Bilaspur High Court: ना पत्नी, ना बेटी की जिम्मेदारी? हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की याचिका की खारिज, कहा- बेटी का भरण-पोषण पिता की कानूनी जिम्मेदारी

Bilaspur High Court: ना पत्नी, ना बेटी की जिम्मेदारी? हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की याचिका की खारिज, कहा- बेटी का भरण-पोषण पिता की कानूनी जिम्मेदारी

Bilaspur High Court/Image Source: IBC24

HIGHLIGHTS
  • भरण-पोषण से नहीं बच सका कांस्टेबल,
  • हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका,
  • बेटी को 5000 प्रतिमाह देने का आदेश बरकरार,

बिलासपुर: Bilaspur News: अपनी पत्नी और बेटी को भरण-पोषण देने में असमर्थता जताते हुए दायर कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। कांस्टेबल की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश पूरी तरह वैध है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। Bilaspur High Court

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Bilaspur High Court:  कांस्टेबल वर्तमान में कोण्डागांव जिला पुलिस बल में पदस्थ है। उसकी पत्नी ने फैमिली कोर्ट में धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका प्रस्तुत की थी। याचिका में पत्नी ने 30,000 रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग की और पति पर शारीरिक प्रताड़ना, छोड़ देने और बेटी की देखरेख नहीं करने जैसे आरोप लगाए। फैमिली कोर्ट अम्बिकापुर ने 9 जून 2025 को फैसला सुनाते हुए पत्नी की भरण-पोषण की मांग को अस्वीकार कर दिया लेकिन छह वर्षीय बेटी के पक्ष में 5,000 रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश पारित किया।

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Bilaspur High Court:  कोर्ट ने कहा कि बच्ची की परवरिश और शिक्षा के लिए यह सहायता जरूरी है। कांस्टेबल ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उसका कहना था कि बच्ची उसकी संतान नहीं है, वह एचआईवी संक्रमित है और इलाज में भारी खर्च आता है, इसलिए भरण-पोषण देना व्यावहारिक नहीं है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की एकलपीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश दोनों पक्षों के साक्ष्यों पर आधारित है।

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Bilaspur High Court:  आदेश में कोई त्रुटि नहीं है और याचिकाकर्ता के आरोप प्रमाणित नहीं हुए। अदालत ने कहा कि बेटी को भरण-पोषण देना पिता की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा है।

धारा 125 CRPC क्या है और "भरण-पोषण" किसे मिलता है?

धारा 125 CRPC के तहत "भरण-पोषण" उस पत्नी, बच्चे या माता-पिता को दिया जाता है जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं। कोर्ट आदेश के अनुसार पति को बच्ची के पालन-पोषण हेतु ₹5000 प्रतिमाह देना होगा।

क्या पिता "भरण-पोषण" देने से इनकार कर सकता है?

यदि कोई स्पष्ट प्रमाण हो कि बच्चा उसका नहीं है, तो वह "भरण-पोषण" से मुक्त हो सकता है। लेकिन इस केस में कोर्ट ने पाया कि ऐसे कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं, इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।

क्या HIV संक्रमित व्यक्ति को "भरण-पोषण" देने से छूट मिल सकती है?

केवल HIV संक्रमित होना "भरण-पोषण" से छूट पाने का कारण नहीं बनता। कोर्ट स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति का समग्र रूप से मूल्यांकन करता है।

"भरण-पोषण" की राशि कैसे तय होती है?

"भरण-पोषण" की राशि पक्षकार की आमदनी, जीवन स्तर और बच्चे की आवश्यकताओं को देखते हुए तय की जाती है। इस केस में ₹5000 प्रतिमाह बच्ची के लिए निर्धारित किया गया।

क्या फैमिली कोर्ट के "भरण-पोषण" आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?

हां, लेकिन केवल तभी जब आदेश में कानूनी त्रुटि या पक्षपात साबित हो। यहां हाईकोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट का आदेश उचित और प्रमाणों पर आधारित है।