Salabega Jagannath Story in Hindi : कौन थे सालबेग? क्यों इनकी भक्ति ने भगवान् जगन्नाथ जी को अपनी रथ यात्रा रोकने पर कर दिया था मजबूर?
Who was Salbeg? Why did his devotion force Lord Jagannath to stop his Rath Yatra?
Salabega aur Jagannath ji ki kahani
Salabega Jagannath Story in Hindi : भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, जिसे देश भर में लाखों श्रद्धालु देखते हैं तथा इसमें शामिल होते हैं, ये अपने आप में कई अद्भुत परंपराएं और रहस्यों को समेटे हुए है। इन परंपराओं में से एक है रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का रथ मंदिर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर अचानक रुक जाना। यह ठहराव कुछ देर के लिए होता है, जिसके बाद रथ फिर से अपनी यात्रा पर निकल पड़ता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस अनोखे ठहराव के पीछे क्या कारण है? यह ठहराव एक ऐसे भक्त की श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है, जिनकी कहानी आज भी लाखों लोगों को भावुक कर देती है – वे हैं भक्त सालबेग। आईये एक पौराणिक कथा के माध्यम से विस्तारपूर्वक जानते हैं इनके बारे में..
Salabega Jagannath Story in Hindi
सालबेगा 17वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत के एक ओडिया धार्मिक कवि थे जिन्होंने जगन्नाथ भजन लिखे थे। सालबेग एक मुस्लिम पिता और एक ब्राह्मण माता की संतान थे। उनके पिता, लालबेग, मुगल सेना के एक कमांडर थे। वह जन्म से मुसलमान थे लेकिन हिंदू भगवान के प्रति उनकी भक्ति ने भगवान जगन्नाथ को उनके दर्शन के लिए ओडिशा में अपनी रथ यात्रा रोकने पर मजबूर कर दिया था। उनका प्रसिद्ध भजन ‘अहे नीला सैला’ आज भी जीवित है।
युवावस्था में सालबेग भी अपने पिता की तरह सेना में शामिल हो गए। हालांकि, एक युद्ध में वे गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें लगा कि उनका अंत निकट है। इसी समय, उन्हें अपनी मां से भगवान जगन्नाथ की महिमा और उनके चमत्कारों के बारे में सुनने को मिला। निराशा और दर्द में डूबे सालबेग ने भगवान जगन्नाथ से अपनी जान बचाने की प्रार्थना की। कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ की कृपा से वे चमत्कारिक रूप से ठीक हो गए।
Salabega Jagannath Story in Hindi
इस घटना के बाद, सालबेग ने अपना जीवन भगवान जगन्नाथ की भक्ति में समर्पित करने का निर्णय लिया। उन्होंने सेना छोड़ दी और एक भक्त के रूप में भगवान जगन्नाथ के भजन और कीर्तन गाने लगे। इसके बाद वह पैदल वृंदावन गए जहाँ उन्होंने साधुओं की संगति में एक तपस्वी का जीवन व्यतीत किया, कृष्ण के सम्मान में भजन गाए। व्रज (वृंदावन) में एक वर्ष बिताने के बाद, वह जगन्नाथ की रथ यात्रा उत्सव देखने की इच्छा से पुरी लौट आए। उस समय के सामाजिक नियमों के कारण, उन्हें पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि वे मुस्लिम थे। यह उनके लिए अत्यंत दुखद था, क्योंकि उनकी आत्मा पूरी तरह से भगवान जगन्नाथ में लीन हो चुकी थी। असहाय महसूस करते हुए तथा यह महसूस करते हुए कि वह रथयात्रा उत्सव देखने के लिए समय पर पुरी नहीं पहुंच पाएंगे, उन्होंने जगन्नाथ से प्रार्थना की कि वे उनके पहुंचने तक प्रतीक्षा करें।
Salabega Jagannath Story in Hindi
हर साल रथ यात्रा के दौरान, सालबेग भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए पुरी आते थे। चूंकि उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी, वे रथ यात्रा के मार्ग पर, जिस स्थान पर आज उनकी मजार है, वहीं खड़े होकर भगवान के रथ का इंतजार करते थे। उनकी भक्ति इतनी गहरी और पवित्र थी कि जब रथ उनके पास पहुंचता, तो वह अपने आप ही रुक जाता। यह घटना हर साल घटित होती थी, जिससे लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर का अंतिम संस्कार वहीं किया गया। इस महान भक्त की समाधि आज भी पुरी में ग्रैंड रोड पर स्थित है जिसे बड़ादंडा कहा जाता है। उनके सम्मान में, हर साल रथ यात्रा (गाड़ी उत्सव) के दौरान, जगन्नाथ की गाड़ी उनकी समाधि के पास कुछ समय के लिए रुकती है।
Salabega Jagannath Story in Hindi
यह ठहराव केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक अमर प्रेम कहानी का प्रतीक है। यह कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि सच्चा प्रेम और समर्पण किसी भी दीवार को तोड़ सकता है और भगवान अपने भक्तों की पुकार अवश्य सुनते हैं, भले ही वे किसी भी धर्म यां पृष्ठभूमि से आते हों।
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