रेमडेसिविर इंजेक्शन जैसी जीवनरक्षक दवाओं की कालाबाजारी रोकने और उन्हे आवश्यक वस्तु में शामिल करने की मांग

रेमडेसिविर इंजेक्शन जैसी जीवनरक्षक दवाओं की कालाबाजारी रोकने और उन्हे आवश्यक वस्तु में शामिल करने की मांग

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  • Publish Date - April 19, 2021 / 12:47 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:59 PM IST

रायपुर। कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या की बीच प्रदेश में जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी और जमाखोरी शुरू हो गई है, निजी अस्पताल मरीजों से मनमानी फीस वसूल रहे हैं, सरकारी और निजी अस्पतालों, रेड क्रॉस, एम्स और निजी दवा दुकानों में मरीज और उनके परिजनों की परेशानी साफ दिखाई दे रही है। मनमानी फीस, ऑक्सीजन और बिस्तर की कमी के अलावा कई बड़ी समस्याएं सामने दिखाई दे रही हैं, इसी बीच पत्रकार संघ ने राज्य सरकार से जरूरी दवाओं को कुछ समय के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत शामिल जाने की मांग की है, ताकि इसकी कालाबाज़ारी और जमाखोरी न हो सके।

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पत्रकार संघ ने अपने सुझाव और मागों को बिंदुवार अंकित किया है जो कि इस प्रकार हैं
1. सभी जगह एक ही सबसे बड़ी समस्या पता चलती है कि मरीजों के परिजन कई-कई दिन से रेमडेसीवीर इंजेक्शन के लिए भटक रहे हैं। निजी समेत सरकारी दुकानों-अस्पतालों,दोनों प्रकार की दवा दुकानों के बाहर कतारें लगी रहती हैं जबकि सराकर और प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि दवा सभी अस्पतालों में बांटी जा रही है। प्रदेश के सबसे बड़े 350 कोविड बिस्तर वाले अम्बेडकर अस्पताल की सरकारी दवा दुकान में तो 15 अप्रैल से लेकर 18 अप्रैल की रात तक कुल 90 इंजेक्शन ही सप्लाई किए गए।
2. कतारों में उन निजी अस्पतालों में भर्ती मरीज के परिजन भी शामिल होते हैं जहाँ लगातार इंजेक्शन सप्लाई किया जा रहा है।
3. मरीजों के परिजनों के भटकने के बाद उन अस्पतालों से ही उसे रेमडेसीविर इंजेक्शन मिल जाता है जहाँ पहले मना कर दिया गया था पर उससे इंजेक्शन के लिए 4 गुना तक पैसा ले लिया जाता है।
4. यह जानकारी भी है कि इंजेक्शन शहर के बड़े अस्पतालों को छोटे अस्पतालों के अनुपात में कई गुना ज्यादा संख्या में दिए जा रहे हैं, जबकि शहर के कई छोटे कोविड अस्पतालों में आज तक 1 भी इंजेक्शन नहीं दिया गया या नाम मात्र ही दिया गया है।
5. बड़े अस्पतालों में इंजेक्शन ऊंचे दाम में मिल जाता है जबकि छोटे अस्पताल के मरीज बिना इंजेक्शन ही दम तोड़ रहे हैं।
6. ऐसा दिखाई पड़ता है कि जिम्मेदार अधिकारी या कंपनी के स्टॉकिस्ट या डीलर कुछ अस्पतालों को अनुपातहीनता के साथ ज्यादा इंजेक्शन उपलब्ध करवा रहे हैं।
7. सप्लाई किए गए इंजेक्शन का हिसाब नहीं लिया जा रहा कि किस अस्पताल को किस दिन कितने इंजेक्शन दिए गए। अस्पताल में भर्ती किस मरीज को कितना, और इंजेक्शन कब लगाया गया है।
8. हिसाब नहीं लिए जाने के कारण मरीजों के परिजनों के लाए हुए इंजेक्शन भी चोरी छिपे दूसरे मरीज के परिजन को बेचे जा रहे हैं।
9. हमने स्टिंग आपरेशन भी किया है, साथ ही रायपुर पुलिस ने ऐसे लोगों को अरेस्ट किया है जो अस्पताल में भर्ती मरीज के लाए गए इंजेक्शन को चोरी कर 5 गुना कीमत में बेच रहे थे।
10. यह व्यवस्था लागू की जाए कि मरीज को इंजेक्शन लगने के बाद उसका स्टीकर उसके फ़ाइल में दिन, समय और संख्या के साथ नोट कर चिपकाया जाए तथा उस पर मरीज का नाम मार्क किया जाए ताकि उसका दुरूपयोग न हो सके।
11. हर इंजेक्शन की जानकारी एक पोर्टल में मरीज की डिटेल के साथ बैच नम्बर,आधार और संख्या के साथ अपलोड की जाए।
12. प्रशासन दावा कर रहा है कि दवा के अलॉटमेंट का नियंत्रम खत्म कर दिया गया है, इंजेक्शन के लिए मार्केट ओपन कर दिया गया है इसके बावजूद दुकानों में इंजेक्शन नहीं मिल रहा, सिर्फ बड़े अस्पतालों में ही इंजेक्शन उपलब्ध हो रहा है।
13. अस्पतालों की सूची वहां भर्ती कोविड मरीजों की संख्या और अलॉट किए गए कुल और बचे हुए इंजेक्शन की संख्या, मरीज को दी गई खुराक के साथ अपलोड की जाए।
14. कुछ निजी अस्पताल इंजेक्शन और इलाज के नाम पर सिर्फ नगद पैसा मांग रहे हैं, एटीएम भी स्वीकार नहीं कर रहे, जबकि एटीएम से एक दिन में निर्धारित रकम ही निकाली जा सकती है।

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