#NindakNiyre: बघेल तो राम को अपने राजनीतिक कंपास में रखना चाहते हैं, कोशिश भी कर रहे हैं, लेकिन उनका दल?

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  • Publish Date - June 5, 2023 / 01:58 PM IST,
    Updated On - June 5, 2023 / 01:58 PM IST

बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक

रायपुर : रायगढ़ रामायण महोत्सव विशुद्ध राजनीतिक कार्यक्रम होकर भी छत्तीसगढ़ के जन-मानस में सामाजिक असर छोड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। चर्चा स्तर पर कार्यक्रम को खूब सुर्खियां मिली। प्रबंधित सूचना विस्तार के जरिए भी यह पहल सराहनीय बताई गई। असल में राम भारत के समाज में बहुत गहरे रचे-बसे हैं। उन्हें भारतीय समाज अपने अवचेतन में सिर्फ आराध्य ही नहीं मानता बल्कि वह उन्हें अपने सिस्टम का अधिष्ठाता भी मानता है। जैसे सुख हो तो राम जी की कृपा, अभिवादन हो तो राम-राम, दर्द हो तो हेराम, नुकसान हो तो अरे राम, आनंद हो तो हरे राम, परमानंद हो तो उन्मुक्त मन से राम-राम।

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रामायण महोत्सव कार्यक्रम की बुनावट बड़ी नफासत से की गई थी। सामाजिक लोक जुड़ाव और राम के प्रति नजरियों को उभारा गया। इस उभार में चतुराई से मुख्यमंत्री बघेल की छवि को भी घोला गया। ठीक वैसे ही जैसे भाजपा ने हिंदुत्व को अपने में घोल लिया है। ठीक वैसे ही जैसे मोदी ने राष्ट्र को अपने में घोल लिया है। अब जब भाजपा की आलोचना होती है तो ऐसा लगता है हिंदुत्व की बुराई की जा रही है। जब मोदी की आलोचना होती है तो राष्ट्र की आलोचना बन जाती है। ऐसे ही जब बघेल की आलोचना हो तो रामायण की आलोचना बन जाए। इस प्रबंधित, लक्ष्यभेदित, नियोजित कार्यक्रम का सार यही है कि राम हर रूप में स्वीकारे जाते हैं। समग्र राम उपासक समाज शैव-वैष्णव के भेद खत्म करके इनमें एकाकार हो जाता है।

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इस कार्यक्रम का बघेल की सियासत पर क्या असर होगा यह अभी से कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि बघेल एक व्यक्ति हैं। वे व्यक्तिगत स्तर पर राम और राम के भारत, समाज और छत्तीसगढ़ को जोड़ने की कोशिश कर सकते हैं। इसका राजनीतिक फायदा भी ले सकते हैं, किंतु पार्टी जब बड़े स्पेक्ट्रम पर खेलती है तो भाजपा को उस पर राम विरोधी होने का टैग लगाने में परेशानी नहीं होती। इस दुविधा के बीच रायगढ़ रामायण महोत्सव राजनीतिक फायदे का ट्रैक तो तैयार करता है, लेकिन इस पर वोट की गाड़ी कितनी रफ्तार से दौड़ पाएगी या दौड़ भी पाएगी या नहीं कहना अभी कठिन है।

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