गुलशन कुमार हत्याकांड: अदालत ने निर्माता रमेश तौरानी को बरी करने का फैसला रखा बरकरार

गुलशन कुमार हत्याकांड: अदालत ने निर्माता रमेश तौरानी को बरी करने का फैसला रखा बरकरार

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  • Publish Date - July 1, 2021 / 01:26 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:09 PM IST

मुंबई, एक जुलाई (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को 1997 में ‘कैसेट किंग’ गुलशन कुमार हत्याकांड में फिल्म निर्माता एवं ‘टिप्स इंडस्ट्रीज’ के सह-संस्थापक रमेश तौरानी को बरी करने का निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा। साथ ही न्यायालय ने इस हत्याकांड में सह-आरोपी अब्दुल रऊफ मर्चेंट को दोषी ठहराने और उसे आजीवन कारावास की सजा देने के अदालत के फैसले की भी पुष्टि की।

न्यायमूर्ति एसएस जाधव और न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की एक खंडपीठ ने मामले में अन्य आरोपी तथा रऊफ के भाई अब्दुल रशीद मर्चेंट को बरी किए जाने का निचली अदालत का फैसला निरस्त कर दिया। पीठ ने इस मामले में अब्दुल रशीद मर्चेंट को भी दोषी ठहराते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

‘कैसेट किंग’ के नाम से मशहूर गुलशन कुमार की अगस्त 1997 में उपनगर अंधेरी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि यह ‘एक निर्मम हत्या’ थी और ‘‘हमें कोई संदेह नहीं है कि अभियोजन पक्ष ने साबित कर दिया है कि अपीलकर्ता (रऊफ) ने पीड़ित गुलशन कुमार की गोली मारकर हत्या की।’

पीठ ने कहा कि रउफ की कुमार से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी या द्वेष नहीं था, लेकिन उसे (संगीतकार) नदीम सैफी और अबू सलेम ने भाड़े पर रखा था, तथा नदीम सैफी और अबू सलेम मृतक से व्यक्तिगत प्रतिशोध लेना चाहते थे।

नदीम सैफी और माफिया सरगना अबू सलेम को मामले में फरार आरोपियों के रूप में दिखाया गया था और इस वजह से उसके खिलाफ मुकदमा आगे नहीं बढ़ा था। बाद में सलेम को पुर्तगाल से भारत प्रत्यर्पित किया गया था।

तौरानी को बरी करने के फैसले की पुष्टि करते हुए पीठ ने कहा, ‘यह स्थापित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है कि रमेश तौरानी ने संगीत निर्देशक नदीम सैफी या अबू सलेम के साथ मिलकर साजिश रची थी। इसलिए रमेश तौरानी को बरी करने के फैसले में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।’

अदालत ने चश्मदीदों की गवाही की भी सराहना की और कहा, ‘‘ यह प्रत्यक्ष साक्ष्य का मामला है। इस मामले में, हमें उन चश्मदीद गवाहों के आचरण की सराहना करने की आवश्यकता है जिन्होंने न केवल यह दावा किया था कि वे गवाह हैं बल्कि बिना किसी उदासीनता के पीड़ित (कुमार) और ड्राइवर को अस्पताल ले जाकर मदद की बल्कि पुलिस को मामले की रिपोर्ट भी की तथा जांच की कसौटी पर खरा उतरने में संकोच नहीं किया।

अभियोजन पक्ष के अनुसार नदीम सैफी और तौरानी ने गुलशन कुमार की जान लेने के लिए अबू सलेम को पैसे दिए थे।

सत्र अदालत ने 29 अप्रैल 2022 को 19 में से 18 आरोपियों को बरी कर दिया था। निचली अदातल ने रऊफ को भादंसं की धारा 302, 307, 120(बी), 392 तथा 397 और भारतीय शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषी ठहराया था। रऊफ ने दोषी ठहराए जाने के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, जबकि राज्य सरकार ने तौरानी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर की थी।

पीठ ने रऊफ की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा, लेकिन धारा 392 और 397 के तहत उसकी दोषसिद्धि को रद्द कर दिया।

पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘ एक अन्य आरोपी अब्दुल रशीद मर्चेंट को बरी किए जाने के फैसले को रद्द किया जाता है। रशीद को भादंसं की धारा 302 और भारतीय शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषी ठहराया जाता है और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। उसे डीएन नगर थाने या सुनवाई अदालत में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है।’’

पीठ ने यह भी कहा कि अब्दुल रऊफ मर्चेंट मुकदमे के दौरान अपने आचरण को देखते हुए किसी छूट का हकदार नहीं है। उसने कहा, ‘‘ अपीलकर्ता रऊफ उसके आपराधिक रिकॉर्ड को देखते हुए छूट का हकदार नहीं होगा और बड़े पैमाने पर न्याय तथा जनता के हित में, वह किसी भी उदारता का हकदार नहीं है।’’

अदालत ने कहा कि हत्या के बाद रऊफ फरार हो गया था और उसे 2001 में गिरफ्तार किया गया था। पीठ ने कहा, ‘‘ 2009 में रऊफ को ‘फर्लो’ दिया गया, लेकिन उसके बाद उसने आत्मसमर्पण नहीं किया और 2016 में उसे फिर गिरफ्तार किया गया।’’

पीठ ने कहा कि रशीद ने अगर आत्मसमर्पण नहीं किया, तो सत्र अदालत उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर सकती है।

भाषा

अविनाश अनूप

अनूप