Kawardha Agnikand Update: रायपुर। प्रदेश की शांति को क्या किसी की नजर लग गई है या फिर वाकई कोई है, जो षड़यंत्र पूर्वक शांत फिजा में अराजकता का बीच बो रहा है? कवर्धा कांड ने एकबार फिर कानून-व्यवस्था को लेकर चिंता बढ़ा दी है। सरकार और सिस्टम पर सवाल हैं। लेकिन, इन सवालों के जबाव से ज्यादा सियासी रस्साकशी दिखती है। पक्ष-विपक्ष के अपने-अपने नरेटिव चल रहे हैं। बीजेपी का खुला आरोप है कि कवर्धा कांड में बाहरी लोगों का हाथ है, ये सरकार को बदनाम करने की एक सोची-समझी साजिश है। तो वहीं, कांग्रेस ने लॉ एंड ऑर्डर के फेल होने की पुरानी लाइन को दोहराना शुरू कर दिया है। हमारा सवाल ये है कि इस दोतरफा शोर के साइड इफेक्ट क्या होंगे? आग बुझाने की कोशिश वाले दौर में सियासी बयान कहीं फिर बुझी राख को कुरेद कर नई चिंगारी को हवा ना दे दें।
जी हां ये सवाल उठे हैं कवर्धा, लोहारीडीह आगजनी कांड से, वारदात को 2 दिन हो चुके हैं। पुलिस तफ्तीश में आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी में जुटी है तो पक्ष-विपक्ष में आरोप और सफाई का दौर शुरू हो चुका है। विपक्षी दल कांग्रेस ने मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति बनाई है, जो 17 सितंबर को घटनास्थल जाकर मुआयाना कर चुकी है। दौरे के बाद कांग्रेस फिर से प्रदेश सरकार पर हमलावर है। पीसीसी चीफ दीपक बैज ने BJP सरकार पूरी तरह से फेल बताते हुए गृहमंत्री से इस्तीफा मांगा है।
तो विपक्ष ने इसे फिर से प्रदेश में दिन-ब-दिन बदतर होती कानून-व्यवस्था से जोड़ा तो उधर, विपक्ष के सवालों को दरकिनार कर सत्तापक्ष के नेताओं ने सरकार को क्लीनचिट देते हुए दावा किया कि, बीते 5 साल में कवर्धा का माहौल बिगाड़ा जा रहा है। घटना पर गृह मंत्री विजय शर्मा ने कहा कि, लोहरीडीह की घटना पर कठोरता से कार्रवाई होगी। वैसे दोनों पक्षों के आरोप या सफाई नये नहीं है। यहां सवाल ये है कि, भाजपा और कांग्रेस दोनों दल, असल चिंता और सवालों से उलट ऐसे बयानों में क्या उलझे हैं जो केवल और केवल उनके सियासी ऐंगल को सूट करती है।