Sheetala Saptami : 21 यां 22 मार्च कब है शीतला सप्तमी? जाने तिथि, महत्त्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं कथा से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी

When is Sheetla Saptami, 21 or 22 March? Know the complete information related to the date, importance, puja method, auspicious time and story

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  • Publish Date - March 17, 2025 / 02:40 PM IST,
    Updated On - March 17, 2025 / 02:52 PM IST

Sheetala Saptami 2025/ Image Credit: IBC24 File

Sheetala Saptami : शीतला सप्तमी हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन किया जाता हैं। इस वर्ष चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि की शुरुआत 21 मार्च को देर रात 2 बजकर 45 मिनट पर शुरू होकर 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। शीतला सप्तमी का व्रत 21 मार्च शुक्रवार को रखा जाएगा। प्रायः शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार कर लिया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और बाद में कुम्हार को समर्पित किया जाता है तत्पश्चात् भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

शीतलाष्टमी का त्यौहार, बसौड़ा के नाम से विख्यात है। धार्मिक मान्यतानुसार बसौड़ा/ बासोड़ा पूजा, देवी शीतला को समर्पित पूजा-पर्व है, जो होली के उपरांत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष सप्तमी-अष्टमी पर मनाया जाता है। मान्यतानुसार यह पर्व होली के 7वें और 8वें दिन पर पड़ता है।

Sheetala Saptami : आईये यहाँ आपको बताते हैं शीतला सप्तमी का महत्त्व

क्यों रखा जाता है शीतला सप्तमी का व्रत?

शीतला सप्तमी व्रत रखने से, मान्यता है कि परिवार में चेचक, बुखार, फोड़े-फुंसी और आंखों से जुड़ी बीमारियों से मुक्ति मिलती है, खासकर बच्चों के स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखा जाता है शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। आज भी लाखों लोग इस नियम का बड़ी आस्था के साथ पालन करते हैं। शीतला माता की उपासना अधिकांशत: वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीतला (चेचक रोग) के संक्रमण का यही मुख्य समय होता है। इसलिए इनकी पूजा का विधान पूर्णत: सामयिक है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है।

Sheetala Saptami : यहाँ जानते हैं शुभ मुहूर्त

शीतला सप्तमी : 21 मार्च 2025, शुक्रवार के पूजन मुहूर्त 

शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त- सुबह 06 बजकर 24 मिनट से शाम 06 बजकर 33 मिनट तक।
पूजा की अवधि- 12 घंटे 09 मिनट्स
चैत्र कृष्ण सप्तमी तिथि का प्रारम्भ- मार्च 21, 2025 को तड़के 02 बजकर 45 मिनट से,
सप्तमी तिथि की समाप्ति- मार्च 22, 2025 को तड़के 04 बजकर 23 मिनट पर।

Sheetala Saptami : शीतला सप्तमी पूजा विधि 

– शीतला सप्तमी/ चैत्र कृष्ण सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर माता शीतला का ध्यान करें।
– व्रतधारी प्रातः कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करें।
– तत्पश्चात निम्न मंत्र से संकल्प लें- ‘मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये’
– इसके बाद विधि-विधान से तथा सुगंधयुक्त गंध-पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें।
– महिलाएं इस दिन मीठे चावल, हल्दी, चने की दाल और लोटे में पानी लेकर शीतला माता का पूजन करें।
– पूजन के समय ‘हृं श्रीं शीतलायै नम:’ मंत्र जपते रहें।

Sheetala Saptami
– माता शीतला को जल अर्पित करने के पश्चात जल की कुछ बूंदे अपने ऊपर भी छिड़कें।
– फिर एक दिन पहले बनाए हुए (ठंडे) खाद्य पदार्थों, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात, मीठे चावल तथा गुड़-चावल के पकवान आदि का माता को भोग लगाएं।
– तत्पश्चात शीतला स्तोत्र का पाठ पढ़ें और कथा सुनें।
– माता शीतला का वास वटवृक्ष में माना जाता है, अतः इस दिन वट का पूजन करना ना भूलें।
– तत्पश्चात माता को चढ़ाएं जल में से बह रहे जल में से थोड़ा जल अपने लोटे में डाल लें तथा इसे परिवार के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़क दें, मान्यतानुसार यह जल पवित्र होने से इससे घर की तथा शरीर की शुद्धि होती है।

Sheetala Saptami
– शीतला सप्तमी के दिन बासी भोजन को ही ग्रहण करें।
– ज्ञात हो कि इस व्रत के दिन घरों में ताजा यानी गर्म भोजन नहीं बनाया जाता है, अत: इस दिन एक दिन पहले बने ठंडे या बासी भोजन को ही मां शीतला को अर्पित करने तथा परिवारसहित ठंडा या बासी भोजन ग्रहण करने की परंपरा है।

Sheetala Saptami : शीतला माता का शक्तिशाली 

मंत्र – शीतले त्वं जगन्माता, शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री, शीतलायै नमो नमः।।

Sheetala Saptami : यहाँ प्रस्तुत है शीतलाष्टमी की व्रत कथा 

एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखूं कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आईं और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर नहीं है, और ना ही मेरी पूजा होती है।

माता शीतला गाँव की गलियों में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेंका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में फफोले/छाले पड गये। शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी।

शीतला माता गाँव में इधर-उधर भाग-भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी सहायता करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता की सहायता नही की। वहीं अपने घर के बाहर एक कुम्हारन महिला बैठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पूरे शरीर में तपन है। इसके पूरे शरीर में फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नहीं कर पा रही है।

Sheetala Saptami

तब उस कुम्हारन ने कहा हे माँ! तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ! मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी ज्वार के आटे की राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।

तब उस कुम्हारन ने कहा – आ माँ बैठजा तेरे सिर के बाल बहुत बिखरे हैं, ला मैं तेरी चोटी गूँथ देती हूँ।
और कुम्हारन माई की चोटी गूथने हेतु कंगी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन की नजर उस बूढ़ी माई के सिर के पीछे पड़ी, तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख बालों के अंदर छुपी है।
यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बूढ़ी माई ने कहा – रुकजा बेटी तू डर मत। मैं कोई भूत-प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पूजा करता है। इतना कहकर माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब मैं गरीब इन माता को कहाँ बिठाऊ।
तब माता बोली – हे बेटी! तुम किस सोच मे पड गई।
तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आँसू बहते हुए कहा – हे माँ! मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता बिखरी हुई है। मैं आपको कहाँ बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन ही।

तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फैंक दिया।
और उस कुम्हारन से कहा – हे बेटी! मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूँ, अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग लो।

तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा – हे माता मेरी इच्छा है अब आप इसी डुंगरी गाँव मे स्थापित होकर यहीं निवास करें और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ कर दिया। ऐसे ही आपको जो भी भक्त होली के बाद की सप्तमी को भक्ति-भाव से पूजा कर, अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर की दरिद्रता को दूर करना एवं आपकी पूजा करने वाली महिला का अखंड सुहाग रखना, उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला अष्टमी को नाई के यहाँ बाल ना कटवाये धोबी को कपड़े धुलने ना दें और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार मे कभी दरिद्रता ना आये।

तब माता बोलीं तथास्तु! हे बेटी! जो तूने वरदान मांगे हैं मैं सब तुझे देती हूँ। हे बेटी! तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील की डुंगरी।

शील की डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी के दिन यहाँ बहुत विशाल मेला लगता है।
शीतला माता की जय!

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