कोलकाता, 26 सितंबर (भाषा) कच्चे जूट की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के बीच, सरकार ने व्यापारियों, बेलर और मिल मालिकों के लिए अधिकतम स्टॉक की सीमा तय करने का आदेश जारी किया है।
उद्योग जगत का मानना है कि इस कदम से अल्पावधि में इस वस्तु की आपूर्ति बढ़ेगी, लेकिन दीर्घावधि में बाजार को स्थिर करने में यह कारगर नहीं हो सकता है।
कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत जूट आयुक्त कार्यालय द्वारा जारी इस आदेश में, बेलर को अधिकतम 2,000 क्विंटल कच्चा जूट, अन्य स्टॉकिस्टों को 300 क्विंटल और मिलों को मौजूदा उत्पादन दरों पर 45 दिनों से अधिक की खपत की अनुमति नहीं दी गई है।
यह आदेश, जूट की कीमतों के 9,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को पार करने के बाद आया है। मिलों को कच्चा माल खरीदने में कठिनाई हो रही है और आवक कम हो रही है।
भारतीय जूट मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राघवेंद्र गुप्ता ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘स्टॉक नियंत्रण आदेश बाजार स्तर पर जमाखोरी को रोकने वाला हो सकता है, लेकिन मिल मालिकों के लिए यह अनुचित है। अगर सत्र की शुरुआत में ही कच्चे जूट के स्टॉक पर सीमा लगा दी जाती है, तो हमें साल के बाकी समय में जूट की बोरियों का उत्पादन बढ़ाने और सरकारी क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। हम सत्र की शुरुआत में ही जूट मिलों पर स्टॉक प्रतिबंध लगाने का समर्थन नहीं करते।’’
मिल मालिकों के अनुसार, परंपरागत रूप से मिलें सत्र की शुरुआत 10 लाख गांठ स्टॉक के साथ करती हैं, लेकिन इस साल वे सितंबर-अक्टूबर के महत्वपूर्ण त्योहारी पैकेजिंग काल की शुरुआत ऐतिहासिक रूप से कम स्टॉक के साथ कर रही हैं।
गुप्ता ने कहा कि मिल मालिक ‘‘कच्चे माल के कम स्टॉक के कारण एक नाजुक स्थिति’’ में हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘औसतन, मिल मालिकों के पास अब 25 दिनों का स्टॉक है, जो लगभग 5 लाख गांठ है। चूंकि कच्चे जूट की जमाखोरी ‘मोकम’ (गांवों के बाजार) स्तर पर की जा रही थी, इसलिए मिलों में आवक न के बराबर थी।’’ उन्होंने दावा किया कि बांग्लादेश से भूमि बंदरगाह के जरिए आयात प्रतिबंध और उत्पादन में गिरावट ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
हालांकि जूट बेलर्स एसोसिएशन के समिति सदस्य जय बागड़ा ने जमाखोरी के आरोपों को खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा कि इस साल कच्चे जूट का उत्पादन 10-15 प्रतिशत कम है, और चालू सत्र में बचा हुआ जूट ‘‘18 लाख गांठ से ज्यादा नहीं’’ होने का अनुमान है। पिछले साल बचा हुआ जूट 30 लाख गांठ था।
बागड़ा ने बताया, ‘‘कम उत्पादन, कम बचा हुआ जूट और बांग्लादेश से कच्चे जूट के आयात पर प्रतिबंध, कीमतों में तेजी के कारण हैं। कोई जमाखोरी नहीं है क्योंकि जब व्यापारी भारी कीमत चुका रहे हैं तो कोई भी इस उत्पाद की जमाखोरी नहीं कर पाएगा।’’
उन्होंने कहा कि स्टॉक नियंत्रण आदेश से अल्पावधि में बाजार में कुछ हद तक नरमी आ सकती है।
आईजेएमए के पूर्व अध्यक्ष संजय कजारिया ने कहा, ‘‘लेकिन यह कदम दीर्घावधि में कीमतों को नियंत्रित करने में कारगर नहीं हो सकता है, क्योंकि इस वर्ष फसल (कच्चा जूट) कम होने की उम्मीद है। जूट वर्ष 2024-25 (जुलाई-जून) में, आयात सहित कच्चे माल की उपलब्धता 95 से 98 लाख गांठ के आसपास थी। इसके अलावा, इस वर्ष जूट की बोरियों के लिए सरकार का ऑर्डर स्थिर रहने की संभावना है और मिल मालिकों की ओर से कच्चे माल की मांग स्थिर रहेगी।’’
उन्होंने कहा कि नए स्टॉक नियंत्रण आदेश का उद्देश्य जमाखोरी और सट्टा व्यापार पर अंकुश लगाना है, लेकिन उन्हें लगता है कि इसका ‘सीमित प्रभाव’ हो सकता है।
भाषा राजेश राजेश रमण
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