बैलाडिला में मिलता है एशिया की सबसे अच्छी क्वालिटी का आयरनओर
जावंगा एजुकेशन सिटी से मिली नई पहचान
कुल मतदाता – 1,78,348
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है सीट
सीट पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा
सियासी इतिहास की बात की जाए तो..दंतेवाड़ा परंपरागत तौर पर कांग्रेस की सीट रही है..लेकिन 2008 में बीजेपी के नवोदित चेहरे भीमा मंडावी ने यहां पार्टी को पहली बार यहां जीत दिलाई..लेकिन 2013 में महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा ने वापस इस सीट को कांग्रेस की झोली में डाल दिया…आने वाले चुनाव में जहां कांग्रेस में देवती कर्मा के अलावा दूसरा विकल्प नजर नहीं आता..वहीं बीजेपी में दावेदारों की लंबी कतार नजर आती है।
बस्तर छत्तीसगढ़ में वो इलाका है जहां आने वाले चुनाव में सबसे बड़ा सियासी घमासान देखने को मिल सकता है…बीजेपी और कांग्रेस दोनों की पार्टियां यहां लीड लेने के लिए चुनावी रणनीति बनाने में जुट गई हैं…बस्तर की एक ऐसी ही सीट है दंतेवाड़ा..जो कांग्रेस की परंपरागत सीटों में से एक है..फिलहाल यहां देवती कर्मा विधायक हैं…भले ही सीट पर कांग्रेस का दबदबा हो लेकिन कांग्रेस के सामने मतदाताओं में भरोसा पैदा करने की सबसे बड़ी चुनौती है..दरअसल सियासी जानकार देवती कर्मा के जीत के पीछे महेन्द्र कर्मा की गई हत्या के बाद सहानुभूति लहर को मानते हैं…बावजूद इसके कांग्रेस में अभी देवती कर्मा के अलावा टिकट के लिए दूसरा विकल्प नजर नहीं आता। वहीं दूसरी ओर बीजेपी में इस सीट पर दावेदारों की तादात काफी संख्या में है। 2008 में यहां पहली बार बीजेपी को जीताने वाले युवा भीमा मंडावी का दावा सबसे मजबूत है..2013 में भी पार्टी ने भीमा मंडावी को मौका दिया था…इसके अलावा श्रवण काढती, नन्दलाल मुडामी, चैत राम अटामी और कमला नाग सहित करीब आधा दर्जन ऐसे नाम है जो लंबे समय से टिकट के दावेदार हैं और पार्टी में इनके समर्थन को लेकर गुटबाजी शुरू हो चुकी है। परिवहन संघ को किरंदुल इलाके में भंग करना और दन्तेवाड़ा में व्यापारियों का विस्थापन भी बीजेपी के लिए मुश्किल साबित हो सकता है, इसके अलावा भ्रष्टाचार और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर भी स्थानीय लोग बीजेपी से नाराज हैं..
कुल मिलाकर जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है दंतेवाड़ा में सियासी हलचल तेज हो गई है और इसके साथ ही नेताओं में विकास कार्यों को लेकर श्रेय लेने की होड़ भी शुरू हो गई है।
मुद्दों की बात करें तो दन्तेवाड़ा विधानसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या माओवाद है, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में विकास की संभावनाऐं कम हुई हैं, बस्तर संभाग के सबसे पहले औद्योगिक क्षेत्र बैलाडिला बनने के बावजूद शहरी विकास का दायरा भी बेहद सीमित रहा है।
देवी दन्तेश्वरी, बैलाडिला की लौह अयस्क की खदानों और जावंगा एजुकेशन सिटी के लिए पूरे देश में चर्चित दंतेवाड़ा आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसता नजर आता है..जिला मुख्यालय के अलावा अंदरूनी इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों को अब भी विकास का इंतजार है। सड़क, पानी, बिजली और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर समन्वय और शिकायतें लंबे समय से हैं…वहीं तमाम कोशिशों के बावजूद क्षेत्र से नक्सलवाद का सफाया नहीं हुआ है..जिसका असर यहां के विकास कार्यों पर नजर आता है। यहां के स्थानीय युवाओं के सामने रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है..एनएमडीसी लगने के बावजूद लोगों को काम नहीं मिल रहा. बैलाडिला के इलाको में लाल पानी की समस्या भी जस की तस बनी हुई है…जिससे क्षेत्र की जनता के सेहत पर बुरा असर बड़ रहा है।
वेब डेस्क, IBC24