wild animals leaving the forest and coming to the city
धमतरी। धमतरी जिले में हर साल पारा चढ़ने के साथ ही पानी की तलाश मे जंगली जानवरों का इंसानी आबादी के करीब आने मजबूर हो जाते हैं। जंहा ये बेजुबान जानवर खाल सिगों के तस्कर या फिर अवारा कुत्तो के आसानी से शिकार बन जाते हैं। वैसे तो वन महकमा जगंली जानवरों को बचाने तमाम दावे करती है, पर गर्मी के दस्तक देते ही उनके सारे दावे जमीनी हकीकत में महज कागजी साबित होते है, जिससे वन्य प्राणियों को पानी के लिए भटकना पड़ता है।
ये वाक्या गर्मी मे हर मर्तबा होता है, क्योंकि जिले के ज्यादातर हिस्से में जगंल है और उनमें काफी तादात में जानवर है। खासतौर पर शाकाहारी। अब अगर इन जानवरो के ये जोखिम उठाने की बात पर गौर करे तो जगंल के भीतरी इलाकों में पानी कमी इन्हे मजूबूर कर देती है, जिसके बारे में लोग बताते है कि प्यास बुझाने की आस में ये जानवर अपनी हदो को दरकिनार कर जाते हैं। एक तरफ जहां जानवरों का लगातार आबादी के करीब आना और लोगों की गवाही इस बात की औरसाफ इशारा कर रही है कि जगंलो में पानी का जरिया नहीं के बराबर है।
दूसरी तरफ वन महकमे के अफसर हालात से वाकिफ होने पर भी अपने को पाकसाफ बताने में जरा भी हिचक महसूस नहीं करते। उनकी माने तो हर साल जंगलों में कई तालाब और गड्ढे खुदवाकर पानी का इन्तेजाम किया जाता है। बहरहाल अपनी तमाम योजनाओ के जरिऐ जंगलो मे जानवरो को बचाने के लिऐ लाखों रुपये खर्च करने की सरकारी बाते बीते कई सालो से धमतरी के वनक्षेत्रों में सिर्फ कागजी ही नजर आ रही है। गर्मियों में जानवरों की प्यास तो नहीं बूझ रही है पर अफसरो के जेब जरुर गर्म हो रहे है। ऐसे मे सवाल यह उठता है कि क्या हर साल ये बेजूबान जिन्दगी और मौत का खेल खेलते रहेंगे। IBC24 से देवेंद्र कुमार मिश्रा की रिपोर्ट
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