Villagers forced to drink Jharia water even after independence
गरियाबंद। जिले के अंतिम सीमा उड़ीसा पर बसे गांव पूरनापानी पंचायत 3 मोहल्लों में बसा है। बोरिंग के पानी के संकट के चलते पूरनापानी गांव के 556 परिवार के लगभग 1000 लोग काफी परेशान है। यहां हैंडपंप के नाम पर 12 हैंडपंप खोदे गए हैं, किंतु उनका पानी कसैला आयरन युक्त वह पीला पानी निकलने से उनसे खाने पीने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसका असर खाना बनाने से खाना पीला पड़ रहा है। पानी पीने से पानी से जो तृप्ति मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है। कसैला होने के कारण काफी दिक्कतें आ रही है। पानी का असर दांत पर भी नजर आने लगा है। इस पानी के भारीपन के चलते ग्रामीणों ने बोरिंग का पानी पीना बरसों से बंद रखा है और आज भी तेल नदी के रेत को खोदकर झरिया का पानी पी रहे हैं।
आजादी के बाद भी अगर लोगों को झरिया का पानी पीना पड़े तो यह निश्चित रूप से शासन और प्रशासन के लिए दुर्भाग्य की बात होगी। हालांकि शासन ने एक करोड़ और 10 लाख से अधिक हैंडपंप के लिए राशि स्वीकृत की है किंतु ग्रामीण हैंडपंप खुदवाने तैयार नहीं है, वही शासन से इन्होंने तेल नदी 1 किलोमीटर दूर से पानी ला कर पानी सप्लाई करने की मांग की है, ताकी इनका प्यास बुझ सके और यह दैनिक जीवन में अच्छे से कार्य कर सकें।
गरियाबंद जिले के दर्जनों ऐसे गांव हैं, जहां आज भी लोग नदी के किनारे झरिया खोदकर पानी पीने को विवश है। ऐसा नहीं है कि इनके गांव में शासन प्रशासन ने हैंडपन नहीं खुदा है किंतु यहां का पानी कसैला आयरन युक्त व अन्य जमिन के रासायनिक मिश्रण के चलते यह ग्रामीण पानी का पानी नहीं चाहते, क्योंकि इन हैंडपंप के पानी से जहां पानी मटमैला, पीला आता है, वहीं इसमें आयरन व अन्य पदार्थ का मिश्रण होते हैं। ऐसे में पानी का वह स्वाद इन्हें नहीं मिल पाता, जो कि मिलना चाहिए। इन स्थितियों के बीच ग्रामीण हैंडपंप का पानी नहीं पीना चाहते जब वे झरिया का पानी ही पीकर अपनी जिंदगी आगे बढ़ाना चाहते हैं।
देवभोग विकासखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर बसे पूरनापानी पचायत की भी यही दास्तां है। यह गांव लगभग 1700 से अधिक आबादी वाला पचायत है, जहां 3 पारा की बस्ती है जो सुकला पारा 120 अबादी कोदोभाटा 700 आबादी तथा पूरनापानी गांव है। यह गांव लगभग 1000 से अधिक आबादी है यहां पर ग्रामीण के शुद्ध पेयजल हेतु 12 हैंडपंप खोदे गए हैं, किंतु दुर्भाग्य यह है कि इन हैंडपंपों में कसैला आयरन युक्त वा पीला पानी निकलने से ग्रामीण इसे खाने पीने में इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। इस पानी का उपयोग बर्तन वा कपड़ा धोने व नहाने के लिए ही उपयोग करते हैं।
इन स्थितियों के बीच जब शासन का ध्यान इस ओर गया तो शासन ने यहां के स्वच्छ पेयजल हेतु एक करोड़ और 10 लाख से अधिक की राशि स्वीकृत करते हुए यहां पर अन्य हैंडपंप के माध्यम से राजीव गांधी जल ग्रहण से पानी देने का प्रयास किया, किंतु यहां के ग्रामीण किसी भी स्थिति में हैंडपंप का पानी नहीं पीना चाहते इसलिए उनकी मांग है कि उक्त राशि को तेल नदी के पानी के लिये कन्वर्ट करके नदी में ट्यूबेल लगा कर ओवर हेड टैंक के माध्यम से पूरना पानी के साथ अन्य गांव को भी पानी देने की मांग कर रहे है। इससे उक्त राशि में इन्हें आसानी से पेयजल उपलब्ध हो जाएगा और इससे उनकी परेशानी का भी समाधान हो जाएगा।
ग्रामीणों का कहना है कि वे किसी भी शर्त पर गांव में हैंडपंप खोदने नहीं देंगे और अगर शासन को अगर उन्हें स्वच्छ पानी मुहैया कराना है तो तेल नदी पर और हेड टैंक बना कर वहां से गांव मे पानी उपलब्ध कराएं तभी वे यहां का पानी पिएंगे हालांकि किसी भी क्षेत्र में आजादी के इतने सालों के बाद ग्रामीण जनों को स्वच्छ व शुद्ध पेयजल नहीं मिल पाए यह भी दुर्भाग्य की बात कही जा सकती है। ग्रामीणों ने इसके लिए अनेक बार शासन प्रशासन मंत्री और मुख्यमंत्री तक आवेदन पहुंचाएं हैं, किंतु अब तक उनके आवेदनों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है ग्रामीण जल्द ही इन समस्याओं का समाधान चाहते हैं ताकि उन्हें स्वच्छ पानी मिल सके और वैसे भी किसी भी सरकार का दायित्व होता है कि आम जनों को स्वच्छ व शुद्ध पानी पेयजल उपलब्ध कराएं। IBC24 से फारूक मेमन की रिपोर्ट