(मनोज राममोहन)
बेंगलुरु, 28 सितंबर (भाषा) उन्नत विमान इंजन तकनीकों पर कार्य कर रही जीई एयरोस्पेस अब इंजन डिजाइन में कृत्रिम मेधा (एआई) के इस्तेमाल की संभावनाएं तलाश रही है।
कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इंजन के डिजाइन के बारे में बेहतर पूर्वानुमान सुनिश्चित करने के लिए एआई की मदद ली जा रही है।
बेंगलुरु स्थित 25 वर्ष पुराना जॉन एफ वेल्च टेक्नोलॉजी सेंटर (जेएफडब्ल्यूटीसी) जीई एयरोस्पेस की नवोन्मेषी और सतत समाधानों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
जीई एयरोस्पेस इंडिया के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी आलोक नंदा ने बताया कि इस केंद्र की स्थापना के बाद से अब तक जीई द्वारा पेश या प्रमाणित किए गए सभी इंजन किसी न किसी रूप में बेंगलुरु स्थित टीम की भागीदारी के साथ विकसित किए गए हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी को देश में प्रतिभा खोजने में अत्यधिक सफलता मिली है। इस दल के नाम पर अब तक 1,000 से अधिक विमानन प्रौद्योगिकी पेटेंट हैं।
नंदा ने पीटीआई-भाषा को बताया कि आज जो कुछ भी कंपनी कर रही है, वह किसी न किसी रूप में एआई से प्रभावित हो रहा है।
उन्होंने एआई को क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला बताया। उन्होंने कहा कि इंजन डिजाइन से लेकर रखरखाव और उसके बीच की हर प्रक्रिया में एआई का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है।
बेंगलुरु केंद्र में एयरोस्पेस सर्विसेज टेक्नोलॉजी लैब (एएसटीएल) है, जो विमान इंजन रखरखाव के लिए एआई के उपयोग पर काम करता है।
नंदा ने कहा, ”हमने भारत में प्रतिभा का शानदार उपयोग किया है। हमारे केंद्र की स्थापना के बाद से जीई द्वारा पेश या प्रमाणित किया गया हर इंजन किसी न किसी रूप में इस केंद्र से जुड़ा है। प्रतिभा के लिहाज से भारत से बेहतर कोई जगह नहीं है और हमें यहां जबरदस्त सफलता मिली है।”
उन्होंने कहा, ”यह टीम नए प्रयोग करने से नहीं घबराती, यह टीम दूरी तय करने से नहीं डरती… यही उत्साह इसे खास बनाता है। मैं यह नहीं कह रहा कि ऐसा दूसरी जगहों पर नहीं है, लेकिन मैंने भारत में इसे भरपूर देखा है। यह विशेष गुण ही हमें टिकाऊ रूप से सार्थक पेटेंट दिलाने में मदद करता है। इन 25 वर्षों में 1,000 पेटेंट तक पहुंचना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है।”
भाषा योगेश पाण्डेय
पाण्डेय