Indian Wedding Rituals/Image Source: IBC24
Indian Wedding Rituals: हिन्दू शादियों में अक्सर एक दृश्य देखा जाता है, जो हर किसी को रुला देता है। जब दुल्हन विदाई के वक़्त, रोते रोते पीठ पीछे मुट्ठी भर चावल (या अक्षत) तीन या पाँच बार फेंकती हुई मायके की चौखट लांघती है। तब परिवार के लोग अपने आँसू नहीं रोक पाते, ख़ास कर माता-पिता, भाई – बहन। ये दृश्य लगभग हर हिंदू शादी में देखने को मिलता है, लेकिन बहुत कम लोग इसके पीछे की वास्तविकता और गहरे महत्व जान पाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये चावल (या अक्षत) की मुट्ठियाँ सिर्फ़ रस्म नहीं, बल्कि बेटी का अपने माता पिता को आखिरी “धन्यवाद” और “माफ़ी” होती हैं? आईये जानते हैं सदियों पुराणी परंपरा का सच..
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, जीवन में 3 ऋण सबसे महत्वपूर्ण बताये गए हैं : “देव ऋण”, “ऋषि ऋण” और “पितृ ऋण”। माता – पिता के घर, पुत्री के जन्म से पितृ-ऋण बनता है। तत्पश्चात उसके ब्याह के समय, पुत्री का कन्यादान करने से माता-पिता इस ऋण से मुक्त हो जाते हैं।
माता-पिता द्वारा किए गए बलिदानों का ऋण, संतान चाह कर भी कभी नहीं चूका सकती। इसलिए, विदाई के वक़्त दुल्हन देहलीज़ पर खड़ी, आँसुओं से भरी हुई आँखें, हाथ में मुट्ठी भर चावल.. अपने पीछे की ओर फेंककर प्रतीकात्मक रूप से कहती है कि “मम्मी-पापा ! आपने मुझे जो प्यार दिया, जो संस्कार दिए, जो अन्न खिलाया, मेरा पालन पोषण किया,, उसका एक अंश मैं आपको लौटा रही हूँ। अब मैं आपके ऋण से मुक्त होकर, नए घर जा रही हूँ। इसलिए, चावल (अक्षत) को ऋण-मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार, चावल पीछे की और फेंकने का अर्थ ये है कि मैं अपना बचपन, अपनी पुरानी पहचान, पुराने जीवन के सारे बंधनों को छोड़कर पूरी तरह से नए जीवन में प्रवेश कर रही हूँ। दरअसल, विदाई में दुल्हन जब चावल फेंक रही होती है, तो वो चावल नहीं बल्कि अपने बचपन के बिताये हुए हसीन पल, आँसूं, अपनी माँ की गोद की गर्मी, अपने पिता के कंधे की मज़बूती लौटा रही होती है। इसलिए वो चावल माता-पिता ज़मीन पर गिरने नहीं देते, वे सीधे इसे अपने दिल में समां लेते हैं।
भारत में चावल, अन्न, समृद्धि और माँ अन्नपूर्णा का प्रतीक है। विदाई के समय दुल्हन चावल फेंककर, अपने मायके के लिए भगवान से प्रार्थना करती है कि उसके जाने के बाद भी उसके मायके में कभी भी अन्न-धन की कोई कमी न हो, सदा सुख-समृद्धि बनी रहे।
कई क्षेत्रों में माना जाता है कि विदाई के समय दुल्हन तीनों लोकों में सुख-शांति की कामना करती है:
पहली मुट्ठी: पितृलोक (पूर्वजों) के लिए।
दूसरी मुट्ठी: मातृलोक (मायके) के लिए।
तीसरी मुट्ठी: देवलोक के लिए।
Disclaimer:- उपरोक्त लेख में उल्लेखित सभी जानकारियाँ प्रचलित मान्यताओं और धर्म ग्रंथों पर आधारित है। IBC24.in लेख में उल्लेखित किसी भी जानकारी की प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है। हमारा उद्देश्य केवल सूचना पँहुचाना है।