Mahasamund News: 20 साल से बदहाली झेल रहा माता कर्मा गर्ल्स कॉलेज, न लाइब्रेरी, न लैब, न हॉस्टल, छात्राएं कुर्सी तक लाती हैं घर से
Mahasamund News: 20 साल से बदहाली झेल रहा माता कर्मा गर्ल्स कॉलेज, न लाइब्रेरी, न लैब, न हॉस्टल, छात्राएं कुर्सी तक लाती हैं घर से
Mahasamund News/Image Source: IBC24
- बुनियादी सुविधाएं नहीं।
- हॉस्टल और किताबों की दिक्कत।
- छात्राएं घटकर 360 रह गईं।
महासमुंद: Mahasamund News: शासकीय माता कर्मा कन्या महाविद्यालय जो जिले का एकमात्र गर्ल्स कॉलेज है पिछले 20 वर्षों से अव्यवस्थाओं के अंधकार में डूबा हुआ है। 2005 में स्थापित यह महाविद्यालय आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है। यहाँ पढ़ने वाली छात्राओं को न तो ढंग से बैठने की व्यवस्था है न पढ़ने के लिए पुस्तकें न प्रयोगशाला की सुविधा न खेल का मैदान और न ही रहने के लिए छात्रावास।
Mahasamund News: कॉलेज में मात्र 200 कुर्सी-टेबल हैं जबकि यहाँ पिछले वर्ष तक 560 छात्राएं पढ़ाई कर रही थीं। संसाधनों की कमी के चलते छात्राएं कक्षा में बैठने के लिए दूसरे कमरों से रोज कुर्सी उठा कर लाती हैं। सुविधाओं की यह बदहाली इस वर्ष साफ दिखी जब छात्राओं की संख्या घटकर 360 पर आ गई। कॉलेज की लाइब्रेरी लगभग खाली है। छात्राओं को विषय से संबंधित किताबें बाहर से खुद खरीदनी पड़ती हैं जिससे उन पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। वहीं विज्ञान विषय की छात्राओं के लिए प्रयोगशाला में न तो उपकरण पूरे हैं और न ही रसायन उपयोग योग्य। अधिकांश केमिकल एक्सपायर हो चुके हैं, जिससे प्रैक्टिकल कराना नामुमकिन हो गया है। कॉलेज शहर से करीब 4 किलोमीटर दूर स्थित है और वहां तक पहुंचने के लिए कोई समुचित परिवहन सुविधा नहीं है। गर्ल्स हॉस्टल की अनुपस्थिति छात्राओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है।
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Mahasamund News: दूर-दराज से आने वाली छात्राएं निजी होस्टल या किराए के कमरे में रहकर पढ़ाई कर रही हैं, जिससे उनकी आर्थिक समस्याएं और बढ़ गई हैं। शौचालय की स्थिति इतनी खराब है कि कई बार छात्राएं दिनभर उनका उपयोग नहीं कर पातीं। कॉलेज में न तो कोई ऑडिटोरियम है जहाँ सांस्कृतिक या शैक्षणिक कार्यक्रम हो सकें और न ही कोई खेल मैदान। छात्राएं खेल-कूद और एक्स्ट्रा करिकुलर गतिविधियों से पूरी तरह वंचित हैं। कॉलेज के प्राचार्य ने भी हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि वे वर्षों से शासन-प्रशासन को पत्र लिख रहे हैं लेकिन कोई ठोस मदद नहीं मिल पाई है। संसाधनों के अभाव में छात्राओं की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है।

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