उपेक्षा जब अपमान में बदल जाए तो खिन्नता को खुन्नस में तब्दील होते देर नहीं लगती। तब आदमी वही करता है जो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया है।
सिंधिया के लिए कांग्रेस को अलविदा कहने का निर्णय लेना कितना विषम और कष्टकारी रहा होगा इसका अंदाजा भाजपा प्रवेश के समय भाजपा मुख्यालय में उनकी देहभाषा और मुखभाव को पढ़कर सहज ही लगाया जा सकता है। दरअसल, सिंधिया के लिए कोई और रास्ता कांग्रेस ने छोड़ा ही कहां था? खुद कमलनाथ ने ही तो सिंधिया को सड़क पर उतर जाने की प्रतिचुनौती देकर उनके स्वाभिमान को ललकारा था।
बात उपेक्षा से आगे बढ़कर जब अपमान पर आ गई, तो सिंधिया आखिर कब तक अपने मित्र राहुल गांधी की ओर से थमाए गए ‘धैर्य’ और ‘समय’ का झुनझुना थामे रखते। लिहाजा सिंधिया ने सड़क पर उतरने की चुनौती स्वीकार करके सरकार को ही सड़क पर ला देने की भूमिका तैयार कर दी।
सिंधिया के इस कदम को ‘गद्दारी’ और इसके पीछे भाजपा की ‘साजिश‘ तलाशने वाली कांग्रेस की खिसियानी नासमझी वाकई लाजवाब है। खुद ही छींका तोड़कर बिल्ली के भाग्य को कोसना कोई कांग्रेस से सीखे।
और हां! सिंधिया के बागी रुख के बाद सरकार के संकट में आने को जनादेश का अपमान बताने वाली कांग्रेस ये भी मत भूले कि खंडित जनादेश में कांग्रेस को भाजपा से कम वोट और बहुमत से कम सीट मिली है।
बहरहाल, भाजपा सिंधिया को ले तो आई है सपनों के गांव में, लेकिन पलकों की छांव में बिठाए रखना इतना आसान नहीं होगा। लाजिम है कि सब देखेंगे कि सिंधिया को सामंतशाही और अहंकारी बताने वाली भाजपा उनको कितना स्वीकार कर पाती है।
पिक्चर भले अभी बाकी हो, लेकिन प्रस्तावित भाजपा सरकार में सिंधिया समर्थित मंत्रियों के रोल को देखने को लेकर ऑडियंस में जबरदस्त दिलचस्पी है। वैसे ये देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निर्देशित भाजपा में ‘श्रीमंत’ ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने सामंतशाही एटीट्यूड के साथ खुद को कितना एडजस्ट कर पाते हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए कि सिंधिया को ये कहने की नौबत नहीं आएगी कि- ‘मैं अपना एटीट्यूड रख लेता हूं और तुम अपनी पार्टी।‘ वरना भाजपा को ये दोहराते देर नहीं लगेगी कि ‘माफ करो महाराज, अपना नेता तो शिवराज।‘
सौरभ तिवारी
डिप्टी एडिटर, IBC24