नितिन सिंघवी, वन्य प्राणी कार्यकर्ता. रायपुर
यह सच है कि 2010 के बाद से देश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन इसके समानांतर यह भी सच है कि पिछली शताब्दी में बाघों की 95% हिस्टोरिकल रेंज खत्म हो गई। ऐसे में बढ़ते हुए बाघ कहां जाएं? 600 वर्ग किलोमीटर वाले ताडोबा-अंधेरी टाइगर रिज़र्व में ये समस्या हो रही है। इलाके की समस्या के कारण उनका आपस में द्वन्द बढ़ेगा। ऐसे में जहां संख्या बढ़ रही है वहां से आवश्यक कुछ बाघों को ट्रांसलोकेट करके उचित रहवास में भेजा जाना सही कदम होगा। जहां बाघ खत्म हो गए है वहां टाइगर रिकवरी किया जाना भी ठीक है। हाल ही में छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभयारण में टाईगर इंट्रोडक्शन और बाघों के रिकवरी प्लान पर वन्यप्राणी संस्था से आवास उपयुक्तता रिपोर्ट यानि Habitat Suitability Report बनवाने पर सैद्धांतिक अनुमति मिली है। ऐसे ही अचानकमार टाइगर रिजर्व (ATR) में टाइगर रिकवरी के लिए अध्ययन कराया जाएगा। बाद में एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण) की अनुमति से बाघों को लाया जाएगा।
ATR में अभी भी कुछ टाइगर हैं, अन्य कुछ कान्हा और बांधवगढ़ तक फैले हुए हैं। ATR हिन्दुस्तान का सबसे महत्वपूर्ण टाइगर कॉरीडोर का हिस्सा है। इसलिए इस बात की कोई गारंटी नहीं रहेगी कि यहाँ बाघ ला के छोड़े जाने पर वे यहीं रहेंगे। फिर भी दूसरे टाइगर रिज़र्व की बढ़ी संख्या को ATR लाया जाना ठीक है। अभी भी ATR से 25 में से 19 गावों का विस्थापन लंबित है, जिसे 2020 तक कर लेना था। लेकिन यहां सिर्फ बातें हो रही हैं।
छत्तीसगढ़ से लगे ओडिशा के सत्कोसिया टाइगर रिजर्व में किसी जमाने में टाइगर थे। ये बहुत साल पहले खत्म हो गए। एनटीसीए के साथ मिलकर ओडिशा में 2018 में बांधवगढ़ से 4 वर्ष की बाघिन सुंदरी और कान्हा से महावीर बाघ को टाइगर रिकवरी के लिए सत्कोसिया लाया गया। बहुत प्रचार प्रसार किया। कुछ दिनों बाद दोनों को जंगल में छोड़ दिया। महावीर भाग्यशाली था, शिकारियों ने जल्द ही मार दिया नहीं तो उसका हाल भी सुंदरी जैसा होता। सुंदरी से दुर्भाग्यवश Chance Encounter में दो जनहानि हो गई। बस ओडिशा में बवाल मच गया, नेता-मंत्री सामने आ गए। सुंदरी को पकड़ कर नंदनकानन भुवनेश्वर जू में कैद कर दिया। बाद में दिल्ली की एक महिला ने जबलपुर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की, जिसमें कोर्ट ने आदेशित किया कि सुंदरी को वापस मध्यप्रदेश लाकर छोड़ने की कोशिश हो। 2022 में सुंदरी नंदनकानन से कान्हा लाई गई, वहां के डॉक्टर ने कहा कि सुंदरी में 100% शिकार करने के गुण अभी हैं, परंतु उसने ह्युमन इमप्रिंटिंग (मानव छाप) बहुत ज्यादा हो गई है। जू का जो कर्मचारी खाना खिलाने आता है, उसके पास तक वह चली आती है। ऐसे में निर्णय लिया गया कि सुंदरी को अब आजीवन भोपाल के जू में रखा जाएगा और खेद है वह दुर्भाग्यशाली भोपाल में आजीवन कैद की सजा काट रही है।
यह बहुत दुखद है, दिल को छू लेता है कि एक जानवर जिसका कोई कसूर नहीं था, वह मानव के ख्वाब और इच्छा की पूर्ति के लिए, मानव द्वारा बिना समस्या को समझे, दूसरे जगह भेज दिए जाता है। जहां के लोग टाइगर के साथ रहना पीढ़ियों से भूल चुके हैं और जहाँ डेवलपमेंट ने टाइगर बर्दाश्त करना नामुमकिन कर दिया है। अगर इस मुद्दे पर, सुंदरी और महावीर को सत्कोसिया भेजे जाने के पहले विचार किया गया होता तो शायद आज दोनों अपनी अपनी जगह पर अपने कुनबे बढ़ाते होते और आपको कान्हा और बांधवगढ़ में अपने शावकों के साथ शायद देखने मिल गए होते।
छत्तीसगढ़ की वन्य जीव बोर्ड की बैठक में बताया गया कि बारनवापारा में 12 साल पहले तक बाघ थे। बारनवापारा 12 साल में बहुत बदल गया है। अभयारण के चारों तरफ गावों में पक्के मकान हैं। बार में धान उपार्जन केंद्र है, खेतों में सोलर हैं। इन गांव में गाड़ियां बढ़ गई हैं। बारनवापारा अभ्यारण एक ऐसा अभ्यारण है, जहां दूसरे जंगलों के समान जानवर शाम को बहुत कम निकलते हैं। जब मानव की गतिविधियां गावों में कम हों तब बफर में जानवर निकलते हैं। यह उनके स्वभाव के विपरीत है, अमूनन दूसरे जंगलों में शाकाहारी शाम को कुछ चरके आराम करते हैं। जानवरों के शिकार करने के लिए 11 केवी लाइन में हुकिंग कर शिकार यहाँ आम बात है, इसमें हाथी भी मारे जा रहे हैं। कोर एरिया तक में पानी में यूरिया मिला कर शिकार होता है। यह भी निर्विवादित है की बारनवापारा अभयारण शिकारियों का गढ़ है। अभी कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान यहां बहुत शिकार की खबरें आईं। हर साल होली में जब वन अमला थोड़ा सुस्त होता है तो शिकार बढ़ जाते हैं।
बारनवापारा में बाघ लाए जाते हैं तो बाघों की लड़ाई डेवलपमेंट से होगी और दूसरी लड़ाई मानव के साथ सह-अस्तित्व की। किसी बड़ी वन्यप्राणी संस्था से आवास उपयुक्तता रिपोर्ट बनवाई जाए तो बिना सत्यापन के रिपोर्ट स्वीकारी न जाये। जैसा कि वन भैसों का संरक्षण-संवर्धन में किया गया। इस रिपोर्ट के आधार पर 2 वन भैसों को असम से लाकर 25 एकड़ में आजीवन कैद कर दिया गया, जहां वे चना-चुनी पर जिंदा हैं। जंगल का प्राकृतिक मिनरल नहीं मिलने से सप्लीमेंट दिए जाते हैं। वन विभाग के पास इन वन भैसों की आवास उपयुक्तता रिपोर्ट के अलावा कुछ नहीं है। उन्हें जंगल में कब-कहां छोड़ा जाएगा कोई प्लान नहीं है। परन्तु वन विभाग को यह शर्म की बात नहीं लगती, अब वो नामीबिया से लाए चीतों की तुलना असम के वन भैसों से कर रहे हैं।
अगर सब सही पाया है तो हमें ऐसे बाघ रिकवरी प्लान का स्वागत करना चाहिए। आवश्यक गावों को शिफ्ट पहले करना चाहिए और सभी बिजली लाइन कवर्ड कंडक्टर की हों। हमारे यहां कुछ युवा अधिकारी हैं जो यह कार्य दिल से कर सकते हैं, एनटीसीए में भी कुछ बहुत गंभीर अधिकारी हैं। परन्तु बाघ लाने के पूर्व एक पालिसी और बनानी पड़ेगी कि फील्ड डायरेक्टर स्तर तक का जो आधिकारी बाघ लाने में दिलचस्प है और उस में कार्य करना चाहता है। वही तब तक रहे जब तक प्रोजेक्ट सफल न हो जाए। एक बात और बाघ लाए जाने से पहले नेताओं को सहमत होना पड़ेगा कि Chance Encounter पर जनहानि होने पर वे इन लाए गए बाघों को सुंदरी की तरह नहीं बनाएंगे।