मुंबई, नौ नवंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़े 2018 के एक मामले में सोमवार को रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी और दो अन्य लोगों को अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया और कहा कि आरोपी राहत के लिये संबंधित सत्र न्यायालय के पास जा सकते हैं।
न्यायमूर्ति एस. एस. शिंदे और न्यायमूर्ति एम. एस. कार्णिक की खंडपीठ ने गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों फिरोज शेख और नीतीश सरदा की अंतरिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘‘मौजूदा मामले में उच्च न्यायालय द्वारा असाधारण अधिकार क्षेत्र के प्रयोग करने के लिये कोई मामला नहीं बनाया गया है।’’
उच्च न्यायालय से जमानत याचिका खारिज होने के बाद गोस्वामी को अब तलोजा जेल में ही रहना पड़ेगा।
गोस्वामी, शेख और सारदा को अलीबाग पुलिस ने आरोपियों की कंपनी द्वारा बकाया राशि का कथित रूप से भुगतान नहीं किए जाने के कारण 2018 में अन्वय नाइक और उनकी मां को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में चार नवंबर को गिरफ्तार किया था।
अदालत ने सोमवार को अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं के पास संबंधित सत्र अदालत से जमानत पाने का प्रभावी तरीका है। हम पहले ही कह चुके हैं कि अगर ऐसी कोई जमानत याचिका दायर होती है तो सत्र अदालत उस पर चार दिनों के भीतर फैसला करे।’’
पीठ ने कहा कि अंतरिम जमानत याचिका खारिज होने से याचिकाकर्ता के समक्ष नियमित जमानत पाने का जो विकल्प है वह प्रभावित नहीं होगा।
उसने कहा कि सत्र अदालत अर्जी पर गुण-दोष के आधार पर सुनवाई कर अपना फैसला देगी।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हमारे विचार से महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में आगे की जांच के जो आदेश दिए हैं उसे गैरकानूनी और मजिस्ट्रेट से अनुमति लिए बगैर नहीं कहा जा सकता।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस संबंध में हमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार संबंधित पुलिस अधिकारियों को विस्तृत जांच के आदेश दे सकती है, जैसा कि मौजूदा मामले में हुआ है।’’
अदालत ने कहा कि उक्त जांच करने से पहले मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना दी गई थी।
अदालत ने यह भी कहा कि ‘‘पीड़ित के अधिकार भी आरोपी के अधिकार के समान ही महत्वपूर्ण हैं।’’
आदेश में कहा गया कि मौजूदा मामले में सूचना देने वाले (नाईक की पत्नी अक्षता) को ना तो नोटिस दिया गया और न ही उन्हें क्लोजर रिपोर्ट के बारे में बताया गया।
पीठ ने कहा कि इस मामले में एक परिवार के दो सदस्यों की जान चली गयी और तीनों याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप लगे हैं।
अदालत ने कहा कि वह याचिका दायर करने वालों के इस बात को स्वीकार नहीं कर सकती है कि जब मजिस्ट्रेट अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार करके आदेश दे दिया है तो आगे की जांच नहीं की जा सकती है।
पीठ ने यह भी कहा कि अभी वह गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे की इस दलील को स्वीकार नहीं कर सकती है कि प्राथमिकी में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अपराध दर्ज नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा कि वह फिलहाल अपना विचार रखने से बचेगी क्योंकि उसने प्राथमिकी रद्द करने संबंधी याचिका पर सुनवाई के लिए 10 दिसंबर की तारीख तय की है।
गोस्वामी के वकील गौरव पारकर ने बताया कि सोमवार को उन्होंने अलीबाग सत्र अदालत में जमानत की अर्जी दी है।
सत्र अदालत फिलहाल मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले की समीक्षा याचिका पर भी सुनवाई कर रही है। याचिका में अलीबाग पुलिस ने गोस्वामी और मामले के दो अन्य आरोपियों को पुलिस हिरासत में नहीं भेजने और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने के मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले को चुनौती दी है।
गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों फिरोज शेख तथा नीतीश सारदा ने मामले में उनकी ‘‘गैरकानूनी गिरफ्तारी’’ को चुनौती देते हुए अदालत से अंतरित जमानत का अनुरोध किया था।
तीनों ने अंतरिम जमानत के अलावा उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि मामले में उनके खिलाफ जांच पर रोक लगा दी जाए और दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया जाए।
प्राथमिकी रद्द करने की उनकी याचिकाओं पर अदालत 10 दिसंबर को सुनवाई करेगी।
मुंबई स्थित आवास से गिरफ्तार किए जाने के बाद गोस्वामी को अलीबाग ले जाया गया जहां मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (मजिस्ट्रेट) ने उन्हें पुलिस हिरासत में भेजने से इंकार कर दिया। अदालत ने गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को 18 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
गोस्वामी को शुरुआत में एक स्थानीय स्कूल में रखा गया जो अलीबाग जेल के लिए अस्थाई कोविड-19 केन्द्र का काम कर रहा है। न्यायिक हिरासत में कथित रूप से मोबाइल फोन का उपयोग करते पकड़े जाने पर गोस्वामी को रायगढ़ जिले की तलोजा जेल में भेज दिया गया।
भाषा अर्पणा दिलीप
दिलीप