(क्रिस्टोफर लॉरिकेन गेटे, एंथनी डोसेटो और ली अर्नोल्ड, वोलोंगोंग विश्वविद्यालय)
वोलोंगोंग, 25 अप्रैल (द कन्वरसेशन) बड़े कंगारू आज लंबी दूरी तय करते हैं, अक्सर सूखे से बचने के लिए झुंड में घूमते हैं और आहार कम होने पर नया भोजन भी ढूंढते हैं।
लेकिन सभी कंगारू ऐसे नहीं हैं। पीएलओएस वन में आज प्रकाशित नए शोध में, हमने पाया कि पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले विशाल कंगारू अधिक गतिशील नहीं थे, जिसके चलते वे स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव के प्रति संवेदनशील हो गए थे।
हमने मध्य पूर्वी क्वींसलैंड में रॉकहैम्पटन के उत्तर में माउंट एटना गुफाओं में, अब विलुप्त हो चुके विशाल कंगारू जीनस प्रोटेमनोडोन के जीवाश्म दांतों की खोज की। हमारे परिणाम बताते हैं कि प्रोटेमनोडॉन लंबी दूरी तक भोजन की तलाश नहीं करते थे, बल्कि हरे-भरे और स्थिर वर्षावन यूटोपिया में रहते थे।
जब जलवायु शुष्क हो गई और मौसम बदलने लगा तब यूटोपिया खत्म होने लगा। यह माउंट एटना के कई प्राणियों के लिए विनाश का संकेत था।
माउंट एटना गुफाएं
माउंट एटना गुफाएं राष्ट्रीय उद्यान और पास की कैप्रकार्न गुफाएं सैकड़ों हज़ारों वर्षों से जीवन के उल्लेखनीय रिकॉर्ड रखती हैं।
गुफाओं में जीवाश्म जमा हो गए क्योंकि वे विशाल गड्ढे वाले जाल की तरह थीं और शेर, उल्लू, शिकारी पक्षी और अब लुप्तप्राय चमगादड़ जैसे शिकारियों का ठिकाना भी यहीं था।
इस क्षेत्र के बड़े हिस्से में कभी चूना और सीमेंट के लिए खनन किया जाता था। हम में से एक ने वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अब नष्ट हो चुकी गुफाओं से जीवाश्म को सुरक्षित रूप से हटाने और जमा करने के लिए खदान प्रबंधकों के साथ मिलकर काम किया, जो अभी भी जारी है।
हमारे अध्ययन के तहत हमने यूरेनियम-श्रृंखला डेटिंग का उपयोग करके जीवाश्मों की तिथि निर्धारित की, और उनके आसपास की तलछट का ल्यूमिनेसेंस डेटिंग नामक एक अलग तकनीक का उपयोग करके अध्ययन किया।
हमारे अध्ययन से पता चलता है कि विशाल कंगारू कम से कम 500,000 साल पहले से लेकर लगभग 280,000 साल पहले तक गुफाओं के आसपास रहते थे। इसके बाद वे माउंट एटना जीवाश्म रिकॉर्ड से गायब हो गये।
उस समय, माउंट एटना में समृद्ध वर्षावन थे, जो आज के न्यू गिनी के बराबर थे। 280,000 से 205,000 साल के बीच जब जलवायु शुष्क हो गई, तो प्रोटेमनोडोन सहित वर्षावन में रहने वाली प्रजातियां धीरे धीरे समाप्त हो गईं। उनकी जगह शुष्क, शुष्क वातावरण के अनुकूल ढल चुकी प्रजातियों ने ले ली।
आप जैसा खाते हैं वैसा ही बनते हैं
हमारे अध्ययन में देखा गया कि प्रोटेमनोडोन भोजन की तलाश में दूर दूर तक यदा-कदा ही जाते थे। यह स्तनधारियों में सामान्य प्रवृत्ति है। यह प्रवृत्ति आधुनिक कंगारूओं में भी है, इसलिए हमें उम्मीद थी कि प्रोटेमनोडोन जैसे विशाल विलुप्त कंगारूओं की भी बड़ी तादाद रही होगी।
दांत खाए जाने वाले भोजन के रासायनिक समावेश को रिकॉर्ड करते हैं। दांत के इनेमल में तत्व स्ट्रोंटियम के विभिन्न समस्थानिकों को देखकर, हम विलुप्त जानवरों की भोजन की तलाश की सीमाओं का अध्ययन कर सकते हैं।
स्ट्रोंटियम समस्थानिकों की अलग-अलग मात्रा जानवरों द्वारा खाए जाने वाले पौधों के रासायनिक तत्वों को दर्शाती है, साथ ही भूविज्ञान और मिट्टी की संरचना भी इससे पता चलती है। दांतों में उपस्थित रासायनिक तत्वों का पर्यावरण के स्थानीय संकेतों से मिलान करके हम अनुमान लगा सकते हैं कि ये प्राचीन जानवर भोजन प्राप्त करने के लिए कहां-कहां जाते थे।
स्थानीय आहार और अंत
हमारे परिणामों से पता चला कि माउंट एटना से प्रोटेमनोडोन यानी विशाल कंगारू स्थानीय चूना पत्थर से बहुत दूर नहीं गए, जिसमें गुफाएं और जीवाश्म पाए गए थे।
हमें लगता है कि माउंट एटना में प्रोटेमनोडोन की छोटी चारागाह सीमा वर्षावन में लाखों वर्षों की स्थिर खाद्य आपूर्ति के लिए एक अनुकूलन थी। उन्हें भोजन खोजने के लिए यात्रा करने की आवश्यकता कम ही थी।
जीवाश्म साक्ष्य यह भी बताते हैं कि प्रोटेमनोडोन की कुछ प्रजातियां कूदने के बजाय चारों पैरों पर चलती थीं। इससे उनकी लंबी दूरी की यात्रा करने की क्षमता सीमित हो जाती, लेकिन वर्षावनों में रहने के लिए यह एक बढ़िया वजह है।
एक सवाल का जवाब मिलना बाकी है: अगर उन्हें भोजन खोजने के लिए दूर जाने की ज़रूरत नहीं थी, तो पहले स्थान पर उनका आकार बड़ा क्यों हो गया?
ऑस्ट्रेलिया के मेगाफौना यानी मार्सपियल शेर, थायला कोलियो तथा तीन टन वजनी डिप्रोटोडॉन जैसे प्राणियों के विलुप्त होने पर लंबे समय से बहस चल रही है। अक्सर यह माना जाता रहा है कि मेगाफौना प्रजातियां जहां भी रहती हैं, पर्यावरण में होने वाले बदलावों के प्रति एक ही तरह से प्रतिक्रिया करती हैं।
एक सिद्धांत यह भी है कि पर्यावरण में होने वाले बदलावों के अनुरूप स्वयं को न बदल पाना अंत की ओर ले जाता है। शायद पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में स्थिर आवासों में रह रही प्रोटेमनोडोन आबादी के लिए एक ही जगह रहना आम बात थी, और जब पर्यावरण की स्थिति बदली तो यही आदत उनकी कमजोरी साबित हुई।
एक-एक करके विलुप्त होना
आमतौर पर, छोटे घरेलू क्षेत्र वाले जीवों में कहीं और जाने की क्षमता सीमित होती है इसलिए अगर उनके स्थानीय आवास में कुछ होता है, तो वे बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं।
माउंट एटना में, प्रोटेमनोडोन स्थिर वर्षावन वातावरण में सैकड़ों हज़ारों वर्षों तक पनपता रहा। लेकिन जैसे-जैसे वातावरण अधिक शुष्क होता गया, और संसाधन तेजी से कम होते गए, विशाल कंगारू विषम हालात में कहीं और वापस जाने में असमर्थ साबित हुए।
हमारे अध्ययन का एक प्रमुख परिणाम यह है कि प्रोटोडेमन माउंट एटना में मनुष्यों के आने से बहुत पहले स्थानीय रूप से विलुप्त हो गये थे।
(द कन्वरसेशन)
मनीषा पवनेश
पवनेश