकों की चुप्पी के प्रति आगाह करते हुए कहा कि बड़े समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख संगठनों को व्यापक हित में बोलना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘यदि समर्थक कहते हैं कि उन्हें बोलने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके नेता ऐसा करेंगे, तो कुछ लोग जनादेश की आड़ में अपना एजेंडा आगे बढ़ाते रहेंगे। लेकिन मौन रहकर आम सहमति नहीं बनाई जा सकती।’’

आंबेकर ने संघ विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों की सराहना करते हुए जनमत को आकार देने में अच्छे व्यक्तियों और संस्थाओं की भूमिका को रेखांकित किया।

संघ नेता ने कहा, ‘‘हर राजनीतिक दल लोगों को प्रभावित करने के लिए अभियान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करता है। लेकिन अच्छे लोग और अच्छी संस्थाएं ही सही मायने में सार्थक तरीके से राय को आकार दे सकती हैं। उपाध्याय ने भी इस पर जोर दिया था और यह स्वस्थ समाज के लिए महत्वपूर्ण है।’’

पहलगाम आतंकवादी हमले के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘‘यह एक दुर्भाग्यपूर्ण हमला था। मुझे विश्वास है कि कड़ी कार्रवाई होगी।’’

आंबेकर ने पूर्व के विमर्श पर कहा, ‘‘विगत साठ वर्षों तक एक अभियान ने लोगों के मन में यह विश्वास पैदा किया कि हिंदू मुस्लिम बहुल इलाकों में नहीं रह सकते। धर्मनिरपेक्ष आवाजों ने इसका बचाव किया और कई मीडिया घरानों ने भी इसे दोहराया। अब सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है और अदालतों ने भी संबंधित मुद्दों पर महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं।’’

भाषा धीरज प्रशांत

प्रशांत