Associate Executive Editor, IBC24
बरुण सखाजी श्रीवास्तव, राजनीतिक विश्लेषक
छत्तीसगढ़ विधानसभा में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के तीखे तेवर सबने देखे। जाहिर है वे वरिष्ठ नेता हैं। 2018 के तूफान में भी जीते और अभी तेईस में भी। मंत्री भी रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष के भी प्रबल आकांक्षी थे। आकांक्षी तो वे प्रदेश अध्यक्ष के भी थे, किंतु न तो नेता प्रतिपक्ष का दायित्व मिला न अध्यक्ष का। रही कसर मंत्रिमंडल में स्थान न मिलने से पूरी हो गई। ऐसे में उनका सरकार और सरकार के लोगों के प्रति कठोर होना लाजिमी है। 14 महीनों की सरकार में 4 सेशन हुए हैं। 3 सेशन में चंद्राकर समेकित रूप से हमलावर थे, किंतु बजट सत्र में वे पिन प्वाइंटेड राजनीतिक रणनीति को अपनाते हैं। उनके निशाने पर राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा रहे। चूंकि टंकराम वर्मा अजय चंद्राकर की तुलना में बहुत जूनियर हैं। कुर्मी समाज से आते हैं। ऐसे में अजय चंद्राकर जानते हैं, समेकित राजनीतिक हमलों से बात नहीं बनेगी। उल्टे दुश्मन अनेक तैयार हो जाएंगे। ऐसे में शार्प अटैक आवश्यक है। मंत्रिमंडल में एक कुर्मी नेता के रहते दूसरे कुर्मी नेता को लेना संभव नहीं है। जाहिर है इसलिए अजय चंद्राकर की ओर से मंत्री टंकराम की हिटिंग जरूरी है।
चौदह महीनों के विधायक और मंत्री टंकराम वर्मा भी अब पूर्णकालिक नेता हैं। वे भी क्यों पीछे रहेंगे। सीनीयरिटी का लिहाज करते हुए कैरम की गोटी की तरह उन्होंने भी एक स्ट्राइक किया है। टंकराम ने भारतमाला परियोजना में भूअर्जन का मामला उठाया है। इसके लिए तबकी कांग्रेस सरकार को आड़े हाथों लिया है। भारतमाला परियोजना का एक बड़ा हिस्सा कुरूद, धमतरी से होकर गुजरता है। टंकराम के मुताबिक तबकी सरकार ने अपने हितग्राहियों की रोरबटोर करके भूअर्जन में गड़बड़ियां की हैं। टंकराम ने इस मसले को उठाकर वैसे तो कांग्रेस को घेरा है, लेकिन यह विषय किसी के तीखे तेवरों को टंकराम का जवाब भी हो सकता है। इतना पर्याप्त है।