दमिश्क, 17 जुलाई (एपी) सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद चौथी बार सीरिया के राष्ट्रपति बने हैं। उन्होंने शनिवार को राष्ट्रपति पद की शपथ ली।
इस युद्धग्रस्त देश में मई में आयोजित चुनाव को पश्चिमी देशों और असद के विपक्षियों ने अवैध और महज दिखावा करार दिया था।
शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन राष्ट्रपति महल में हुआ और इसमें धार्मिक नेता, संसद के सदस्य, नेता और सेना के अधिकारी शामिल हुए। असद 2000 से ही इस देश की सत्ता में हैं और उनके एक बार फिर राष्ट्रपति बनना संदेह के घेरे में बिल्कुल नहीं था। उनका नया कार्यकाल एक बार फिर शुरू तो हो रहा लेकिन देश पिछले 10 साल के युद्ध से तबाह है और आर्थिक संकट दिन ब दिन और गहरे होते जा रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सीरिया की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। सीरियाई मुद्रा के मूल्य में लगातार गिरावट हुई और संसाधन दुर्लभ हो गए हैं और लोगों से वस्तुओं की ऊंची क़ीमतें वसूली जाती हैं। देश में संघर्ष तो व्यापक स्तर पर कम हुआ है लेकिन सीरिया के कई हिस्से अब भी सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं। अब भी देश के विभिन्न हिस्सों में विदेशी बलों और मिलिशिया की तैनाती है।
सीरिया में युद्ध से पहले रहने वाली करीब आधी आबादी को या तो विस्थापन का दंश झेलना पड़ा है या वे पड़ोसी देशों और यूरोप में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। वहीं इस युद्ध में अब तक पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग अब भी लापता हैं और देश का बुनियादी ढांचा तबाह है।
इस संघर्ष की शुरुआत 2011 में हुई। सरकार ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाइ की और फिर यह विरोध असद परिवार के खिलाफ एक सशस्त्र विद्रोह के रूप में तब्दील हो गया।
इस युद्ध में असद को ईरान और रूस का समर्थन प्राप्त हुआ जिसने सहायता पहुंचाने के साथ अपने सैनिक भी यहां भेजे और ऐसे में पश्चिमी देशों से लगाए गए प्रतिबंध के बाद भी असद सरकार में बने रहे ।
यूरोपीय देशों और अमेरिका की सरकार असद और उसके सहयोगियों को हिंसा का ज़िम्मेदार बताती है जबकि असद इसके लिए सशस्त्र विद्रोहियों को दोषी ठहराते हैं। वहीं इस युद्ध को ख़त्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र नीत वार्ता में अब तक कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है। असद अपने पिता हाफिज के निधन के बाद 2000 में सत्ता में आए। उनके पिता रक्तहीन सैन्य तख्तापलट के जरिए 1970 में सत्ता में आए थे।
अमेरिका और यूरोप के अधिकारी इस चुनाव की वैधता पर सवाल उठाते हैं। असद को इस चुनाव में 95.1 फ़ीसदी मत मिले। यहां चुनाव में किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा केवल सांकेतिक ही थी। मतदान पर निगरानी के लिए कोई स्वतंत्र संस्था नहीं थी।
एपी स्नेहा उमा
उमा