CG Ki Baat | Photo Credit: IBC24
रायपुर: CG Ki Baat बस्तर के विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा, नक्सलवाद रहा है, लेकिन अब केंद्र सरकार ने 2026 के मार्च तक नक्सलवाद के पूर्ण सफाए का दावा किया है और जिस रफ्तार से एंटी नक्सल अभियान चल रहे हैं, उसमें कामयाबी मिल रही है उससे लगता है कि ये लक्ष्य वक्त पर पूरा होगा। दूसरी तरफ बस्तर में पहली बार कुछ गांवों में पत्थलगड़ी होने की बात सामने आई है। सवाल ये है कि जब तक बस्तर नक्सलवाद से ग्रसित था। बम, बारूद और दहशत के साये में था। तब तो कहीं स्वशासन, स्वायत्तता की बात नहीं उठी। इतने बरसों तक अब जबकि यहां की शांति लौट रही है तो अचानक क्यों पत्थलगड़ी की आड़ में मोर्चे खोले जा रहे हैं। क्या ये आदिवासियों की ओर से आई मांग है या फिर नक्सलियों के छद्मयुद्ध का ये एक और रूप है या फिर ये किसी सियासी पैंतरे की बानगी है।
CG Ki Baat बस्तर में ‘पत्थलगड़ी’ आंदोलन जोर पकड़ रहा है। गांवों को अधिकार दिए जाने को लेकर दो ग्राम पंचायत दरभा और बस्तानार में स्थानीय लोगों ने जमकर प्रदर्शन किया। बकायदा बाइक रैली निकालकर गांव में घूमे और नारेबाजी भी की। ग्रामीणों ने रुढ़िगत ग्रामसभा के संवैधानिक अधिकारों की मांग दुहराई और जल-जंगल-जमीन पर अधिकारों का दावा किया।
पत्थलगड़ी को लेकर आंदोलन ऐसे वक्त में हो रहा है जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बस्तर दौरे पर हैं। लिहाजा कांग्रेस ने मौके पर चौका लगाने में देर नहीं की और बीजेपी पर आदिवासियों की उपेक्षा का आरोप लगाया। और पेसा एक्ट के तहत ग्राम पंचायतों के अधिकारों की वकालत की। कांग्रेस के आरोपों पर खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने मोर्चा संभाला सीएम ने कहा कि संवैधानिक दायरे की सारी मांगें पूरी होंगी। संवैधानिक दायरे के बाहर की चीजें स्वीकार नहीं की जाएंगी। इधर प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव ने भी कांग्रेस आईना दिखाया।
पत्थलगड़ी के तहत गांव वाले खुद ही संविधान बनाते हैं उनके गांवों में बगैर ग्रामसभा की इजाज़त के कोई आ नहीं सकता। न पुलिस, न प्रशासन न कोई और. गांव का कानून ही सर्वोपरी है। बस्तर में ग्राम पंचायतों के अधिकारों को लेकर पर सियासी रार से इतर सवाल है कि आखिर बस्तर में जहां इनदिनों नक्सलमुक्त नारा बुलंद है। वहां पत्थलगड़ी अभियान जोर क्यों पकड़ रहा है।