Roza Kholne aur Rakhne ki Dua| Photo Credit: freepik
Roza Kholne aur Rakhne ki Dua: रमजान इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र और बरकत भरा महीना माना जाता है। यह अल्लाह की रहमत, मगफिरत और नेकियों से भरपूर होता है। रमजान रोजे की शुरुआत सुबह सहरी के साथ होती है और इसका समापन इफ्तार के साथ होता है। पाक महीने रमजान में हर दिन सुबह सूर्योदय से पहले रोजेदार अन्न ग्रहण करते हैं, जिसे सहरी कहा जाता है। इसके बाद सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं ग्रहण किया जाता है। फिर एक निश्चित समय पर रोजा खोला जाता है। इस प्रक्रिया को इफ्तार के नाम से जाना जाता है। ऐसे में रोज़ा रखने और खोलने के दौरान अल्लाह की रहमत पाने के लिए आप दुआ पढ़ कर बरकत पा सकते हैं।
“व बिसौमि ग़दिन नवैतु मिन शाह्रि रमज़ान, जिसका अर्थ है- “मैं अल्लाह के लिए रमज़ान के रोजे की नीयत करता/करती हूं।”
रोज़ा रखने से पहले नियत करना जरूरी होता है, जिससे रोज़ा सही माना जाता है। सहरी के दौरान रोज़ा रखने की नियत हर मुस्लिम भाई-बहन को करनी होती है। यह नियत दिल से और सच्ची होनी चाहिए। नियत के बाद पूरे दिन रोज़ा रखा जाता है और इफ्तार के समय विशेष दुआ पढ़कर रोज़ा खोला जाता है।
“अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतु,व-बिका आमन्तु,व-अलयका तवक्कालतू,व अला रिज़किका अफतरतू..”, जिसका अर्थ है- “हे अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा, तुझ पर ईमान लाया और तुझ पर भरोसा किया और तेरी दी हुई रोजी से रोज़ा खोला।”
रोज़ा खोलने से पहले हर मुस्लिम भाई-बहन के लिए यह दुआ पढ़ना अहम माना जाता है। कहा जाता है कि इस दुआ को पढ़ने से न सिर्फ सवाब मिलता है बल्कि खाने में बरकत भी होती है। इफ्तार के दौरान, खासतौर पर खजूर खाने से पहले यह दुआ पढ़ी जाती है, और दुआ पूरी होने के बाद ही कुछ खाया जाता है। यह सुन्नत तरीका रोज़े की तकदीस को बढ़ाता है और अल्लाह की रहमत व बरकत हासिल करने का जरिया बनता है।