(आशीष अगाशे)
मुंबई, 30 दिसंबर (भाषा) रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंची महंगाई के बीच भारतीय रिजर्व बैंक ने 2025 में छह मौद्रिक नीति समीक्षाओं में चार में अपनी प्रमुख नीतिगत दरों में कुल 1.25 प्रतिशत की कटौती की। गवर्नर संजय मल्होत्रा ने इसे अर्थव्यवस्था के लिए एक ‘दुर्लभ रूप से संतुलित आर्थिक दौर’ करार दिया।
मल्होत्रा ने फरवरी में अपने पहले नीति बयान से ही वृद्धि को समर्थन देने के लिए दरों में कटौती की शुरुआत की थी। इसके बाद जून में भी उन्होंने 0.50 प्रतिशत की बड़ी कटौती की, क्योंकि कम महंगाई से नीति में ढील देने की गुंजाइश बनी।
नौकरशाह से केंद्रीय बैंक के गवर्नर बने मल्होत्रा ने पद संभालने के एक वर्ष पूरे होने पर मौजूदा स्थिति को भारत के लिए ‘दुर्लभ रूप से संतुलित आर्थिक दौर’ करार दिया, जिसमें अमेरिका के शुल्क और भू-राजनीतिक बदलाव जैसे प्रतिकूल कारकों के बावजूद वृद्धि दर आठ प्रतिशत से ऊपर रही और महंगाई एक प्रतिशत से नीचे रही।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आगे चलकर वृद्धि की रफ्तार कुछ नरम पड़ेगी और महंगाई बढ़कर आरबीआई के चार प्रतिशत के लक्ष्य के करीब पहुंचेगी।
चालू कीमतों पर जीडीपी वृद्धि कम रहने को लेकर चिंताओं के बीच मल्होत्रा ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के कदम वास्तविक जीडीपी के आधार पर तय होते हैं, जो महंगाई घटाने के बाद सामने आती है।
वास्तविक महंगाई के आंकड़े आरबीआई के अनुमानों से काफी कम रहे, जिससे केंद्रीय बैंक की पूर्वानुमान क्षमता को लेकर कुछ सवाल उठे। इस पर डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता ने कहा कि आकलन में किसी तरह का प्रणालीगत पक्षपात नहीं है।
दर कटौती और उधारी लागत में गिरावट की स्पष्ट अपेक्षाओं के चलते आरबीआई के कदम से बैंकों को झटका लगा। शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में कमी और मुख्य आय में गिरावट से बैंक प्रभावित हुए। हालांकि, अर्थव्यवस्था में पर्याप्त नकदी सुनिश्चित करने और खास तौर पर नियामकीय ढील जैसे कदमों ने असर को कुछ हद तक कम किया।
पूरे साल नियामकीय ढील के लिए कई उपाए किए गए। अक्टूबर की मौद्रिक नीति घोषणा इसका चरम रही, जिसमें 22 नियामकीय उपाय शामिल थे, जिनमें कुछ उपाए आमतौर पर सतर्क माने जाने वाले आरबीआई जैसे संस्थान के लिए असामान्य थीं। इनमें बैंकों को भारतीय कंपनियों द्वारा वैश्विक अधिग्रहणों के लिए वित्तपोषण की अनुमति देना शामिल है।
मल्होत्रा का जोर ग्राहकों के प्रति संवेदनशीलता और शिकायतों का तेजी से समाधान करने पर रहा है, जो उनके कई भाषणों और टिप्पणियों में झलकता है।
आरबीआई ने 2025 में अपने 90 वर्ष पूरे किए और इस साल उसके लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रुपया का डॉलर के मुकाबले 90 के स्तर से नीचे फिसलना रहा।
केंद्रीय बैंक का कहना है कि उसका बाजार में हस्तक्षेप किसी स्तर को बचाने के लिए नहीं, बल्कि उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए होता है। इसके बावजूद घरेलू मुद्रा के कमजोर होने के बीच आरबीआई ने वर्ष के पहले नौ महीनों में 38 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार बेचा। विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये का प्रबंधन आगे भी केंद्रीय बैंक के लिए चुनौतीपूर्ण बना रहेगा।
भाषा पाण्डेय रमण
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