Reported By: Vishal Vishal Kumar Jha
,CG News: Image Credit: IBC24
बिलासपुर: पु CG News: लिस हिरासत में मौत के एक मामले में हाईकोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि हिरासत में मौत सिर्फ कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर गहरा आघात है। जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो यह समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा होता है। अदालत ने इस मामले में दोषी थाना प्रभारी समेत चार पुलिस कर्मियों की उम्रकैद की सजा को घटाकर 10 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय के.अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डीबी में हुई।
CG News: बता दें कि पूरा मामला वर्ष 2016 का है। जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम नरियरा निवासी सतीश नोरगे को मुलमुला थाने की पुलिस ने शराब के नशे में हंगामा करने के आरोप में हिरासत में लिया था। जिसके बाद उसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम में उसके शरीर पर 26 चोटों के निशान पाए गए। इस घटना की जांच के बाद थाना प्रभारी जितेंद्र सिंह राजपूत, आरक्षक सुनील ध्रुव, दिलहरण मिरी व सैनिक राजेश कुमार के खिलाफ आइपीसी की धारा 302, 34 के तहत मामला दर्ज किया गया। मामले की सुनवाई करते हुए एट्रोसिटी स्पेशल कोर्ट ने साल 2019 में चारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ आरोपियों ने हाई कोर्ट में अपील की, साथ ही मृतक सतीश की पत्नी ने इस सजा के खिलाफ आपत्ति जताते हुए हस्तक्षेप याचिका दाखिल की थी।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में हत्या की पूर्व मंशा सिद्ध नहीं हो पाई, लेकिन आरोपी यह जानते थे कि शारीरिक प्रताड़ना से गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस आधार पर अदालत ने इसे गैर इरादतन हत्या (आइपीसी 304 भाग-1) माना और उम्रकैद की सजा को घटाकर 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी जानते थे कि मृतक अनुसूचित जाति से संबंधित है। इसलिए अदालत ने एससी-एसटी एक्ट की धाराएं हटाते हुए थाना प्रभारी को इस आरोप से बरी कर दिया।