वंशवादः लोकतंत्र का दुश्मन या दोस्त? |

वंशवादः लोकतंत्र का दुश्मन या दोस्त?

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:20 PM IST, Published Date : April 5, 2022/5:03 pm IST

बरुण सखाजी

जब कोई व्यवस्था भंग हो रही होती है तो हम उसके कारण खोजने में जुट जाते हैं। लेकिन जब हम उस व्यवस्था को बना रहे होते हैं तब हम इन बातों का ख्याल क्यों नहीं रखते? असल में सवाल सिर्फ वंशवाद के लाभार्थियों पर ही नहीं बल्कि उन पर भी होना चाहिए, जिन्होंने इस रोग को बढ़ावा दिया। श्रीलंका की राजपक्षे डायनेस्टी को देखेंगे तो एशिया के कुछ और वो देश भी इससे प्रभावित हैं, जो ब्रिटिश कॉलोनी के हिस्से रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम तो भारत ही है। फिर बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका प्रभावित हैं। श्रीलंका की दुर्दशा एक दिन में नहीं हुई न कोई एक कारण इसके लिए जिम्मेदार है। वंशवाद उन अनेक कारकों में एक और अहम जरूर है।

राजपक्षे परिवार ने सत्ता को हथियाया नहीं बल्कि एक प्रक्रिया से वह उस पर कब्जा जमाते चले गए। यह कब्जा किसी और ने नहीं दिया। वहां की जनता ने ही इसे सींचा है। अब जब इसके दुष्परिणाम भयावह रूप में हमारे सामने हैं तो फिर जनता बसें जला रही है, लठ चला रही है और आग लगा रही है।

भारत में गांधी-नेहरू परिवार के अलावा मुलायम, लालू, बाल ठाकरे, करुणानिधि, नवीन पटनायक, फारुख अब्दुल्ला, जगन रेड्डी, शरद पवार, देवगौड़ा, राजनाथ सिंह, अनुराग ठाकुर, चिराग पासवान आदि अनेक नाम हैं। उनकी तो गिनती ही नहीं हो सकती जिनके बच्चे विधायक, एमपी हैं या अपने जिलों, राज्यों, निकायों में किसी शक्तिशाली पद पर काबिज हैं। योग्य और अयोग्य अलग बात है, लेकिन यह आम बात है।

पाकिस्तान में भी भुट्टो परिवार ने यह किया। जुल्फिखार अली भुट्टो, बेनजरी भुट्टो, आसिफ अली जरदारी से लेकर बिलाबल भुट्टो तक अनेक नाम हैं, जिन्हें अपने वंशजों की छाया मिली। बांग्लादेश में शेख हसीना इसका उदाहरण हैं। वैसे तो अमेरिका भी क्यों भूलें। यहां जूनियर, सीनीयिर बुश, ट्रंप- इवांका, क्लिंटन इसके उदाहरण हैं। फिर कइयों छोटे-छोटे देशों की बिसात ही क्या?

वंशवाद लोकतंत्र का दोस्त है या दुश्मन यह समझने के लिए इस तरह के और भी उदाहरणों की बारीकी से स्टडी जरूरी है। वंशवाद सिर्फ इकतरफा थोपा हुआ मसला नहीं है। तमाम देशों में जहां वंश की पौध विकसित हो रही है वहां चुनावी लोकतांत्रिक प्रणाली है। इसका मतलब साफ है कि जनता के हाथ में सबकी लगाम है।

पहले तो जनता इस बागडोर का इस्तेमाल करती नहीं और फिर जब देश बर्बाद होने लग जाते हैं, व्यवस्थाएं ढहने लगती हैं तो आक्रोष के रूप में जाहिर करती है। वंशवाद सिर्फ आलोच्य हो ऐसा नहीं है। कई ऐसे उदाहरण भी हैं जो अपने पिता या पूर्ववर्ती वंशजों से अधिक मेधावी और लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं। अगर हम इन्हें देखेंगे तो समझ पाएंगे वंशवाद कोई वंशजों की इकतरफा जिद भर नहीं है।

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