यूक्रेन युद्ध: रूस और अमेरिका के मध्य संतुलन बिंदु बना तुर्किये, पर कैसे, यह इतिहास हमें बताता है |

यूक्रेन युद्ध: रूस और अमेरिका के मध्य संतुलन बिंदु बना तुर्किये, पर कैसे, यह इतिहास हमें बताता है

यूक्रेन युद्ध: रूस और अमेरिका के मध्य संतुलन बिंदु बना तुर्किये, पर कैसे, यह इतिहास हमें बताता है

:   Modified Date:  December 3, 2022 / 06:15 PM IST, Published Date : December 3, 2022/6:15 pm IST

(जॉर्जियोस जियानकोपोलोस, विजिटिंग रिसर्च फेलो, सेंटर फॉर हेलेनिक स्टडीज, किंग्स कॉलेज लंदन / आधुनिक इतिहास के लेक्चरर, सिटी, लंदन विश्वविद्यालय)

लंदन, तीन दिसंबर (द कन्वरसेशन) यूक्रेन युद्ध ने तुर्किये को भू-राजनीतिक लिहाज से सुर्खियों में ला दिया है। नाटो के शुरुआती सदस्य देशों में से एक तुर्किये के रूस से भी विशेष संबंध हैं और वह अपने प्रतिस्पर्धी हितों को संतुलित करने के साथ अपना प्रभाव भी बढ़ा रहा है।

इस बीच, तुर्किये सीरिया में सैन्य अभियान शुरू करने को लेकर बीच में फंसा है जो रूस और अमेरिका से इसके संबंधों के लिए एक चुनौती है। इसके अलावा यह अभियान ‘सैन्य तनाव बढ़ने’ के लिहाज से संयुक्त राष्ट्र को भी चिंता में डाल देगा।

गत अक्टूबर में तुर्किये ने सीरिया और इराक में कुर्दिश बलों को लक्ष्य करके अभियान शुरू किया था और फिलहाल सीरिया के कुर्दिश क्षेत्र में जमीनी हमले की धमकी दे रहा है।

सीरियाई सरकार का मुख्य सहयोगी रूस है, जबकि उत्तरी सीरिया में अमेरिका कुर्दिश बलों का समर्थन कर रहा है।

सीरिया में जारी संघर्ष को लेकर रूस और अमेरिका, दोनों ही विरोधी खेमे में हैं।

हालिया रिपोर्ट के मुताबिक रूसी अधिकारी तुर्किये और सीरियाई कुर्दिश बलों के बीच समझौता कराने के लिए मध्यस्थता करने में शामिल हैं, जबकि तुर्किये के संभावित जमीनी अभियान को लेकर अमेरिका चिंतित है क्योंकि इससे सीरिया में इसके आईएसआईएस विरोधी अभियान में व्यवधान उत्पन्न होगा।

पश्चिमी शक्तियों और रूस के बीच संतुलन बिंदु हाने के नाते तुर्किये का इतिहास हमें इसकी मौजूदा भूमिका के बारे में क्या बता सकता है?

पिछले 100 साल से अधिक समय से तुर्किये के नेता पश्चिम और रूस से संबंधों के बीच धुरी बने रहे ताकि अधिक आर्थिक, भूराजनीतिक और सामाजिक ताकत हासिल कर सकें। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने खुद को दोनों पक्षों के बीच ताकतवर नेता और शांति दूत के रूप में प्रस्तुत किया।

इतिहास हमें बताता है कि तुर्की ऐसा करने की स्थिति में क्यों है?

भाईचारा और दोस्ती

तुर्किय के राष्ट्रवादियों और रूसी बोलशेविकों ने मार्च, 1921 में मॉस्को में एक ‘भाईचारा और दोस्ती’ समझौता किया। इसके पहले तुर्किये के शासक कमाल अतातुर्क और रूसी नेता लेनिन ने भी पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ एकजुटता दिखाई थी।

यह समझौता तब किया गया था जब यूनान और तुर्की के बीच अनातोलिया में युद्ध चल रहा था और रूस में गृह युद्ध और बढ़ रहा था।

लेनिल ने ऐलान किया था कि, ‘‘ साम्राज्यवादी सरकारों की लूट का तुर्की ने खुद विरोध किया, वह भी इतनी दृढ़ता के साथ कि उनमें से सबसे ताकतवर को भी वहां से हाथ खींचना पड़ा।’’

इस तरह अतातुर्क ने भी इस गठजोड़ को पश्चिमी साम्राज्यवाद के खिलाफ समझौते के रूप में देखा।

इतिहासकार सैम हिर्स्ट कहते हैं कि यह एक व्यापक सीमापार साम्राज्य विरोधी अंदोलन का हिस्सा था जो वैश्विक औपनिवेश विरोधी संघर्ष के समर्थन के प्रति रूसी प्रतिबद्धता को चिह्नित करता है।

इसके बदले में तुर्किये के राष्ट्रवादियों को राष्ट्रीय स्वाधीनता संघर्ष के दौरान नयी रूसी सरकार से साजो-सामान के रूप में समर्थन मिला।

स्वतंत्र तुर्किये देश की स्थापना के बाद वर्ष 1923 में रूस और तुर्किये के संबंध बदल गये और अब दोनों देशों की दिशा ज्यादा व्यावहारिक हो गई।

लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय रूप से अहम डार्डेनेलीज और बोस्फोरस जलडमरू मध्य के क्षेत्र और इसकी स्थिति को लेकर रूसी मांग ने तुर्किये को नवगठित नाटो के पाले में धकेला।

सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन का मशहूर कथन है कि रूसी मांग डार्डेनलीज में एक सैन्य अड्डा बनाने के लिए थी क्योंकि यह रूस की सुरक्षा की रक्षा का सवाल था और रूस एक कमजोर और अमित्र देश (तुर्किये) पर निर्भर नहीं करता।

जलडमरू मध्य को लेकर बातचीत हुई थी जो एजियन और भूमध्य सागर के बीच आवाजाही को नियंत्रित करता है, लेकिन अंत में रूस ने यथा स्थिति को मंजूर कर लिया।

वर्ष 1990 के दशक तक शीत युद्ध की समाप्ति के बाद कूटनीतिक समझौतों के नये युग का आगाज हुआ। इसके बावजूद सोवियत संघ से टूटकर बने ‘तर्किक’ राज्य के प्रति तुर्किये की नीति को लेकर उससे रूस का विवाद रहा।

हालांकि, वर्ष 1992 से 1996 के बीच रूस और तुर्किये के अधिकारियों ने 15 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये। काला सागर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग का केंद्र बिंदु बन गया।

कुर्दिश मामला

नई सहास्त्राब्दी के उदय के साथ इराक में युद्ध छिड़ा और इराकी कुर्द एक क्षेत्रीय ताकत के रूप में उभरे जिससे तुर्किये के रिश्ते अमेरिका के साथ और जटिल हो गये। अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के शासन के खिलाफ कुर्द लोगों का समर्थन किया था।

इसके विपरीत तुर्किये के रिश्ते रूस के साथ व्यापार, ऊर्जा, क्षेत्रीय सुरक्षा और सहोग के जरिये और गहराते गये।

यूरोपीय संघ में शामिल करने के वादे के पूरा नहीं होने पर यूरोपीय संघ, एशिया और मध्य एशिया के प्रति तुर्किये की नीति को पुनर्निधारित करने में रूस की अहम भूमिका रही।

पुतिन और एर्दोआन, दोनों ने पश्चिम के खिलाफ नाराजगी की भावना को भुनाया है। लेकिन तुर्किये की सीमा पर सीरिया के छद्म युद्ध क्षेत्र के रूप में बदल जाने से काफी मात्रा में कुर्दिश लेग स्वायत्तता और स्वतंत्र देश की मांग करने लगे जिसे नया तनाव उत्पन्न हो गया।

युद्ध के कारण बड़ी संख्या में शरणार्थी तुर्किये पहुंचे। इस बीच तुर्किये ने वर्ष 2015 में सैन्यकर्मियों को सीरिया ले जा रहे रूसी विमान को अपने हवाई क्षेत्र में मार गिराया था, जिसके कारण दोनों देशों के संबंधों में ठहराव आ गया था। इसके जवाब में रूस ने अपने दूसरे नंबर के सबसे बड़े व्यापार साझीदार के खिलाफ कई आर्थिक कदम उठाये थे।

हालांकि, काफी हद तक तुर्किये के प्रयास के कारण इस संकट की अवधि बहुत छोटी रही। इसके बावजूद राष्ट्रपति एर्दोआन क्रीमिया पर हमले को लेकर रूस की आलोचना करने से नहीं चूके।

लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि तुर्किये और रूस के रिश्ते आज विश्वास, आपसी सदभाव या आपसी हित के आधार पर नहीं टिके हैं, बल्कि यह इस समझ पर टिका है कि यदि रूस चाहे तो तुर्किये को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है।

फिलहाल एर्दोअन कठिन संतुलन साधने की कोशिश कर रहे हैं, वे एक तरफ नाटो के प्रति तुर्किये की प्रतिबद्धता को पूरी कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ रूस के साथ अपने गठजोड़ को भी बरकरार रख रहे हैं।

एर्दोआन खुद को इकलौते नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं जो कूटनीतिक समझौते कर सकता है और अमेरिकियों और रूसियों के बीच बातचीत का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

(द कन्वरसेशन) संतोष माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)