Janeu Sanskar Muhurat 2025: ‘जब एक धागा पूरा जीवन बदल देता है..’ जान लें उपनयन संस्कार की विधि, शुभ मुहूर्त, महत्त्व एवं सर्वश्रेष्ठ तिथियाँ!

उपनयन संस्कार केवल एक रिवाज नहीं, बल्कि जीवन की ज्योति ज्वालित करने वाला दीपक है। इसे अपनाकर हम न केवल परंपरा निभाते हैं, बल्कि भावी पीढ़ी को मजबूत नींव देते हैं।

  •  
  • Publish Date - November 3, 2025 / 05:44 PM IST,
    Updated On - November 3, 2025 / 06:41 PM IST

Janeu Sanskar Muhurt 2025

HIGHLIGHTS
  • "जनेऊ की तीन डोरियाँ: माँ, गुरु और स्वयं की अनकही कहानी"!

Janeu Sanskar Muhurat 2025: यह न केवल जनेऊ धारण का समारोह है यह वह खास प्रक्रिया है जो आत्मा को ज्ञान की राह दिखाती है। जहां वह “ब्रह्मचारी” के रूप में एक अनुशासित जीवन की शुरुआत करता है।

Janeu Sanskar Muhurt 2025: क्या होता है उपनयन संस्कार?

उपनयन संस्कार हिंदू धर्म के १६ प्रमुख संस्कारों में से दसवाँ संस्कार है, जिसका अर्थ है “गुरु के निकट ले जाना”। संस्कार जीवन के प्रत्येक चरण को पवित्र बनाने का माध्यम हैं। इनमें उपनयन संस्कार एक ऐसा मील का पत्थर है, जो बालक को बाल्यावस्था से युवावस्था की ओर ले जाता है। इसमें 8 से 12 वर्ष की आयु के बालक (ब्राह्मण के लिए 8, क्षत्रिय के लिए 11, वैश्य के लिए 12) को यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण कराया जाता है, जो तीन सूतों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश यां सत-रज-तम) से बना होता है।

तीन डोरियों का रहस्य

“एक धागा, माँ का आँचल, दूसरा है गुरु का हाथ, तीसरा है स्वयं का संकल्प।”
ये तीन डोरियाँ तेरे तीन जन्म हैं, पहला माँ के गर्भ से, दूसरा गुरु के आशीर्वाद से, तीसरा स्वयं के कर्मों से।”

प्राचीन गुरुकुल प्रथा की याद दिलाता यह संस्कार, आज भी लाखों परिवारों में उत्साह से मनाया जाता है। यह ब्रह्मचर्य आश्रम की शुरुआत का प्रतीक है, जहाँ बालक गायत्री मंत्र की दीक्षा लेता है और वेदाध्ययन का अधिकारी बनता है।
संस्कार की शुरुआत गणेश पूजा से होती है, फिर बालक माँ से भिक्षा मांगता है (विनम्रता सिखाने के लिए), उसके बाद आचार्य (पिता या पंडित) जनेऊ धारण कराते हैं और कान में गायत्री मंत्र (“ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।”) फुसफुसाते हैं। प्रतीकात्मक रूप से बालक “काशी भिक्षा मांगने जाता है”, लेकिन पिता उसे रोककर गृहस्थ जीवन की ओर ले जाते हैं। अंत में हवन और शांति पाठ होता है।

यह संस्कार द्विज (दूसरा जन्म) प्रदान करता है, अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाता है, और वैज्ञानिक रूप से जनेऊ रक्तचाप नियंत्रित करता है, एकाग्रता बढ़ाता है। जनेऊ धारण के समय गायत्री मंत्र का जप आत्मा को शुद्ध करता है। आजकल लड़कियाँ भी (गार्गी – मैत्रेयी) की तरह यह संस्कार कर रही हैं। कुल मिलाकर, उपनयन एक धागा नहीं, जीवन का नया अध्याय है: अनुशासन, ज्ञान और संस्कृति की नींव। आईये आपको बताते हैं

Janeu Sanskar Muhurt 2025: नवंबर और दिसंबर माह के शुभ मुहूर्त

  • 1 नवंबर: सुबह 07:04 – 08:18, 10:37 – 03:51, 05:16 – 06:50 बजे तक
  • 2 नवंबर: सुबह 10:33 – शाम 05:12 बजे तक
  • 7 नवंबर: सुबह 07:55 – दोपहर 12:17 बजे तक
  • 9 नवंबर: सुबह 07:10 – 07:47, 10:06 – 03:19, 04:44 – 06:19 बजे तक
  • 23 नवंबर: सुबह 07:21 – 11:14, 12:57 – 05:24 बजे तक
  • 30 नवंबर: सुबह 07:42 – 08:43, 10:47 – 03:22, 04:57 – 06:52 बजे तक

दिसंबर माह के शुभ मुहूर्त

  • 1 दिसंबर: सुबह 07:28 – 08:39 बजे तक
  • 5 दिसंबर: सुबह 07:31 – दोपहर 12:10, 01:37 – शाम 06:33 बजे तक
  • 6 दिसंबर: सुबह 08:19 – दोपहर 01:33, 02:58 – शाम 06:29 बजे तक
  • 21 दिसंबर: सुबह 11:07 – दोपहर 03:34, शाम 05:30 – रात 07:44 बजे तक
  • 22 दिसंबर: सुबह 07:41 – 09:20, दोपहर 12:30 – शाम 05:26 बजे तक
  • 24 दिसंबर: दोपहर 01:47 – शाम 05:18 बजे तक
  • 25 दिसंबर: सुबह 07:43 – दोपहर 12:18, 01:43 – 03:19 बजे तक
  • 29 दिसंबर: दोपहर 12:03 – 03:03, शाम 04:58 – 07:13 बजे तक

Janeu Sanskar Muhurt 2025: क्यों किया जाता है उपनयन संस्कार?

यह संस्कार बालक को अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने के लिए किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य है:

  • आध्यात्मिक जागरण: बालक को गायत्री मंत्र की दीक्षा देकर धार्मिक और नैतिक जीवन की नींव रखना।
  • अनुशासन सिखाना: ब्रह्मचर्य, गुरु भक्ति और वेदाध्ययन के माध्यम से चरित्र निर्माण।
  • सांस्कृतिक निरंतरता: हिंदू परंपरा के अनुसार, यह जीवन को सार्थक बनाने वाले १६ संस्कारों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वैज्ञानिक दृष्टि से,
  • जनेऊ धारण करने से हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और स्मृति में सुधार होता है, तथा नकारात्मक विचारों से सुरक्षा मिलती है।
  • उम्र: ब्राह्मण बालक के लिए ८ वर्ष, क्षत्रिय के लिए ११ वर्ष और वैश्य के लिए १२ वर्ष की आयु आदर्श मानी जाती है।

यह भी पढ़ें:-

उपनयन संस्कार में जनेऊ क्यों पहनाया जाता है?

जनेऊ (यज्ञोपवीत) उपनयन का मुख्य प्रतीक है, जो तीन सूतों से बना होता है — ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन), महेश (संहार) का प्रतिनिधित्व करता है। यह द्विज (दूसरा जन्म) का चिह्न है, जिससे बालक को वेद पढ़ने, यज्ञ करने और गायत्री जप का अधिकार मिलता है। वैज्ञानिक रूप से, जनेऊ कंधे के एक्यूप्रेशर पॉइंट को दबाता है, जिससे रक्त संचार सुधरता है, हृदय रोग कम होते हैं और एकाग्रता बढ़ती है। बिना जनेऊ के उपनयन अधूरा है यह धर्म, ज्ञान और कर्तव्य का आजीवन स्मरण कराता है।

क्या लड़कियाँ भी उपनयन संस्कार कर सकती हैं?

हाँ, लड़कियाँ भी उपनयन कर सकती हैं — प्राचीन काल में गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा जैसी ऋषिकाएँ जनेऊ धारण करती थीं और वेदों की दीक्षा लेती थीं। आधुनिक समय में यह समानता और सशक्तिकरण का प्रतीक बन रहा है। लड़कियों के लिए अक्षय तृतीया (८ मई २०२५) सबसे शुभ मुहूर्त है, जिसमें वे गायत्री मंत्र सीखती हैं और ब्रह्मचर्य पालन करती हैं।