For 20 years, even water is not available for irrigation of paddy crop in Kharif and Rabi season.
महासमुंद। किसानों को सिंचाई के लिए पानी मुहैया कराना जल संसाधन विभाग की जिम्मेदारी होती है, लेकिन किसानों को पानी मिल रहा है। इतना ही नहीं इसकी सुधि लेना तो दूर पिछले 20 साल से जल संसाधन विभाग का अमला नहरों में झांकने तक की जहमत नहीं उठा रहा है। जिसके कारण अब नहर का अस्तित्व ही समाप्त होने लगा है। जी हां , हम बात कर रहे महासमुंद जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर बसे ग्राम पंचायत बेमचा के घोंटिया खार की। जहां के किसानों को पिछले 20 साल से खरीफ व रबी सीजन में धान फसल की सिंचाई के लिए पानी तक नसीब नहीं हो रहा है और किसानो की जमीनों में दरारे पड गये हैं।
ग्राम पंचायत बेमचा के सैंकड़ों किसानों की घोंटिया खार में 6 सौ एकड़ भूमि पर खरीफ फसल लगाई जाती है, लेकिन पानी नहीं होने के कारण हर साल करीब 5 सौ एकड़ की धान की फसल मर जाती है। यह सिलसिला पिछले 20 सालों से बद्दस्तूर जारी है। ऐसा नहीं है कि पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। जल संसाधन विभाग की अनदेखी और लापरवाही का खामियाजा सैंकड़ों किसानों को अपनी कड़ी मेहनत से लगाया गये फसल की बर्बादी से चुकाना पड़ रहा है। दरअसल जिले का एकमात्र वृहद सिंचाई परियोजना शहीद वीर नारायण सिंह (कोडार) बांध से बांयी तट मुख्य नहर से निकली मायनर नहर जो घोंटिया खार के अनेक किसानों को सिंचाई के लिए पानी पहुंचाने के लिए बनाया गया था, अब जल संसाधन विभाग की अनदेखी और लापरवाही की भेंट चढ़ चुका है।
लगभग 5 किलोमीटर का मायनर नहर मेंटेनेंस के अभाव में मिट्टी के कटाव के कारण पूरी तरह पट चुका है। किसानो का कहना है कि जब नहर बना था तभी पानी मिला और अब बीस वर्षो से पानी नही आता है हम भगवान भरोसे खेती करते है । इस पूरे मामले मे जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता अपनी मजबूरी का राग अलाप रहे है ।गौरतलब है कि नहर मेंटेनेंस के नाम पर पिछले पांच सालो मे लगभग दो करोड रुपये निकाले गये है । नहर की स्थिति देखने से लगता है कि नहर मरम्मत हर वर्ष कागजो मे ही हो रहा होगा । अगर वास्तव मे मरम्मत का कार्य हुआ होता तो नहर का अस्तित्व समाप्त न होता।
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