(लक्ष्मी देवी)
नयी दिल्ली, 28 दिसंबर (भाषा) भारत के कृषि क्षेत्र के समक्ष अनियमित मौसम की चुनौतियों के बावजूद भी सरकार को भरपूर खाद्यान्न उत्पादन की उम्मीद है। हालांकि, वह 2024 के आम चुनाव से पहले खाद्य मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए प्रयास कर रही है।
बाढ़ से लेकर सूखे तक, इस साल चरम मौसम की घटनाओं ने न केवल खाद्यान्न उत्पादन पर आशंकाएं बढ़ा दी हैं, बल्कि कृत्रिम आपूर्ति का डर भी पैदा कर दिया है, जिसने सरकार को कुछ वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंध सहित कई एहतियाती कदम उठाने के लिए मजबूर किया है।
इसके अलावा सरकार ने घरेलू आपूर्ति में सुधार करने और गेहूं, चावल, खाद्य तेल, दालें, टमाटर और प्याज की खुदरा कीमतों में तेज बढ़ोतरी को रोकने के लिए कुछ वस्तुओं की बिक्री पर सब्सिडी दी।
खाद्य कीमतों को नियंत्रित करने के प्रयास अभी भी जारी हैं, लेकिन सरकार रबी (सर्दियों) की फसलों, विशेष रूप से गेहूं और दालों की संभावनाओं पर करीब से नजर रख रही है, जो अभी बोई गई हैं और अप्रैल-मई में 2024 के आम चुनावों के करीब कटाई के लिए तैयार हो जाएंगी।
मई में 2.96 प्रतिशत के निचले स्तर को छूने के बाद खाद्य मुद्रास्फीति पूरे वर्ष ऊंचे स्तर पर रही। नवंबर में यह 8.7 प्रतिशत थी।
कृषि फसलें जुलाई, 2023 और जून, 2024 के बीच दो मौसमों – खरीफ (ग्रीष्म) और रबी (सर्दियों) में उगाई जाती हैं। खरीफ फसलों की कटाई हो चुकी है जबकि रबी फसलें अब बोई जा रही हैं।
कृषि मंत्रालय ने अपने शुरुआती अनुमान जारी किए हैं, जो वर्ष 2023 के खरीफ खाद्यान्न उत्पादन में मामूली गिरावट के साथ 14 करोड़ 85.6 लाख टन रहने की संभावना के कारण सकारात्मक तस्वीर नहीं देते हैं, जबकि एक साल पहले की समान अवधि में यह 15.57 करोड़ टन था। अल नीनो की स्थिति मजबूत होने के बीच चार माह (जून-सितंबर) के मानसून के दिनों में ‘औसत से कम’ बारिश हुई।
कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश को सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ा, जबकि तमिलनाडु को चक्रवात मिचौंग के कारण बाढ़ का सामना करना पड़ा, जिससे खरीफ की फसलें और किसानों की आजीविका प्रभावित हुई।
मंत्रालय के पहले अनुमान से पता चला है कि चावल, मक्का, मूंग, तिलहन, गन्ना और कपास का 2023 खरीफ उत्पादन साल भर पहले की तुलना में कम था। रबी फसलों के उत्पादन का अनुमान अभी आना बाकी है।
हालांकि, मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि चौथे और अंतिम अनुमान तैयार होने तक ख़रीफ़ खाद्यान्न उत्पादन अनुमानों को सकारात्मक रूप से संशोधित किया जाएगा।
कृषि सचिव मनोज आहूजा ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘जलवायु परिवर्तन आज एक वास्तविकता है। हालांकि, हमारे कृषि क्षेत्र ने चरम मौसम की घटनाओं के प्रति अपनी जिजीविषा प्रकट की है। सरकार जलवायु-सहिष्णु बीजों को बढ़ावा दे रही है। इन उपायों के साथ, हम वित्त वर्ष 2023-24 में भरपूर फसल प्राप्त करने को लेकर आशान्वित हैं।’’
उन्होंने कहा कि खरीफ मौसम के दौरान सूखा और बाढ़-सहिष्णु बीजों को बढ़ावा दिया गया, जबकि चालू रबी मौसम में 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में गर्मी प्रतिरोधी किस्मों को बोया गया है।
हालांकि, सचिव ने उल्लेख किया कि इस वर्ष अनुमानित थोड़ा कम ख़रीफ़ खाद्यान्न उत्पादन चिंता का कारण नहीं है।
पिछले साल भी देश को अनियमित मौसम की स्थिति का सामना करना पड़ा था और फिर भी मंत्रालय के अंतिम अनुमान के अनुसार, फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) में 32 करोड़ 96.8 लाख टन का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन हासिल किया जा सका।
हालांकि, तापमान में अचानक वृद्धि ने पिछले साल के गेहूं उत्पादन के बारे में चिंता पैदा कर दी, जिसके कारण उच्च घरेलू कीमतों को रोकने के लिए मई, 2022 में इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
जब अंतिम अनुमान जारी किए गए, तो वर्ष 2022-23 के लिए गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 11 करोड़ 5.5 लाख टन आंका गया था, जबकि पिछले वर्ष 10.77 करोड़ टन का उत्पादन हासिल किया गया था, लेकिन यह तीसरे अनुमान से थोड़ा कम था।
इस बात पर जोर देते हुए कि इस साल गेहूं की बुवाई अच्छी चल रही है, कृषि आयुक्त पी के सिंह ने कहा, ‘‘हमने जलवायु अनुकूल बीजों के तहत गेहूं का रकबा और बढ़ा दिया है, जिससे फसल पकने के समय औसत से अधिक तापमान का सामना करने में मदद मिलेगी।’’
उन्होंने कहा कि धान की कटाई में देरी के कारण 22 दिसंबर तक गेहूं की बुवाई का रकबा तीन करोड़ 8.6 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो एक साल पहले की समान अवधि के 3.14 करोड़ हेक्टेयर से थोड़ा कम है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों को प्रतिकूल मौसम की स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करने को साप्ताहिक परामर्श जारी करना शुरू कर दिया है।
भारत दुनिया में गेहूं और चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। ये दोनों वस्तुएं सरकार किसानों से सीधे खरीदती है ताकि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित किया जा सके, कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए बफर स्टॉक बनाए रखा जा सके और खुदरा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए बाजार हस्तक्षेप करने के लिए इसका उपयोग किया जा सके।
वर्ष 2024 के आम चुनावों से पहले, सरकार ने किसानों और उपभोक्ता हितों को संतुलित करने के लिए कड़ी मेहनत की है। किसानों को लुभाने के लिए इस साल धान का एमएसपी 143 रुपये बढ़ाकर 2,183 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया, जो पिछले दशक में दूसरी सबसे बड़ी वृद्धि है। पिछले 10 वर्षों में धान के एमएसपी में सबसे अधिक वृद्धि वित्त वर्ष 2018-19 में 200 रुपये प्रति क्विंटल की गई थी।
इसी तरह, फसल वर्ष 2023-24 के लिए गेहूं का एमएसपी 150 रुपये बढ़ाकर 2,275 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया, जो वास्तव में 2014 में सत्ता में आने के बाद से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा की गई सबसे अधिक वृद्धि थी।
आत्मनिर्भर बनने और आयात पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए दलहन और तिलहन का एमएसपी भी बढ़ाया गया। सरकार ने भी अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष में मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने और प्रोत्साहन देने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
न केवल गेहूं और धान उत्पादकों बल्कि टमाटर और प्याज जैसी बागवानी फसलें उगाने वाले किसानों को भी मौसम-प्रेरित चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
बेमौसम बारिश के कारण कुछ राज्यों में फसल को नुकसान हुआ, आपूर्ति संकट पैदा हुआ और देश के अधिकांश हिस्सों में जुलाई में खुदरा कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गईं और सरकार को पहली बार टमाटर खरीदकर सब्सिडी वाली दर पर खुदरा में बेचना पड़ा। नतीजतन, अब दिल्ली में टमाटर की खुदरा कीमतें 30 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर हैं।
प्याज के मामले में भी, सरकार सतर्क है और उन शहरों में रियायती दरों पर बफर प्याज की बिक्री शुरू की, जहां पिछले कुछ महीनों में कीमतें तेजी से बढ़ी थीं।
सरकार ने पीएम-किसान, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और किसान क्रेडिट कार्ड जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कृषक समुदाय को समर्थन जारी रखते हुए किसानों और उपभोक्ताओं के हितों को संतुलित करने को प्राथमिकता दी।
सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 81 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन वितरण की सुविधा भी अगले पांच साल के लिए बढ़ा दी है।
भाषा राजेश राजेश अजय
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