नयी दिल्ली, नौ दिसंबर (भाषा) कृत्रिम मेधा (एआई) डेवलपर को एआई प्रणालियां तैयार करने के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध सभी कॉपीराइट-संरक्षित सामग्री का उपयोग करने के लिए अनिवार्य लाइसेंस देने का एक सरकारी समिति ने सुझाव दिया है। साथ ही इस पर संबंधित हितधारकों से प्रतिक्रिया व विचार मांगे गए हैं।
समिति की सिफारिश के अनुसार, लाइसेंस के साथ कॉपीराइट धारकों के लिए वैधानिक पारिश्रमिक का अधिकार भी होना चाहिए।
ये सुझाव समिति द्वारा तैयार किए गए कार्य पत्र का हिस्सा हैं जिसे उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा हितधारकों के विचार जानने के लिए जारी किया गया है।
एआई प्रणालियों और कॉपीराइट से संबंधित उभरते मुद्दों पर विचार-विमर्श की बढ़ती आवश्यकता को स्वीकार करते हुए डीपीआईआईटी ने 28 अप्रैल 2025 को एक समिति का गठन किया था। आठ सदस्यीय इस समिति की अध्यक्षता अतिरिक्त सचिव हिमानी पांडे ने की। इसमें कानूनी विशेषज्ञ, उद्योग और शिक्षा जगत के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
इसे समिति को एआई प्रणालियों द्वारा उठाए गए मुद्दों की पहचान करने, मौजूदा नियामक ढांचे की जांच करने, इसकी पर्याप्तता का आकलन करने और यदि आवश्यक हो तो बदलावों की सिफारिश करने के अलावा हितधारकों के साथ परामर्श के लिए एक कार्य पत्र तैयार करने का कार्य सौंपा गया था।
समिति ने कार्य पत्र (भाग-1) तैयार किया है जिसे डीपीआईआईटी द्वारा आठ दिसंबर को सार्वजनिक रूप से जारी किया गया। इसने 30 दिन के भीतर सभी संबंधित हितधारकों से प्रतिक्रिया और विचार मांगे हैं।
पत्र में कहा गया, ‘‘ बहुमत के आधार पर समिति ने एआई प्रणाली के प्रशिक्षण में सभी वैध रूप से प्राप्त कॉपीराइट-संरक्षित कार्यों के उपयोग के लिए एआई डेवलपर के पक्ष में एक अनिवार्य व्यापक लाइसेंस की सिफारिश करने का निर्णय लिया है। साथ ही कॉपीराइट धारकों के लिए एक वैधानिक पारिश्रमिक अधिकार भी दिया गया है।’’
इस ढांचे के तहत, अधिकार धारकों के पास एआई प्रणालियों के प्रशिक्षण में अपने कार्यों को सीमित करने रखने का विकल्प नहीं होगा।
इसमें कहा गया, ‘‘ कॉपीराइट स्वामियों के रॉयल्टी प्राप्त करने के अधिकार को संरक्षित करके तथा अधिकार धारकों द्वारा बनाए गए तथा सरकार द्वारा नामित एकल संगठन के माध्यम से इसे प्रशासित करके…मॉडल का उद्देश्य एआई प्रशिक्षण के वास्ते एआई डेवलपर के लिए सामग्री तक आसान पहुंच प्रदान करना, लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को सरल बनाना, लेनदेन लागत को कम करना तथा अधिकार धारकों के लिए उचित मुआवजा सुनिश्चित करना है।’’
पत्र में कहा गया है कि यह हाइब्रिड मॉडल एआई डेवलपर को एआई प्रशिक्षण के लिए कॉपीराइट कार्यों तक पहुंच प्राप्त करने के लिए एकल खिड़की भी प्रदान करता है।
इसमें कहा गया कि जनरेटिव एआई में दुनिया को बेहतर बनाने की अपार क्षमता है जो इसके विकास का समर्थन करने वाले नियामक माहौल की आवश्यकता को रेखांकित करता है। हालांकि, जिन प्रक्रियाओं के द्वारा एआई प्रणालियों को प्रशिक्षित किया जाता है जिनमें अक्सर कॉपीराइट धारकों से अनुमति लिए बिना कॉपीराइट सामग्री का उपयोग किया जाता है तथा उनके द्वारा उत्पन्न सामग्री (आउटपुट) की प्रकृति ने कॉपीराइट कानून के इर्द-गिर्द एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है।
पत्र में कहा गया कि कि मुख्य चुनौती यह है कि प्रौद्योगिकी प्रगति को बाधित किए बिना, मानव निर्मित कार्यों में कॉपीराइट की सुरक्षा कैसे की जाए।
इसमें कहा गया, ‘‘ इस समस्या के समाधान के लिए, देश में रचनात्मक परिवेश की अखंडता को बनाए रखने और साथ ही एआई नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए एक संतुलित नियामक ढांचे की आवश्यकता है।’’
इसके अलावा समिति ने स्वीकार किया कि बड़ी मात्रा में डेटा एवं उच्च गुणवत्ता वाले डेटा तक पहुंच एआई विकास के लिए महत्वपूर्ण है। लंबी बातचीत और उच्च लेनदेन लागत नवाचार को रोक सकती है, विशेष रूप से स्टार्टअप और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रम (एमएसएमई) को…।
इसमें कहा गया कि समिति ने एक हाइब्रिड दृष्टिकोण अपनाने का निर्णय लिया है जो एआई प्रशिक्षण के लिए सभी कानूनी रूप से हासिल की गई कॉपीराइट सामग्री की उपलब्धता को अधिकार के रूप में सुनिश्चित करता है, व्यक्तिगत बातचीत की आवश्यकता के बिना, डेवलपर के लिए लेनदेन लागत कम हो जाती है और उनके लिए अनुपालन बोझ कम हो जाता है।
समिति ने कॉपीराइट धारकों को उचित मुआवजा देने, रॉयल्टी दरों पर न्यायिक समीक्षा स्थापित करने, अधिकार धारकों को भुगतान की आसान एवं सीधी प्रक्रिया तथा स्टार्टअप एवं छोटी कंपनियों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने का सुझाव दिया है।
भाषा निहारिका मनीषा
मनीषा