Indian Wedding Rituals: विदाई में दुल्हन पीछे की ओर चावल क्यों फेंकती है? जान लें यह कारण, जिसे सुनकर हर बेटी की आँखें हो जाएंगी नम!

Indian Wedding Rituals: हिन्दू शादियों में सबसे भावुक पल, दुल्हन की विदाई का क्षण होता है, जिसे देख हर किसी की आँखें नम हो जाती हैं। एक तस्वीर, जो हर हिन्दू शादी में देखने को मिलती है, जब विदाई के वक़्त दुल्हन रोते-रोते पीछे की ओर चावल फेंकती हैं। अधिकतर लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि ऐसा क्यों? आईये जानते हैं..

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  • Publish Date - November 22, 2025 / 03:11 PM IST,
    Updated On - November 22, 2025 / 03:42 PM IST

Indian Wedding Rituals/Image Source: IBC24

HIGHLIGHTS
  • "एक मुट्ठी चावल में समाया दुल्हन का पूरा बचपन"
  • जान लें, विदाई में दुल्हन द्वारा चावल फेंकने का गहरा महत्त्व!

Indian Wedding Rituals: हिन्दू शादियों में अक्सर एक दृश्य देखा जाता है, जो हर किसी को रुला देता है। जब दुल्हन विदाई के वक़्त, रोते रोते पीठ पीछे मुट्ठी भर चावल (या अक्षत) तीन या पाँच बार फेंकती हुई मायके की चौखट लांघती है। तब परिवार के लोग अपने आँसू नहीं रोक पाते, ख़ास कर माता-पिता, भाई – बहन। ये दृश्य लगभग हर हिंदू शादी में देखने को मिलता है, लेकिन बहुत कम लोग इसके पीछे की वास्तविकता और गहरे महत्व जान पाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये चावल (या अक्षत) की मुट्ठियाँ सिर्फ़ रस्म नहीं, बल्कि बेटी का अपने माता पिता को आखिरी “धन्यवाद” और “माफ़ी” होती हैं? आईये जानते हैं सदियों पुराणी परंपरा का सच..

Indian Wedding Rituals: विदाई में दुल्हन द्वारा चावल फेंकने का गहरा महत्त्व!

पितृ ऋण से मुक्ति

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, जीवन में 3 ऋण सबसे महत्वपूर्ण बताये गए हैं : “देव ऋण”, “ऋषि ऋण” और “पितृ ऋण”। माता – पिता के घर, पुत्री के जन्म से पितृ-ऋण बनता है। तत्पश्चात उसके ब्याह के समय, पुत्री का कन्यादान करने से माता-पिता इस ऋण से मुक्त हो जाते हैं।

माता-पिता द्वारा किए गए बलिदानों का ऋण, संतान चाह कर भी कभी नहीं चूका सकती। इसलिए, विदाई के वक़्त दुल्हन देहलीज़ पर खड़ी, आँसुओं से भरी हुई आँखें, हाथ में मुट्ठी भर चावल.. अपने पीछे की ओर फेंककर प्रतीकात्मक रूप से कहती है कि “मम्मी-पापा ! आपने मुझे जो प्यार दिया, जो संस्कार दिए, जो अन्न खिलाया, मेरा पालन पोषण किया,, उसका एक अंश मैं आपको लौटा रही हूँ। अब मैं आपके ऋण से मुक्त होकर, नए घर जा रही हूँ। इसलिए, चावल (अक्षत) को ऋण-मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।

पुराने बंधनों को छोड़, नए जीवन में प्रवेश!

मान्यताओं के अनुसार, चावल पीछे की और फेंकने का अर्थ ये है कि मैं अपना बचपन, अपनी पुरानी पहचान, पुराने जीवन के सारे बंधनों को छोड़कर पूरी तरह से नए जीवन में प्रवेश कर रही हूँ। दरअसल, विदाई में दुल्हन जब चावल फेंक रही होती है, तो वो चावल नहीं बल्कि अपने बचपन के बिताये हुए हसीन पल, आँसूं, अपनी माँ की गोद की गर्मी, अपने पिता के कंधे की मज़बूती लौटा रही होती है। इसलिए वो चावल माता-पिता ज़मीन पर गिरने नहीं देते, वे सीधे इसे अपने दिल में समां लेते हैं।

सुख-समृद्धि की कामना!

भारत में चावल, अन्न, समृद्धि और माँ अन्नपूर्णा का प्रतीक है। विदाई के समय दुल्हन चावल फेंककर, अपने मायके के लिए भगवान से प्रार्थना करती है कि उसके जाने के बाद भी उसके मायके में कभी भी अन्न-धन की कोई कमी न हो, सदा सुख-समृद्धि बनी रहे।

तीनो लोकों में सुख-शांति की कामना!

कई क्षेत्रों में माना जाता है कि विदाई के समय दुल्हन तीनों लोकों में सुख-शांति की कामना करती है:
पहली मुट्ठी: पितृलोक (पूर्वजों) के लिए।
दूसरी मुट्ठी: मातृलोक (मायके) के लिए।
तीसरी मुट्ठी: देवलोक के लिए।

Disclaimer:- उपरोक्त लेख में उल्लेखित सभी जानकारियाँ प्रचलित मान्यताओं और धर्म ग्रंथों पर आधारित है। IBC24.in लेख में उल्लेखित किसी भी जानकारी की प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है। हमारा उद्देश्य केवल सूचना पँहुचाना है।

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विदाई के समय दुल्हन चावल क्यों फेंकती है?

दुल्हन चावल फेंककर माता-पिता के पितृ-ऋण से मुक्त होती है और प्रतीकात्मक रूप से कहती है कि “आपने मुझे जो अन्न-स्नेह दिया, उसका हिस्सा लौटा रही हूँ।” साथ ही मायके की सदा समृद्धि की कामना करती है।

क्या चावल की जगह अक्षत या कुछ और फेंक सकते हैं?

बिल्कुल! कई घरों में हल्दी लगे अक्षत (अखंड चावल) फेंके जाते हैं जो और भी शुभ माने जाते हैं। गुजरात-राजस्थान में चावल के साथ सिक्के भी डाले जाते हैं।

चावल कितनी बार फेंकना चाहिए – 3 बार या 5 बार?

ज़्यादातर जगहों पर 3 बार फेंका जाता है (तीन लोकों – पितृ, मातृ, देव के लिए), लेकिन पंजाब, राजस्थान और कुछ ब्राह्मण परिवारों में 5 बार भी फेंकते हैं। दोनों शुभ हैं, संख्या से ज़्यादा भाव महत्वपूर्ण है।

लव मैरिज या कोर्ट मैरिज में भी यह रस्म करनी चाहिए?

अगर माता-पिता ने पालन-पोषण किया है तो बेशक करनी चाहिए। यह रस्म धार्मिक से ज़्यादा भावनात्मक है – माँ-बाप के प्रति कृतज्ञता दिखाने का सबसे सुंदर तरीका है।